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________________ पुरूरवस् प्राचीन चरित्रकोश पुलस्त्य सत्यायु, स्याम इस प्रकार २२)। भी गंधर्वकन्याओं से विवाह किया था (कूर्मः १.२३. अपने मूलस्थान गंधर्वलोक से सहायता ली, तथा ४६)। अन्त में यह स्वयं एक गंधर्व बन गया। अपना राज्यशासन सुव्यवस्थित किया । पुरूरवस् के पितृव्य उर्वशी से इसे कुल छः पुत्र हये, जिनके नाम इस | वेन नामक राजा का भी ब्राह्मणों ने वध किया था। प्रकार थेः-आयु, श्रुतायु, सत्यायु, रय, विजय, जय (भा. धनलोभ के कारण अत्याचार करने से इसका नाश ९.१५.१)। महाभारत में उर्वशीपुत्रों के नाम इस प्रकार होने का निर्देश, कौटिल्य ने भी किया है (अर्थशास्त्र पृ. दिये गये है :-आयु, धीमत्, अमावसु, दृढायु, वनायु, । २२)। एवं श्रुतायु (म. आ. ७०.२२)। कई ग्रंथो में इसके | २. दीप्ताक्षवंश का एक कुलपांसन राजा । कुलपासन आठ पुत्रों का भी उल्लेख है और कुछ में सात पुत्र बताये | होने के कारण, अपने सुहृद एवं बांधवों के साथ इसका गए हैं (ब्रह्म. १०; लिंग १.६६; ह. वं.१.२७.१-२)। नाश हुआ (म. उ. ७२.१५)। भागवत में दिया गया है कि, इसने अग्नि को भी पुत्र पुरोचन--दुर्योधन राजा का म्लेच्छ मंत्री एवं मित्र । माना था (भा. ९.१५)। | दुर्योधन के कथनानुसार पांडवों के नाश के लिए इसने कुछ स्थानों पर रय, विजय तथा जय के स्थान पर | वारणावत में लाक्षागृह का निर्माण किया था (म. आ. 'धीमान् , 'अमावसु,' 'शतायु,' तथा 'विश्वावसु' पाठभेद | १३२. ८-१३)। भी मिलता है (वायु ९१.५१-५२)। मत्स्य, एवं अग्नि वारणावत नगरी में इसने पांडवों का स्वागत किया, पुराणों में इसके आठ पुत्रों के नाम इस प्रकार दिये गये एवं उन्हें समस्त सुख-सामग्री प्रदान कर लाक्षागृह में हैं:-आयु, दृढायु, अश्वायु, धनायु, धृतिमत्, वसु, शुचिविद्य | ठहराया (म. आ. १३४.८-१२)। बाद में, पांडवों के साथ (दिविजात), शतायु (मत्स्य. २४.३३-३४; अमि. रहने के उद्देश्य से यह वहाँ गया। उस समय इसने अपने २७४.१५, पद्म. स. १२)। रथ में खर जोत रक्खे थे । अन्त में, अपने बनाये हुये . इसके पुत्रों में से आयु को प्रतिष्ठाननगरी का राज्य | लाक्षागृह में ही जल कर यह मर गया (म. आ. १३२प्राप्त हुआ, तथा अमावसु (विजय) कन्नौज का अधिपति १३६)। बना। इसके पुत्रों के जो सात अथवा आठ नाम पुराणों पुरोजव--(स्वा. प्रिय.) एक राजा। भागवत के. में प्राप्त होते हैं, वे संभवतः किसी एक या दो व्यक्तियों | अनुसार यह मेधातिथि के सात पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र था। के नामांतर होंगे। क्योंकि इसके दो प्रमुख पुत्र आयु तथा २. प्राण नामक वसु का कनिष्ठ पुत्र, जिसकी माता अमावसु के नाम सारे पुराणों में एकवाक्यता से प्राप्त | का नाम ऊर्जस्वती था (भा. ६.६.१२)। होते हैं। ३ अनिल नामक वसु का पुत्र। पुरूरवस्कथा का अन्वयार्थ--ब्राह्मण लोगों के साथ पुराहवे--धर्मसावर्णि मनु के पुत्रों में से एक । पुरूरवस् द्वारा किये विरोध का कथाभाग, ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जाता है। वैवस्वत मनु के समय ब्राह्मणों पुलक-एक मृगरूपी दैत्य । तप कर इसने शंकर को तथा क्षत्रियों में सहकार्य था। ऐल पुरूरवस् के समय प्रसन्न किया, तथा उनसे अदभुत सुगंध के प्राप्त की याचना ब्राह्मण-क्षत्रियों में विरोध पैदा हुआ । ऐल पुरूरवस् ब्राह्मणों कर, वर प्राप्त किया। बाद में, उस सुगंध से यह देवस्त्रियों के साथ विरोध करने लगा। ब्राह्मणों की दौलत पुरूरवस् को मोहित कर, संसार को त्रस्त करने लगा। ऐसी ने हठ से जब्त कर ली। सनत्कुमार ने ब्रह्मलोक से आकर, परिस्थिति में देवों ने शंकर से इसकी शिकायत की। पुरूरवस् से को ब्राह्मणविरोध न करने के लिये कहा। फिर भी शंकर ने कुपित होकर, इससे असुर देह छोड़ने के लिए पुरूरवस् ने एक न सुनी । तब ब्राह्मणों ने लोभवश पुरू कहा। इसने शंकर के आदेश को मानते हुए उनसे रवस् को शाप दिया, एवं उसे नष्ट करने का प्रयत्न किया। प्रार्थना की, कि मेरे द्वारा धारण की हुयी सुगंध मुझ से तब पुरूरवस् ने उर्वशी के मध्यस्थता से गंधर्वलोग की वापस न ली जाये (स्कंद १.३.१.१३)। सहायता प्राप्त की। गंधर्वलोक से अग्नि को प्राप्त कर २. मन्स्य के अनुसार, शुनक राजा का नामांतर।। पुरूरवस् ने अपना कार्य फिर शुरू किया (म. आ.७०. पुलस्त्य--ब्रह्माजी के आठ मानसपुत्रों में से एक, जो १२-२१)। इस का तात्पर्य यह होता है कि, स्थानीय छः शक्तिशाली महर्षियों में गिने जाते हैं (म. आ.६०.४)। . लोगों के विरोध की शान्त करने के लिये, पुरूरवस् ने | ब्रह्माजी के अन्य सात मानस पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं:
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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