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पृथु
प्राचीन चरित्रकोश
पृथु
१४. एक सदाचारसंपन्न ब्राह्मण । एक बार यह कराया, एवं इस तरह एक नई संस्कृति एवं सभ्यता का तीर्थयात्रा करने जा रहा था। इसे पाँच विद्रूप प्रेतपुरुष
निर्माण किया । दिखलायी पड़े। वे सब अन्नदान के अभाव तथा याचकों | कृषि-कला के साथ साथ पृथु ने लोगों को एक जगह के साथ अशिष्ट व्यवहार के कारण निंद्य प्रेतयोनि में गये
बस कर रहना भी सिखाया । इस प्रकार, ग्राम, पुर, थे। उनमें से प्रत्येक व्यक्ति विकलांगी था । 'पर्युषित' पत्तन, दुर्ग, घोष, व्रज, शिबिर, आकर, खेट, खर्वट आदि बेढब था। ' सूचिमुख' सुई के समान था। शीघ्रग पंगु |
नए नए स्थानों का निर्माण होने लगा। इसके साथ ही था। 'रोहक' गर्दन न उठा सकता था, तथा 'लेखक' | साथ लोगों को पृथ्वी के गर्भ में छिपी हुयी सकल औषधि, को चलते समय अत्यधिक कष्ट होता था। बाद में, इस
धान्य, रस, स्वर्णादि धातु, रत्नादि एवं दुग्ध आदि प्राप्त ब्राह्मण ने उन्हें प्रेतत्व की निवृत्ति के लिए आहार, आचार | करने की कला से इसने बोध कराया (भा. ४.१८)। तथा व्रतं बतलाये, तब उन सबका उद्धार हुआ (पा. इसने पृथ्वी के सारे मनुष्य एवं प्राणियों को हिंसक स. २७.१८-४६)। .
पशुओं, चोरों एवं दैहिक विपत्तियों से मुक्त कराया। पथ 'वैन्य-पृथ्वी का पहला राजा एवं राज- अपनी शासन-व्यवस्था द्वारा यक्ष राक्षस, द्विपाद चतुष्पाद संस्था का निर्माता (श. ब्रा. ५. ३.५.४; क. सं. ३७. सारे प्राणियों, एवं धर्म अर्थादि सारे पुरुषार्थों के जीवन ४; ते. ब्रा. २.७. ५. १, पद्म. भू. २८.२१)। इसी | को सुखकर बनाया। इसने अपने राज्य में धर्म को प्रमुखता कारण प्राचीन ग्रंथो में, 'आदिराज', 'प्रथमनृप', दी, एवं राज्यशासन के लिए दण्डनीति की व्यवस्था 'राजेंद्र', 'राजराज', 'चक्रवर्ति', 'विधाता', 'इन्द्र' दी। प्रजा की रक्षा एवं पालन करने के कारण इसे 'प्रजापति' आदि उपाधियों से यह विभूषित किया गया 'क्षत्रिय' तथा 'प्रजारंजनसम्राज्' उपाधि से विभूषित है। महाभारत मे सोलह श्रेष्ठ राजाओं में इसका निर्देश | किया गया (म. शां. ५९.१०४-१४०)। किया गया है (म. द्रो. ६९; शां. २९.१३२; परि. १. पृथु ने पृथ्वी पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यादि वर्गोंकी क्र.९)।
प्रतिष्ठापना की, एवं हर एक व्यक्ति को अपनी वृत्ति के ___पृथ्वीदोहन अथवा नव समाजरचना--इसने भूमि को
अनुसार उपजीविका का साधन उपलब्ध कराया। इसी अपनी कन्या मानकर उसका पोषण किया। इसी कारण
कारण यह संसार में मान्य एवं पूज्य बना (ब्रह्मांड. 'भू' को 'पृथुकन्या' या 'पृथिवी' कहते है (विष्णु.
२.३७.१-११)। १.१३; मत्स्य. १०; पद्म. भू. २८; ब्रह्म. ४; ब्रह्मांड.
महाभारत के अनुसार, कृतयुग में धर्म का राज्य था। २.३७; भा: ४.१८; म. शां. २९.१३२)।
अतएव दण्डनीति की आवश्यकता उस काल में प्रतीत पृथु के द्वारा पृथ्वी के दोहन की जाने की रूपात्मक न हुयी । कालान्तर में लोग मोहवश होकर राज्यव्यवस्था कथा वैदिक वाङ्मय से लेकर पुराणों तक चली आ रही | को क्षीण करने लगे। इसी कारण शासन के लिए राजनीति, है। इस कथा की वास्तविकता यही है कि, इसने सही शासनव्यवस्था एवं राजा की आवश्यकता पड़ी। पृथु ही अर्थों में पृथ्वी का सृजन सिंचन कर, उसे धन-धान्य से | पृथ्वी का प्रथम प्रशासक था। पूरित किया।
पृथु के 'पृथ्वीदोहन' की कथा पद्मपुराण में इस मानवीय संस्कृति के इतिहास में, कृषि एवं नागरी प्रकार दी गयी है। प्रजा के जीवन-निर्वाह व्यवस्था के व्यवस्था का यह आदि जनक था। इसके पूर्व, लोग पशु
लिए यह धनुष-बाण लेकर पृथ्वी के पीछे दौड़ा। भयभीत पक्षियों के समान इधर उधर घूमते रहते थे, प्राणियों को
होकर पृथ्वी ने गाय का रूप धारण किया। इससे विनती मार कर उनका माँस भक्षण करते थे। इस प्रकार पथ्वी | की, 'तुम मुझे न मारकर, मेरा दोहन कर, सर्व प्रकार की प्राणि-सृष्टि का विनाश होता जा रहा था. एवं उनके | के वैभव प्राप्त कर सकते हो। पृथ्वी की यह प्रार्थना हत्या का पाप लोगों पर लग रहा था। इसे रोकने के | पृथु ने मान ली एवं इसने पृथ्वी का दोहन किया (पन. लिए पृथु ने कृषि व्यवस्था को देकर लोगों को अपनी | स.८)। जीवकोपार्जन के लिए एक नए मार्ग का निर्देशन किया। दोहकगण-पृथ्वी की नानाविध वस्तुओं के दोहन यह पहला व्यक्ति था, जिसने भूमि को समतल रूप दिया, करनेवाले देव, गंधर्व, मनुष्य, आदि की तालिका अथर्वउससे अन्नादि उपजाने की कला से लोगों को परिचित | वेद में एवं ब्रह्मादि पुराणों में दी गयी है । उनमें से
प्रा. च. ५७]