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ब्रह्मन्
प्राचीन चरित्रकोश
पाँचवे मस्तक के कट जाने के उपरांत, इसके अन्य मस्तक स्तम्भित हो गये। उनमें से स्वेदकण निकल कर मस्तक पर छा गये । जिसे देखकर इसने उन स्वेदकणों को हाथ से निचोड़ कर जमीन में फेंका। फेंकते ही उससे एक रौद्रे पुरुष उत्पन्न हुआ, जिसको इसने शंकर के पीछे पीछे छोड़ दिया । अंत में शंकर ने उसे पकड़ कर विष्णु के हवाले किया (स्कंद ५.१.२.४ ) ।
ब्रह्मा एवं शंकर के आपसी विरोध की और अन्य कथाएँ भी पुराणों में प्राप्त है। एक बार शिवपत्नी सती के रूपयौवन पर यह आकृष्ट हुआ, जिस कारण क्रुद्ध हो कर शंकर इसे मारने दौड़ा | किन्तु विष्णु ने शंकर को रोकने का प्रयत्न किया । फिर भी शंकर ने इसे 'ऐंद्रशिर' एवं ' विरूप' बनाया । इसकी विरूपता के कारण सारे संसार में यह अपूज्य ठहराया गया ( शिव रुद्र, स. २०) ।
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एक बार शंकर ने अपनी संख्या नामक कन्या का दर्शन इसे कराया। उसे देखते ही ब्रह्मा मोहित हो गया। शंकर ने इसका यह अशोभनीय एवं अनुचित कार्य इसके पुत्रों को दिखा कर उनके द्वारा इसका उपहास कराया अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए, ब्रह्मा ने दक्षकन्या सती का निर्माण कर, दश द्वारा शंकर का अत्यधिक अपमान कराया (स्कंद २.२.२३) । इसे दाहिने अंगूठे से दक्ष का, एवं बायें से दक्षपत्नी का निर्माण हुआ था (म. आ. ६०.९)।
ब्रह्मन्
उपरांत शंकर ने नारायण को ज्येष्ठ एवं इसे कनिष्ठ एवं अपूज्य ठहराया ।
पश्चात्, शंकर के कथनानुसार, इसने गंधमादन पर्वत पर एक यज्ञ किया, जिस कारण श्रौत एवं स्मार्त धर्मविधियों में इसे पूज्यत्व प्रदान किया गया ( स्कन्द. १.१.६; १.३.२, ९-१५; ३.१.१४ ) ।
सृष्टि निर्माण इसने अनेकानेक प्राणियों का सृजन किस प्रकार किया, इसकी कथा विभिन्न पुराणों में तरह तरह से दी गयी है।
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स्कन्द के अनुसार, सृष्टि का निर्माण करने के लिए ब्रह्मा एवं नारायण सर्वप्रथम उत्पन्न हुए थे। सृष्टि निर्माण करने के पश्चात् ब्रह्मा तथा नारायण में यह विवाद हुआ कि, उन दोनों में कौन श्रेष्ठ है ? यह झगड़ा जब तय न हो सका, तो दोनों शंकर के पास गये। वहाँ शंकर ने दोनों के सामने एक प्रस्ताव रखा कि, जो व्यक्ति शिवलिंग के आदि एवं अन्त को शोध पर सर्वप्रथम उसकी सूचना उसे देगा, वही ज्येष्ठ बनने का अधिकारी होगा । ब्रह्मा ने उर्ध्वमार्ग से शोध करना आरम्भ किया, किन्तु इसे सफलता न मिली तब इसने 'गौ' एवं 'केतकी' को अपना झूठा गवाह बना कर, शंकर के सामने पेश करते हुए कहा, 'मैं ने शिवलिंग के आदि एवं अन्त शोध किया है, जिसके प्रत्यक्ष गवाह देनेवाले गौ एवं 'केतकी' सम्मुख है ' । यह सुन कर ब्रह्मा को ज्येष्ठपद दिया गया। किन्तु बाद में असलियत माइम होने के
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महाभारत के अनुसार, वरुणरूपधारी शंकर ने एक चार यज्ञ किया, जिसमें ब्रह्मा ने अपने वीर्य की आहुति दी । उसी यज्ञ से प्रजापतियों का जन्म हुआ (म. अनु. ८५.९९-१०२ ) ।
पद्म के अनुसार, इसने सर्वप्रथम तमोगुणी प्रजा उत्पन्न की, एवं उसके उपरांत क्रमशः रजोगुणी, तथा सतोगुणी प्रजा का निर्माण किया। इसके द्वारा निर्माण की गयी तमोगुणी सृष्टि पाँच प्रकार की थी, जो निम्नलिखित हैं:तम, मोह, महामोह, तामिस एवं अन्धतामिस्र यह पाँचों प्रकार की सृष्टि अन्धकारमय थी, एवं उसमें केवल नागों की उत्पत्ति ब्रह्मा ने की थी ।
तत्पश्चात् इसने विभिन्न प्रकारों की कुल आठ सृष्टियों का निर्माण किया, जिनके नाम एवं उनमें उत्पन्न प्राणियों के नाम इस प्रकार हैं:- तिर्थकसोत (पद्म), ऊ सोत (देव), अर्वाक्स्रोतस् (मनुष्य), अनुग्रह, भूत, प्राकृत, वैकृत एवं कौमार ।
पद्म में वह भी लिखा है कि, देव, राक्षस, पितर, मनुष्य, यक्ष एवं पिशाच गणों की उत्पत्ति ब्रह्मा ने अपने मनसामर्थ्य से की ब्रह्मा का पहला शरीर तमोगुणी था, जिसके 'जघन' से असुरों का निर्माण हुआ। पश्चात, इसने अपने तमोगुणी शरीर का त्याग कर, नये सतोगुणी शरीर को धारण किया। इसके द्वारा परित्याग किये गये तमोगुणी शरीर से रात्रि का निर्माण हुआ, एवं इसके द्वारा धारण किये गये सतोगणी शरीर से देवों की उत्पत्ति हुई। पश्चात् इसने अपने द्वितीय शरीर का भी त्याग किया, जिससे दिन की उत्पत्ति हुयी। इसके तृतीय शरीर से ' पितर ' उत्पन्न हुए, एवं उसके त्यक्त भाग से संध्याकाळ की उत्पत्ति हुयी। इसके चतुर्थ शरीर से मनुष्य उत्पन्न हुए, एवं उसके त्यक्त भाग से उषःकाल का निर्माण हुआ । इसके पाँचवे शरीर से यक्ष एवं राक्षस उत्पन्न हुए।
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