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________________ . बल प्राचीन चरित्रकोश आया । इन्द्र ने बल की स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर इसने उससे वर माँगने को कहा । इन्द्र ने कहा 'तुम मुझे अपने शरीर का दान दो, उसे ही मैं चाहता हूँ। बल ने कहा, 'तुम मेरे शरीर को ही चाहते हो, तो उसके टुकडे कर उसे प्राप्त करो' । फिर इन्द्र ने इसके शरीर के अनेक टुकडे कर उन्हें इधरउधर फेंक दिये। ये टुकडें जहाँ जहाँ गिरें, वही रत्नों की खाने खडी हो गयी। इसकी मृत्यु के बाद, इसकी पत्नी प्रभावती शोक में विलाप करती हुयी असुरों के गुरु शुक्राचार्य के पास गयी, तथा उनसे सारी कथा बता कर, अपने पति के जिलाने की प्रार्थना की। शुक्राचार्य ने कहा, 'बल को जिलाना असम्भव है । मैं माया के प्रभाव से उसकी बाशी को तुम्हे आवश्य सुनवा सकता हूँ। गुरुकृपा से प्रभावती ने बल की वाणी सुनी - ' तुम मेरे शरीर में अपने शरीर को त्याग कर मुझे प्राप्त करो। ऐसा सुन कर बल की देह में अपने शरीर को त्याग कर, प्रभावती उसी में मिल कर नदी बन गयी (पद्म. उ. ६) बलक - - तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । २. एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से एक था। ३. मणिवर एवं देवजनी के 'गुह्यक' पुत्रों में से एक । बलद -- एक अग्नि, जो भानु नामक अग्नि का जेष्ठ . पुत्र था। यह प्राणियों को प्राण एवं बल प्रदान करता है। बलन्धरा -- का शिराज की कन्या, जो पांडुपुत्र भीमसेन की भार्या थी। इसके विवाह के लिये काशिराज ने यह . शर्त रखी थी कि, जो अधिक बलवान् हो, वही इसके साथ विवाह कर सकता है । भीमसेन ने यह शर्त जीत ली एवं उसका इसके साथ विवाह संपन्न हो गया। भीमसेन से इसे सर्वग नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था ( म. आ. ९०.८४ ) । , बलराम । चलबन्धु-- रैवत मनु का एक पुत्र । २. एक प्राचीन नरेश (म. आ. १.१७७) । ३. त्रिधामन् नामक शिवावतार का शिष्य । बलमित्र - एक राज, जो वीरमणिपुत्र रुक्मांगद का मौसेरा भाई था । राम के अश्वमेध यज्ञ का अश्व वीरमणि ने पकड़ लिया था। उस समय हुए शत्रुघ्न एवं वीरमणि के युद्ध में, यह वीरमणि के पक्ष में शामिल था (पद्म. पा. ४० ) । बलमोदक -- कुंडल नगरी का राजा सुरथ का पुत्र । राम के अश्वमेध यज्ञ का अश्व सुरथ ने पकड़ लिया था। उस समय हुए शत्रुघ्न एवं सुरथ के युद्ध में, यह सुरथ के पक्ष में शामिल था ( पद्म. पा. ४९ ) । बलराम - - (सो. वृष्णि. ) वसुदेव तथा रोहिणी का पुत्र, जो भगवान् श्रीकृष्ण का अग्रज, एवं शेष का अवतार था ( म. आ. ६१.९१ ) । भगवान् नारायण के श्वेत केश से इसका अविर्भाव हुआ था (म. आ. १८९.३१) । वसुदेव देवकी कंस के द्वारा कारागार में बन्दी थे । उसी समय देवकी गर्भवती हुयी, तथा बलराम उसके गर्भ में सात महीने रहा। इसके उपरांत योगमाया से यह वसुदेव की द्वितीय पत्नी रोहिणी के गर्भ में चला गया, जो उस समय गोकुल में थी । वहीं इसका जन्म हुआ ( भा. ९. २४.४६; १०. २. ८ पद्म. उ. २४५ ) । एक गर्म से दूसरे गर्भ में जाने के कारण, इसे संकर्षण नाम प्राप्त हुआ । 6 यह देखने में अत्यंत सुन्दर था, अतएव इसे 'राम', तथा अलपौरूष के कारण 'बलराम' कहा गया। यह शत्रुओं के दमन के लिये सदैव हल तथा मूसल धारण करता था । अतएव इसे 'हली', हलायुध ', 'सीरपाणी', 'मूसली' तथा 'मुसलायुध' भी कहते है । बलराम कृष्ण से तीन माह बड़ा था तथा सदैव कृष्ण के साथ रहता था ( म. आ. २३४ ) । यह बाल्यावस्था से ही परमपराक्रमी, युद्धवीर एवं साहसी था, तथा इसने धेनुक तथा प्रलंब नामक असुरों का वध किया था ( म. स. परि. १. क्र. २१, पंक्ति. ८९९-८२०; विष्णु. ५. ८-९ मा १०० १८ . . २. १४.६२ ) । यह सदैव नीलवस्त्र धारण करता था, तथा इसके शरीर में सदैव कमलों की माला रहती थी । ये सारी बीजे इसे यमुना नदी से प्राप्त हुयी थी, जिसकी कथा निम्न प्रकार से विष्णुपुराण में दी गयी है । एक बार इसने भावातिरेक में आ कर यमुना से भोग करने की इच्छा प्रकट की। यमुना तैयार न हुयी, तब क्रोध में आकर इसने मथुरा के पास उसका प्रवाह मोड़ दिया, जिसे विष्णु में 'यमुनाकर्ष' कहा गया है। तब यमुना ने बलराम को शरीर में धारण करने के लिए नील परिधान, तथा कमलों की माला दे कर इसे प्रसन्न किया (विष्णु. ५.२५ ) । बाल्यकाल -- सांदीपनि ऋषि के यहाँ कृष्ण के साथ इसने वेविया ब्रह्मविया तथा अस्त्रशस्त्रादि का ज्ञान प्राप्त किया । यह गदायुद्ध में अत्यधिक प्रवीण था । इसकी शक्तिसाहस के ही कारण, कृष्ण जरासंध को सत्रह बार युद्ध में ४९३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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