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________________ बर्हिन प्राचीन चरित्रकोश बल बर्हिन्-एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं प्राधा के दस | ८. एक दैत्य, जो कश्यप एवं दिति के पुत्रों में से एक देवगंधर्व पुत्रों में से एक था (म. आ. ५९.४५) था। दिति द्वारा सौ वर्षोंतक तप करने पर यह उत्पन्न बर्हिषद-- दैवी जाति के पितरों का एक गण, जो हुआ था। बड़ा होने पर कश्यप ने इसका व्रतबंध किया, दक्षिण दिशा में सोमप ( सोमपदा) नामक स्थान में रहता एवं इसे ब्रह्मचर्य का उपदेश दिया। पश्चात् इसने सौ था। इसकी मानसकन्या का नाम पीवरी था (पितर | वर्षों तक ब्रह्मचर्यव्रत का पालन कर घोर तपस्या की। देखिये)। इसका तप समाप्त होने पर, दिति ने इसे स्वर्ग पर २.(स्वा. उत्तान.) प्राचीनबर्हि प्रजापति का | आक्रमण करने के लिये कहा। किन्तु कश्यप की दूसरी नामान्तर (प्राचीनबर्हि प्रजापति देखिये)। पत्नी अदिति को यह वृत्तांत ज्ञात होते ही उसने इंद्र को ३. त्रिलोकी को उत्पन्न करने में समर्थ पूर्व दिशा- चेतावनी दी । अनंतर समुद्रकिनारे जाप करते हुए इसे निवासी सप्तर्षियों में से एक (म. शां. २०८. २७-२८)। | देख कर, इंद्र ने वज्रप्रहार कर इसका वध किया (पद्म. ब्रह्माजी ने इसे सात्वतधर्म का उपदेश दिया था | भू. २३)। (म. शां. ३३८. ४५-४६)। ९. विष्णु का एक पार्षद । वामनावतार के समय, बहिष्मती-स्वायंभव मन्वंतर के प्रजापति की कन्या. | वामनरूपधारी श्रीविष्णु ने बलि को पाताल में ढकेल . जो स्वायंभूव मनु के ज्येष्ठपुत्र प्रियव्रत को विवाह में दी| दिया। तत्पश्चात् बलि के यज्ञमंडप में उसके अनुगामियों ... गयी थी (भा. ५.१. २४)। ने काफी हलचल मचा दी। उससमय उन राक्षसों का .. बर्हिसादि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । जिन विष्णुपार्षदों ने निवारण किया, उनमें यह एक था बल-एक असुर, जो कश्यप एवं दनायु के पुत्रों में | (भा. ८.२१.१६) । से एक था (म. आ. ६५, स्कंद १.४.१४)। इसे निम्न- १०.कुशिककुल का एक मंत्रकार, जिसे उद्गल नामांतर लिखित तीन भाई थे:--विक्षर, वीर एवं वृत्र (म. आ. | भी प्राप्त था। ५९.३२)। यही पौंड्र देश के राजा के रूप में उत्पन्न | ११. वायु के अनुसार भृगुकन्या श्री का पुत्र । हुआ था (म. आ. ६१.४१)। १२. गरुड एवं कश्यपकन्या शुकी के छः पुत्रों में से हिरण्याक्ष की ओर से यह इंद्र के साथ युद्ध करने | एक (ब्रह्मांड. ३.७.४५.०)। गया था, जिस समय इसने इंद्र को ऐरावत के साथ नीचे १३. अनायुषा नामक राक्षसी के पाँच.पुत्रों में से एक गिरा कर मूञ्छित किया था। अन्त में इंद्र ने इसका वध (ब्रह्मांड. ३.६.३१-३७)। किया (पा. स. ६७)। १४. श्रीकृष्ण एवं लक्ष्मणा के पुत्रों में से एक । २. वरुण एवं उसकी ज्येष्ठ पत्नी देवी का एक पुत्र । १५. बलराम का नामांतर। (म. आ. ६०.५१)। १६. एक मायावी दैत्य, जो मयासुर का पुत्र था। ___३. (सू. इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो परिक्षित् | यह अतल नामक पाताल में रहता था। इसने छियान्नवे एवं मंडुकराज की कन्या सुशोभना का पुत्र था। इसके प्रकार की 'माया' का निर्माण कर, उसे मायावी दैत्यों शल एवं दल नामक दो भाई थे (म. व. १९०)। को दिया था, जिसका प्रयोग कर वे लोगों को त्रस्त किया भागवत में दल एवं बल ये दोनो एक ही व्यक्ति माने गये | करते थे। है (दल १. देखिये)। __ एक बार इसने जमुहाई ली, जिससे स्वैरिणी, कामिनी ४. रामसेना का एक वानर, जो कुंभकर्ण के साथ | तथा पुंश्चली नामक तीन प्रकार की दुश्चरित्र स्त्रियों के युद्ध में उसका ग्रास बन गया था (म. व २७१.४)। | गण उत्पन्न हुए । उन स्त्रियों पास हाटक नामक एक ५. वायुद्वारा स्कंद को दिये गये दो पार्षदों में से एक। ऐसा पेयपदार्थ था, जिसे पुरुषों को पिला कर एवं उन्हें दुसरे पार्षद का नाम अतिबल था (म. श. ४४.४०)। । | कामवासना की भावना में उन्मत्त बना कर, वे संभोग ६. एक प्राचीन ऋषि, जो अंगिरा का पुत्र था एवं | करवाती थी (भा. ५.२४.१६)। पूर्व दिशा में निवास करता था (म. शां. २०१.२५)। इंद्र एवं जालंधर दैत्य के बीच हुए युद्ध में, इसने इसके नाम के लिये 'नल' पाठभेद प्राप्त है। जालंधर की ओर से लड़कर, युद्ध में इन्द्र के छक्के छुड़ा ७. एक सनातन विश्वेदेव (म. अनु९१.३०)। दिये, तथा अन्त में इन्द्र परास्त होकर इसकी शरण में ४९२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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