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पुलस्त्य
प्राचीन चरित्रकोश
पुलस्त्य
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भृगु, अंपिरस, मरीचि, अत्रि, वसिष्ठ, पुलह एवं ऋतु | तृणबिंदु राजा का काल, त्रेतायुग का तीसरा मास माना (वायु. ४९.६८-६९)।
जाता है। विश्रवस् का निवासस्थान नर्मदा नदी के किनारे * स्वायंभुव मन्वन्तर में यह ब्रह्मा के उदान से | पश्चिम भारत प्रदेश में था (म. व. ८७.२-३)। उत्पन्न हुआ। यह स्वायंभुव दक्ष का दामाद तथा इन दो निर्देशों के आधार पर, पुलस्त्य का काल एवं स्थलशंकर का साढ़ था। दक्ष द्वारा अपमानित होने पर, शंकर निर्णय किया जा सकता है। ने इसे दग्ध कर मार डाला। दक्षकन्या प्रीति इसकी एक बार 'महीसागर संगमतीर्थ' अतिगर्व के कारण, पत्नी थी (ब्रह्मांड. २.१२.२६-२९; विष्णु. १.१०)। उद्धत हो उठा। इसलिये पुलस्त्य ने उसे 'स्तंभगर्व' यह __ शंकर के शाप से ब्रह्माजी के बहुत सारे पुत्र मर गये, नया नाम प्रदान किया (स्कंद. १.२.५.८)। ब्रह्माजी ने जिनमें यह एक था (मत्स्य.१९५)।
पुष्करतीर्थ पर किये यज्ञ समारोह में, अध्वर्यु के स्थान पर महाभारत के अनुसार, यह ब्रह्माजी के कान से उत्पन्न पुलस्य की योजना की गयी थी। हुआ था(म. आ.५९.१०; मत्स्य ३.६-८; वायु.६६.२२;
पुत्र-पुलस्य को इडविड़ा से विश्रवस् ऐडविड़ भा. ३.१२.२४)। ब्रह्माजी द्वारा उत्पन्न हुये प्रजापतियों में |
| नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ था। विश्रवस् से उत्पन्न यह एक था (मत्स्य. १७१.२६-२७; भा. ३.१२)।।
पुलस्त्यवंश की बहुत सारी संतति राक्षस थी। इस कर्दम प्रजापति की कन्यां हविर्भुवा अथवा हविर्भुक् इसकी
कारण पुलस्त्य ने अगत्य ऋषि का एक पुत्र गोद लिया पत्नी थी। महाभारत में इसके प्रतीच्या एवं संध्या नामक
(मत्स्य. २०२.१२-१३)। इसी दत्तोलि (दंभोलि) दो और पत्नियों का भी निर्देश प्राप्त है (म. उ.११५.
नामक पुत्र से, आगे चल कर, पुलस्त्यवंश की 'अगस्त्य ४६०% ११५.११)।
शाखा' का निर्माण हुआ। पुत्र-पुराणों में दी गयी पुलस्त्य के पुत्रों की नामावली
पुलस्त्यवंश-पुलस्त्यवंश की विस्तृत जानकारी इस प्रकार है :
महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त है (म. आ. ६६; वायु. (१) प्रीतिपुत्र-दानाग्नि, देवबाहु, अत्रि ( ब्रह्मांड.
७०.३१-६३; ब्रह्मांड. ३.८; लिंग. १.६३; मत्स्य. २०२, २.१२.२६-२९); दंभोलि (अगस्त्य) (विष्णु.१.१०)।
भा ४.१.३६)। इस वंश के लोग 'पौलस्त्य राक्षस' नामक : हविर्भुवापुत्र-अगस्त्य; विश्रवा (भा. ४.१.३६)।
सामूहिक नाम से प्रख्यात थे, जिसमें निम्नलिखित तीन .. इनके सिवा, पुलस्त्य को प्रीति से सद्वती नामक एक
शाखाओं का अंतर्भाव होता था :. कन्या उत्पन्न हुयी थी। २. वैवस्वत मन्वतर में पैदा हुआ आद्य पुलस्त्य ऋषि |
| (१) कुबेर वैश्रवण शाखा-पुलस्त्यपुत्र विश्रवस्. . . का पुनरावतार । शिवाजी के शाप से मरे हुए ब्रह्माजी
को बृहस्पतिकन्या देववर्णिनी से कुबेर नामक पुत्र हुआ। . के सारे मानसपुत्र, वैवस्वत मन्वंतर के प्रारंभ में ब्रह्मा जी कुबेर स्वयं यक्ष था, किंतु उसके चार पुत्र (नलकूबर,
द्वारा पुनः उत्पन्न किये । उस समय यह अग्नि के 'पिंगल' रावण, कुंभकर्ण, एवं बिभीषण), तथा एक कन्या (शूर्पकेशों में से उत्पन्न हुआ।
णखा ) राक्षस थे। उन्हीं से आगे चल कर, पौलस्त्य एक बार यह मेरु पर्वत पर तपस्या कर, रहा था। उस
| राक्षसवंश की स्थापना हुयी । इन राक्षसों का सम्राट स्वयं समय गंधर्वकन्यायें पुनः पुनः इसके समीप आकर इसकी
कुबेर ही था। तपस्या में बाधा डालने लगी। फिर इसने क्रुद्ध हो कर, (२) अगस्त्य शाखा-पुलस्त्य ने गोद में लिये उन्हें शाप दिया, 'जो भी कन्या मेरे सामने आयेगी, अगस्त्यपुत्र दत्तोलि (दंभोलि ) से आगे चल कर, अगस्त्य वह 'गर्भवती हो जायेगी।
नामक 'ब्रह्मराक्षस' वंश की स्थापना हुयी । ब्राह्मणवंश से वैशाली देश के तृणबिंदु राजा की कन्या गौ अथवा | उत्पन्न हुये राक्षसों को ब्रह्मराक्षस कहते थे। ये ब्रह्मराक्षस इडविड़ा असावधानी से इसके सामने आ गयीं । तुरंत | वेदविद्याओं में पारंगत थे, एवं रात्रि के समय, यज्ञयागादि अप्सराओं को इसके द्वारा दिये गये शाप के कारण, वह विधि करते थे । हिरण्यशंग पर ये कुबेर की सेवा करते गर्भवती हो गयी । बाद में पुलस्त्य से उसका विवाह हो गया, थे (वायु. ४७.६०-६१, ब्रह्मांड २.१८.६३-६४)। एवं उससे इसे विश्रवस ऐडविड़ नामक पुत्र उत्पन्न | इस शाखा के राक्षस प्रायः दक्षिण हिंदुस्थान एवं 'सीलोन' हुआ (म. व. २५८.१२ वा. रा. उ. ४)।
में रहते थे। ४३७