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प्रतीप
प्राचीन चरित्रकोश
प्रदोष
महाभारत में अन्य एक स्थान पर इसे जनमेजय | प्रतीह -- (स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो परमेष्ठिन् राजा पारिक्षित (प्रथम) का पौत्र एवं धृतराष्ट्र राजा का पुत्र | का पुत्र था। इसकी माता तथा स्त्री दोनों का ही नाम कहा गया है। वहाँ इसका वंशक्रम निम्नप्रकार से दिया सुवर्चला है । इसके प्रतिहर्तृ, प्रस्तोतृ और उद्गातृ गया है :--कुरु-अविक्षित् एवं परिक्षित्-जनमेजय- | नामक तीन पुत्र थे (भा. ५.१५.३)। धृतराष्ट्र-प्रतीप (म. आ. ८९.४२-५२)।
प्रतृ-तृत्सु नामक जातिसमूह का नामांतर (ऋ. ७ यह काफ़ी वृद्ध हो गया था, फिर भी इसे कोई पुत्र | ३३.१४) तुत्सु राजा दिवोदास के वंश में प्रदिन नामक न था। अतएव सन्तानप्राप्ति की इच्छा से इसने तप | एक राजा उत्पन्न हुआ था, जो तृत्सु एवं 'प्रतृद्' के करना प्रारम्भ किया । तपस्या करते समय, एक दिन | समीकरण की पुष्टि करता है (लुडविग-ऋग्वेद अनुवाद, मनस्विनी गंगा उत्तम गुणों से युक्त होकर एक नवयौवना | ३.१५९) स्त्री का रूप धारण कर उपस्थित हुयीं, और इसके गोद प्रतोष- यज्ञ नामक विष्णु के सातवें अवतार का पुत्र, में जा बैठी। गंगा ने प्रतीप से प्रार्थना की, 'वह उसे | जिसकी माता का नाम दक्षिणा था। पत्नी के रूप में स्वीकार करले' पर इसने उस प्रार्थना को २. स्वारोचिष मन्वंतर का एक देव। इन्कार करते हुए कहा, जब मुझे पुत्र होगा, तब उससे प्रत्यग्र- (सो.ऋक्ष.) एक राजा, जो भागवत और तुम विवाह करना।
विष्णु के अनुसार उपरिचर वसु के पुत्रों में से एक था तपश्चर्या के उपरांत यह अपने निवासस्थान वापस (म.आ.६४.४४ वायु एवं मत्स्य में इसके नाम क्रमशः। आया। कालान्तर में, इसे शंतनु, देवापि तथा बाह्रीक | प्रत्यग्रह, तथा प्रत्यश्रवस् दिये गये हैं (वा. रा. बा. ३२. नामक तीन पुत्र हुए । शंतनु को यह अत्यधिक चाहता था। अतएव मृत्यु के समय इसने उससे कहा 'तुम मेरी यह 'चैद्यवंश' का अन्तिम राजा प्रतीत होता है, . आज्ञा मान कर अरण्य में जाओ। वहाँ तुम्हें एक सुन्दर क्यांकि, इसके वंश की चली आई परंपरा का इतिहास स्त्री मिलेगी, जो तुमसे विवाह की इच्छा प्रकट करेगी। इसके उपरांत लुप्तप्राय है । केवल तीन राजाओं के नाम .. तुम विना किसी सोच विचार के उससे विवाह कर लेना। | भारतीय युद्धकाल में मिलते हैं जिसके नाम, दमघोष, पश्चात् , शंतनु जंगल में गया एवं गंगा से उसका विवाह | शिशुपाल, और धृष्टकेतु है ।। हो गया (म. आ. ९०५०)।
प्रत्यग्रह--उपरिचर वसु के द्वितीय पुत्र प्रत्यग्र राजा २. बहासावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ऋषि । | का नामांतर (प्रत्यूह देखिये)।
प्रत्यंग--एक प्राचीन नरेश (म. आ. १.१७८)। . . प्रतीप प्रीतिसुत्वन-अथर्ववेद में निर्दिष्ट एक राजा (अ. वे. २०.१२९. २; ऐ. ब्रा. ६. ३३.२)।
प्रत्यश्रवस--उपरिचर वसु के द्वितीय पुत्र प्रत्यग्र सांख्यायन श्रौतसूत्र में इसे केवल 'प्रतिसुत्वन' कहा
राजा का नामांतर (प्रत्यग्र देखिये)। गया है, जिस शब्द की निरुक्ति बोटलिंग के अनुसार
प्रत्यह--भगुकुल के गोत्रकार । प्रत्यूह का नामांतर । यह है-- सत्वनों के विपरीत दिशा में जिसका जन्म प्रत्यूष-अष्टवसुओं में से एक, जो धर्म एवं प्रभाता हुआ था।
का पुत्र था (म. आ. ६०.१७-१९; प्रत्यूह देखिये)। प्रतीपक-निमिवंशीय प्रतित्वक राजा का नामांतर
प्रत्यूह-- भृगुकुल का एक गोत्रकार । इसके नाम के (प्रतित्वक देखिये)।
लिए 'प्रत्यूष-पाठभेद भी प्राप्त है ।
प्रथ वासिष्ट--एक वैदिक मंत्रद्रष्टा (ऋ. १०.१८१.१)। प्रतीपाश्च (सू. इ. भविष्य.) इक्ष्वाकुवंशीय प्रतीकाश्व
प्रथित-- स्वारोचिष मनु के पुत्रों में से एक। राजा का नामांतर (प्रतीकाश्व देखिये)। मत्स्य में इसे
प्रदातृ-एक विश्वेदेव (म. अनु. ९१.३२)। ध्रुवाश्व राजा का पुत्र कहा गया है।
प्रदीपक--निमिवंशीय प्रतित्वक राजा का नामांतर प्रतीबोध--अथर्ववेद में निर्दिष्ट एक ऋषि, जिसका (प्रतित्वक देखिये)। बोध ऋऽपि के साथ उल्लेख आया है (अ.व. ५.३०. प्रदोष--(स्वा. उत्तान.) एक राजा, जो पुष्पाणे १०८.१.१३)
राजा का ज्येष्ठ पुत्र था। इसकी माता का नाम दोषा था प्रतीर-- भौत्य मनु का पुत्र ।
| (भा. ४.१३.१४)। ४७०