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प्रजापति
प्राचीन चरित्रकोश
प्रजापति
८.१२:१४ ) ।
अन्त में, उसने मृत्यु पर भी विजय प्राप्त की ऐ ना. तुम्हें अपना तेज दे दूंगा, तो फिर मुझे कौन पूँछेगा ?' | इस पर इन्द्र ने उत्तर दिया, 'तुम 'क' नाम से प्रसिद्ध होगे । अपना तेज मुझे दे डालने के बाद भी तुम्हारा प्रभापतित्व कायम रहेगा। इतना सुन कर प्रजापति ने अपने तेज को एक ' पदक' का रूप देकर उसे इन्द्र के मस्तक पर बाँध दिया। तब कहीं इन्द्र इस योग्य बना कि, वह देवों का अधिपति धनकर उन पर राज्य कर सके ( तै. बा. २. २.१० ) ।
कम्याविवाह एक चार प्रजापति ने सोम एवं तीन वेद नामक पुत्र, तथा सीतासावित्री नामक कन्या उत्पन्न की। उन में से तीन वेदों को सोम ने अपनी मुट्ठी में बन्द कर रखा था ।
पश्चात्, सीतासावित्री के मन में सोम से विवाह करने की इच्छा उत्पन्न हुयी। पर सोम सीतासावित्री को न चाह कर, प्रजापति की श्रद्धा नामक अन्य कन्या से विवाह करना चाहता था । प्रजापति की सहानुभूति सीतासावित्री के प्रति अधिक थी, और यह चाहता था कि, सोम का विवाह सीतासावित्री से ही हो। इसी कारण, सत्यह लेने के लिए आयी हुयी सीता सावित्री को इसने एक वशीकरण मंत्र से अवगत कराया । ' स्थागर' नामक एक सुगन्धमय वनस्पति को घिसकर इसने उसके मस्तक में चन्दन की भाँति टीका लगाकर उसे आशीष देकर विदा किया।
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यज्ञारम्भ – एक बार प्रजापति ने यज्ञ किया, जिसमें यह स्वयं 'होता' बना। इस समय सभी देवताओं की इच्छा थी कि, मुझे अधिष्ठाता मान कर यह यज्ञ किया जाय ऐसी स्थिति में, प्रजापति ने 'आपो रेवती (ऋ. १०.३०.१२) मन्त्र के द्वारा वशारम्भ किया। 'आप' तथा 'रेवती' इन दो शब्दों से सब देवों का निर्देश होता है, इसलिये प्रत्येक देव को संतोष हुआ कि यश का प्रारंभ मुझे सम्बोधित करके किया गया है ( ऐ. बा. २.१६ ) ।
एक बार इसके तीनों 'पुत्र -- देव, मनुष्य तथा असुर उपदेश ग्रहण करने की इच्छा से आये प्रशपति ने उन तीनों को 'ढ़' का उपदेश दिया । इस 'द' उपदेश का आशय हर एक पुत्रों के लिए मिन्न भिन्न था। देवों के लिए दमन, मनुष्यों के लिए दान, तथा असुरों के लिए दया का उपदेश देकर, इसने उन्हें अपनी मुक्ति प्राप्त करने का एकमेव साधन बताया (बृ. उ. . ५.१ - ३ ) । सृष्टि निर्माण व व्यवस्था एक बार प्रशपति के मन में सृष्टिसृजन की इच्छा उत्पन्न हुयी । इसने अपने अन्तर्मन से एक धूम्रराशि का निर्माण किया, जिससे अमि, ज्योति, ज्याला एवं प्रभा आदि उत्पन्न हुए पश्चात्, उन सबने मिलकर एक ठोस गोले का रूप धारण किया, जिससे प्रजापति का मूत्राशय बना । इस मूत्राशय को परमेश्वर ने फोड़ा, जिससे समुद्र की उत्पत्ति हुयी . समुद्र, क्योंकि मूत्राशय से उत्पन्न हुआ है, इसी से उसका पानी खारा रहता है तथा वह पीने लायक नहीं होता।
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अलमय समुद्र से ही प्रजापति ने क्रमानुसार, पृथ्वी अंतरिक्ष तथा द्यौ उत्पन्न किये। इसके बाद, अपने शरीर से असुरों का निर्माण कर, दिवस रात्रि तथा अहोरात्र के संधिकाल को बनाया। इस प्रकार, प्रजापति ने सारी . प्रजा का निर्माण किया ( तै. बा. २.२.९ ) ।
देवों को पैदा करने के उपरान्त प्रजापति ने देवों में कनिष्ठ इन्द्र को उत्पन्न कर, उससे कहा, 'मेरी आशा से तुम स्वर्ग में जाकर देखो पर शासन करो।'
इन्द्र संवर्ग गया, पर यहाँ किसी ने उसे अपना राजा न माना, क्योंकि वह सबसे आयु में छोटा तथा शक्ति में अधिक न था । इन्द्र वापस आया, और प्रजापति से देशों के कथन को दुहरा कर उसने अपने विशेष तेज को देने की याचना की। प्रजापति ने इन्द्र से कहा ' यदि
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तब सीता सावित्री सोम के यहाँ गयी वशीकरण के प्रभाव से सोम उस पर मोहित हो कर प्रेमभरा व्यवहार करने लगा, और शादी के लिए तैयार हो गया । किन्तु, शादी के पूर्व सीतासाबित्री ने सोम की प्रेमपरीक्षा लेने के लिए उसके सामने शर्त रखी 'यह उसके सिवा किसी अन्य नारी से भोग न करेगा, तथा मुट्ठी में छिपी हुयी वस्तु का उसे स्पष्ट ज्ञान करायेगा' । सोम को ये शर्ते मंजूर हुयीं और सीतासावित्री का विवाह सोम के साथ सम्पन्न हुआ। इसप्रकार वशीकरण के प्रभाव से दोनों सुखपूर्वक रहने लगे । तैत्तिरीय ब्राह्मण में, प्रजापति का यह वशीकरण प्रयोग विस्तार के साथ बताकर कहा गया है कि, जो इस वशीकरण का प्रयोग करेगा उसे इच्छित वस्तु प्राप्त होगी (ते. ब्रा २.२.१० ) ।
ऐतरेय ब्राह्मण में प्रजापति की कन्या का नाम 'सूर्यासावित्री' बताया गया है ( ऐ. बा. ४. ७ ) । अपनी इस कन्या का विवाह प्रजापति ने सोम के साथ निश्चित किया। सूर्यासावित्री के विवाहोत्सव में,
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