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भग
प्राचीन चरित्रकोश
भगदत्त
की देवता मानी जाती है। यह बारह आदित्यों में से एक महाभारत में इसे बारह आदित्यों में से एक कहा गया माना जाता है। ऋग्वेद में आदित्यों की संख्या छः दी | है,एवं इसकी माता का नाम अदिति, एवं पिता का नाम गयी है, एवं निम्नलिखित देवताओं को आदित्य कहा गया | कश्यप बताया गया है । यह अर्जुन के जन्मोत्सव में तथा है:-भग, मित्र, अर्यमन् , वरुण, दक्ष एवं अंश (ऋ. | स्कंद के अभिषेक में उपस्थित था (म. आ. ११४.५५%; २.२७)।
श. ४४.५)। खाण्डववनदाह के समय घटित हुए युद्ध में ऋग्वेद का एक सूक्त प्रमुखतःभग की स्तुति में अर्पित | यह इन्द्र के पक्ष में था, एवं तलवार तथा धनुष्य लेकर किया गया है (ऋ. ७.४१)। ऋग्वेद में कुल साठ स्थानों | इसने शत्रु पर आक्रमण किया था (म. आ. २१८.३५)। में इस देवता का नाम आता है। भग का शाब्दिक अर्थ ३. सौरमण्डल का एक आदित्य (म. आ. ५९.१५)। 'प्रदान करनेवाला है। यही कारण है कि, वैदिक सूक्तों में | यह माघ माह में प्रकाशित होता है, एवं इसकी ११०० सम्पत्ति के वितरक के रूप में इसका निर्देश कई | किरणें होती है (भावि. ब्राह्म. १.७८)। भागवत के बार हआ है। अपने उपासकों को यह सम्पत्ति से परिपूर्ण | अनुसार, यह पौष माह में प्रकट होता है, और इसके साथ (भगवान् ) बनाता है (ऋ. ५.४६ )। इसकी बहन का स्फूर्ज, राक्षस, अरिष्टनेमि गंधर्व, ऊर्ण, यक्ष, आयु ऋषि नाम उषा था (ऋ. १.१२३.५)।
कर्कोटक नाग तथा पूर्वचित्ति अप्सरा रहती हैं (भा. १२. भग के नेत्रों को रश्मियों से विभूषित कहा गया है
११.४२)। (ऋ. १. १३६)। यास्क ने इसे पूर्वाह्न का अधिपति |
४. एकादश रुद्रों में से एक, जो अर्जुन के जन्मोत्सव कहा है (नि. १२.१३)। ऋग्वेद में आदित्य, सूर्य,
में सम्मिलित था (म. आ. ११४.५८)। विवस्वत् , पूषन् , अर्यमन् , वरुण, मित्र तथा भग को अलग | ___भगदत्त-प्राग्ज्योतिषपुर का अधिपति, जो नरक अलग देवता माना गया है । पर वास्तव में ये सारे सूर्य के
(भौमासुर ) तथा भूमि का पुत्र था (म. द्रो. २८.१)। ही अनेक रूप हैं (ऋ. ८.३५.१३-१५)। भग नाम का
इसे 'भौमासुर' मातृकनाम भी था, परन्तु कई ग्रंथों में ईरानी रूप 'बघ ' (देव) है, जो ' अहुर मज्द' की एक | इसे 'भीमासुरपुत्र' भी कहा गया हैं (भा. १०.५९)। उपाधि के रूप में प्राप्त है।
___ एक बार इसके पिता भौम ने इन्द्र के कवच एवं २. बारह आदित्यों मे से एक । शतपथ ब्राह्मण में, |
कुण्डल का हरण किया, जिसके कारण क्रुद्ध होकर कृष्ण प्रजापति के यज्ञ मे इसने अपनी आँखे किस प्रकार खोई
ने युद्ध में उसे परास्त कर उसका एवं उसके सात पुत्रों इसका वर्णन प्राप्त है । प्रजापति के यज्ञ में यह दक्षिण
को मौत के घाट उतार दिया । भूमि ने कृष्ण से विलाप दिशा में बैठा था। रुद्र के द्वारा प्रजापति का 'वेध' किये
कर अपने पुत्र का जीवनदान माँगा । इस प्रकार कृष्ण ने जाने पर, उसके यज्ञ का हर्विभाग इसके पास लाया गया
प्रसन्न होकर भगदत्त को पुनः जीवित कर दिया। जिसे देखने से इसकी आँखे जाती रही (श. ब्रा. १.७.४)। पिता के पश्चात् यह प्राज्योतिषपुर देश का अधिपति - रुद्र के द्वारा इसकी आँखे नष्ट होने की यही कथा हुआ, जिसकी राजधानी प्रागज्योतिष थी। यह देश भागवत में अन्य प्रकार से दी गयी है। दक्ष के यज्ञ में यह | आधुनिक काल का आसाम प्रांत ही है। इसका किरात, ऋत्विज था । दक्षद्वारा शिव की निंदा किये जाने पर,आँखो चीन एवं समुद्रतटवर्ती सैनिकों के साथ युद्ध भी हुआ के संकेत से इसने दक्ष को इशारा करते हुए उसे और था । यह युद्ध शिक्षा में पारंगत था । इसे यवनाधिप भी प्रोत्साहित किया था। इस कारण शिव के पार्षद वीरभद्र कहा गया है (म. स. १३.१३-१४)। आसाम प्रांत ने इसकी आँखे बाहर निकाल ली (भा. ४.५.१७-२०)। में हाथी उस समय भी होते थे, अतएव यह गजयुद्ध में महाभारत के अनुसार, स्वयं रुद्र ने इसकी आँखे फोड़ | बड़ा प्रवीण था। डाली थीं (म. अनु. २६५. १८ कुं)। पश्चात् यह शंकर यह पण्डु राजा का मित्र था (म. स. १३.१४)। यह की शरण में गया, जिस कारण शंकर ने इसे उःशाप दिया | द्रौपदी के स्वयंवर गया था (म. आ. १७७.१२)। 'तुम मित्रों की आँखों से देख सकोगे (भा. ४.७.३)। जरासंध का मित्र होने पर भी यह युधिष्ठिर के प्रति पिता ___ इसकी पत्नी का नाम सिद्धि था, जिससे इसे महिमा, | की भाँति स्नेह रखता था। यह इन्द्र का मित्र एवं इन्द्र विभु तथा प्रभु नामक पुत्र, तथा आशि नामक कन्या थी के समान ही पराक्रमी था। राजसूय दिग्विजय के समय (भा. ६.१८.२, ६.६.३९)।
अर्जुन के साथ इसका घोर युद्ध हुआ था । अर्जुन की