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ब्रह्मन्
प्राचीन चरित्रकोश
ब्रह्मन्
अंशपायन सनातन (उन्नेता)। बाकी सारे ऋषि इसके | विभिन्न वरप्रदान करते हुए कहा, 'ब्रह्मा की पूजा करनेयज्ञ के सदस्य बने थे।
वाले व्यक्ति को सुख एवं मोक्ष प्राप्त होगा। इन्द्र शत्रुद्वारा ___ सावित्री से शाप--यज्ञ की दीक्षा लेकर यह यज्ञ प्रारम्भ पराजित होकर भी, ब्रह्मा की सहायता प्राप्त कर पुनः करने ही वाला था कि, इसे ध्यान आया कि, यज्ञकुण्ड के अपना पद प्राप्त करेगा। विष्णु को मनुष्यजन्म में पास सावित्री उपस्थित नहीं है, और बिना पत्नी के यज्ञ पत्नी विरह सहन करना पडेगा, किन्तु अन्त में वह शत्रुओं आरम्भ नहीं किया जा सकता । अतएव इसने सावित्री को को परास्त कर लोगों का पूज्य बनेगा। शंकर के पूजक पाप बुलावा भेजा, पर सावित्री के आने में देर हुयी। पता से मुक्त होकर अपना उद्धार करेंगे। अग्नि की तृप्ति पर नहीं उसे वहाँ आने में हिचकिचाहट थी, अथवा वह ही देवों को सुख और शान्ति मिलेगी। लक्ष्मी सब को प्रिय अकेले न आकर लक्ष्मी के साथ आने के लिए उसे होगी, तथा वह हरएक जगह पूजी जायेगी; उसके कारण ढूँढ रही थी, बहरहाल उसे देरी हुयी। इस देरी से ही लोग तेजस्वी होंगे । देवस्त्रियाँ संततिविहीन होने पर ब्रह्मा चिड़ गया, तथा उसने इन्द्र को आज्ञा दी कि, भी उन्हे निःसंतान होने का दुःख न होगा' (पद्म. सृ. १७)। शीघ्र ही किसी स्त्री को इस कार्य की पूर्ति के लिए यज्ञ में उपस्थित तीन अतिथि--ब्रह्मा का यह यज्ञ लाया जाय । इन्द्र एक ग्वाले की कन्या ले आया। ब्रह्मा सहस्त्र युगों तक चलता रहा, अर्थात् यह ब्रह्मा की वर्षने उसे 'गायत्री' नाम देकर वरण किया, एवं यज्ञ पर गणना से करीब अर्ध वर्ष तक चला (स्कंद. ६.१९४)। उसे बिठा कर कार्य आरम्भ किया।
स्कंद के अनुसार, ब्रह्मा के इस यज्ञ में तीन विभिन्न व्यक्ति कुछ समय के बाद सावित्री आयी, तथा उसने देखा कि विचित्र रूप से यज्ञ में आये, जिनकी कथा अत्यधिक रोचक यज्ञ करीब करीब हो चुका है। यह देखकर वह ब्रह्मा एवं है। उपस्थित देवों पर अत्यधिक क्रुद्ध हुयी कि, मेरे बिना यज्ञ । यज्ञ चल रहा था कि, शंकर अपनी विचित्र वेशभूषण किस प्रकार आरम्भ हुआ। कुपित होकर उसने ब्रह्मा में आया, और अपना कपाल मंडप में रख दिया। उसे को शाप दिया कि, वह अपूज्य बनकर रहेगा, उसकी कोई कोई पहचान न सका । ऋत्विजों में से एक ने उस कपाल पूजा न करेगा (स्कंद ७.१.१६५)।
को बाहर फेंकने का प्रयत्न किया, किन्तु उसके फेंकते ही सावित्री ने अन्य देवताओं को भी शाप दिये जो इस उस स्थान पर लाखों कपाल उत्पन्न हो गये। यह कृत्य प्रकार थे:-इन्द्र को-हमेशा पराभव होने का एवं कारावास | देख कर सबको आभास हुआ कि, यह भगवान् शंकर की भोगने का विष्णु को-भृगु ऋषि के द्वारा शाप मिलने ही लीला हो सकती है। अतएव समस्त देवताओं ने तुरंत का, स्त्री का राक्षसद्वारा हरण होने का, तथा पशुओं की | उसकी स्तुति कर, उससे क्षमा माँगी । शंकर प्रसन्न हुए और दास्यता में रहने काः रुद्र को-ब्राह्मणों के शाप से पौरुष के ब्रह्मा से वर मांगने को कहा। किन्तु ब्रह्मा ने यज्ञ की दीक्षा नष्ट होने का; अग्नि को-अपवित्र पदार्थों की ज्वाला से अधिक
लेने के कारण शंकर से वर माँगने की मजबूरी प्रकट की, भड़कने का; ब्राह्मणों को-लोभी बनने का, दूसरे के अन्न और स्वयं शंकर को वर प्रदान किया। इसके उपरांत पर जीवित रहने का, पापियों के घर भी यज्ञहेतु जाने का,
ब्रह्मा ने यज्ञकुण्ड की उत्तर दिशा की ओर शंकर को उचित तथा द्रव्यसंचय में अधिक प्रयत्नशील रहने का आदि ।
आसन देकर, उसके प्रति अपना सम्मान प्रकट किया। इस प्रकार प्रमुख देवताओं को शाप देकर सावित्री वापस दूसरे दिन एक बटु ने यज्ञमंडप में प्रवेश कर सहजआयी। देवस्त्रियों ने उसका साथ न दिया अतएव
भाव से एक सर्प छोड़ दिया, जिसने उपस्थित होतागणों सावित्री ने उन्हें शाप दिया कि 'तुम सभी बंध्या रहोगी |
को अपने पाश में बाँध लिया । इस कृत्य से क्रोधित लक्ष्मी को शाप दिया 'तुम चंचल रहकर, मूर्ख, म्लेंच्छ, | होकर उपस्थित सदस्यों ने शाप दिया कि, वह स्वयं सर्प आग्रही तथा अभिमानी लोगों की संगति करोगी'। हो जाये । किन्तु उस बटु 'शंकर भगवान्' की स्तुति कर इन्द्राणी को शाप दिया, 'तुम्हारी इज्जत लेने के लिए | शाप से मुक्त हुआ। नहुष तुम्हारा पीछा करेगा, तथा तुम्हें अपनी रक्षा के तीसरे दिन एक विद्वान् अतिथि आया और उसने लिए बृहस्पति के घर पर छिपकर बैठना पडेगा। कहा, 'आप सभा लोगों से मैने केवल गुण प्राप्त किये हैं,
गायत्री से वरदान-सावित्री के चले जाने के उपरान्त, अतएव मैं विद्वान् बनने का अधिकारी हूँ। ब्रह्मा ने गायत्री ने समस्त देवताओं एवं उनकी धर्मपत्नियों को उसका सत्कार किया एवं उसे उचित आसन दिया।
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