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________________ प्रतर्दन प्राचीन चरित्रकोश प्रतर्दन महाभारत में इसे ययाति की कन्या माधवी से स्वर्ग से नीचे गिरा, तब इसने अपना पुण्य देकर उसे उत्पन्न पुत्र कहा गया है (म. स.८; व. परि. १. क्र. पुनः स्वर्ग भेजा था (म. आ. ८७.१४-१५)। २१. ६: पंक्ति ९७; उ. ११५. १५ )। ययाति | एक बार यह नारद के साथ रथ में बैठकर जा रहा था, से जोड़ा गया इसका यह सम्बन्ध कालदृष्टि से असंगत | तब एक ब्राह्मण ने इसके रथ के अश्व माँग लिये। यह है। भीमरथ प्रतर्दन ने शूर-वीरता के कारण ही धुमत् , स्वयं अपना रथ खींचकर ले जाने लगा। बाद में कुछ शत्रुजित् , कुवलयाक्ष, ऋतध्वज, वत्स आदि नाम प्राप्त । ब्राह्मणादि और आये और उन्होंने भी अश्व माँगे । परन्तु किये थे ( विष्णु. ४.५-७)। पास में अश्व न होने के कारण यह ब्राह्मणों की माँग पूरी न कर सका, और त्रस्त होकर इसने उन्हें कुछ अपभीमरथ को काशिराज दिवोदास नामक पुत्र शब्द भी कहे । अतःभाइयों के साथ स्वर्ग जाते जाते आधे भारद्वाज के प्रसाद से हुआ था। दिवोदास के मार्ग से यह नीचे गिर गया (म. व. परि. १ क्र. २१. पितामह हर्यश्व को हैहय राजाओं ने अत्यधिक त्रस्त | ६. पंक्ति. ११०-१२५)। किया, तथा उसका राज्य छीन लिया। हर्यश्व का | ___ इसे अलर्क के सिवाय अन्य पुत्र भी थे, पर अलर्क पुत्र सुदेव तथा पौत्र दिवोदास दोनों हैहयों को पराजित न | ही इसके बाद सिंहासन का अधिकारी हुआ (भा. ९. कर सके । इसलिये दिवोदास ने हैहयों का पराभव करने | १७.६)। वाला प्रतर्दन नामक पुत्र भारद्वाज से माँगा। यह जन्म लेते ही तेरह वर्ष का था, एवं सब विद्याओं में पारंगत प्रतर्दन का तत्त्वज्ञान-कौषीतकी उपनिषद में इंद्रथा (म. अनु. ३०.३०)। प्रतर्दन संवाद से प्रतर्दन के तत्त्वज्ञान का परिचय प्राप्त है । | दिवोदास का पुत्र प्रतर्दन तत्त्वज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने प्रतर्दन का पराक्रम-माहिष्मती के हैहयवंश में | के लिए इन्द्र के पास गया । इन्द्र ने इसे बताया- 'ज्ञान पैदा हुये चक्रवर्ती कार्तवीर्य अर्जुन ने नर्मदा से लेकर से परम कल्याण प्राप्त होता हैं । ज्ञाता सर्व दोषों से और हिमालयप्रदेश तक अपना साम्राज्य स्थापित किया पापों से मुक्त होता है। प्राण ही आत्मा है। संसार का • था। काशी के दिवोदास आदि राजा कार्तवीर्य से परास्त | | मूल तत्त्व प्राण है। प्राण से ही सब दुनिया चलती है। . होकर अपने प्रदेश से भाग गये। काशी राज्य जंगल में हस्तपादनेत्रादि विरहितों के सारे व्यवहारों को देखने से 'बदल गया, और उसे नरभक्षक राक्षसों ने अपना अड्डा पता चलता है कि, संसार में प्राण ही मुख्य तत्त्व है।' बना लिया। ___ उपनिर्दिष्ट इन्द्रप्रतर्दन संवाद में इन्द्र काल्पनिक है।प्रस्तुत -पिता के दुःख का कारण ज्ञात होते ही, प्रतर्दन नेवार संवाद में इन्द्र द्वारा प्रतिपादित समस्त तत्वज्ञान प्रतर्दन हैहयवंशीय तालजंघ, वीतहव्य तथा उसके पुत्रों को, द्वारा ही विरचित है। इस संवाद से प्रतर्दन की प्रत्यक्ष - पराक्रम के बल पर युद्ध में परास्त कर, काशीप्रान्त को प्रमाणवादिता स्पष्ट है। पुनः प्राप्त किया। क्षेमकादि राक्षसों का वध कर, एक बार | ___ महाभारत एवं पुराणों में निर्दिष्ट प्रतर्दन दो व्यक्ति न फिर से काशीप्रदेश को बसा कर इसने उसे सुगठित राज्य | होकर, एक ही व्यक्ति का बोध कराते हैं। जिस दिवोदास का रूप दिया। राजा के वंश में यह पैदा हुआ, उसकी वंशावलि महायह शूरवीर होने के साथ साथ परमदयालु एवं भारत तथा पुराणों में कुछ विभिन्न प्रकार से दी गयी है। ब्राह्मणभक्त भी था। इसके द्वारा अपने सब पुत्रो को मरते | | इसीलिए इस प्रकार का भ्रम हो जाता है। पर वास्तव देख कर वीतहव्य घबरा कर भार्गव के आश्रय में गया। में महाभारत तथा पुराणों के दिवोदास दो अलग अलग भार्गव ने उसको उबारने के लिये प्रतर्दन से कहा, 'यह | व्यक्ति हैं। उनमें से महाभारत में निर्दिष्ट दिवोदास का ब्राह्मण है. अतएव इसका वध न होना चाहिये । पश्चात् | वंशज प्रतदेन था। प्रतर्दन ने उसे छोड़ दिया। २. उत्तम मन्वन्तर का एक देवगण, जिसमें निम्नएक बार इसने अपना पुत्र ब्राह्मण को दान दे दिया | लिखित देव अन्तर्निहित हैं:--अवध्य, अवरति, ऋतु, था, यही नहीं इसने ब्राह्मण को अपनी आँखें (म. शां. | केतुमान् , धिष्ण्य, धृतधर्मन् , यशस्विन् , रथोर्मि, वसु, २४०. २०), तथा शरीर (म. अनु. १३७-५)। तक | वित्त, विभावसु, सुधर्मन् (ब्रह्मांड. २.३६. ३०-३१)। ब्राह्मण को दान स्वरूप दी थीं । इसका पितामह ययाति । ३. शिव देवो में से एक । ४६७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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