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अनेनस्
अनेन (सो. पुरुरवस्) आयु राजा के पांच पुत्रों में से कनिष्ठ (भा. ९.१७. १-२ ) इसकी माता का नाम स्वभांनवी (म. आ. ७०.२२) । इसका पुत्र प्रतिक्षत्र । इसका वंश दिया गया है (ह. वं. १.२९.९५ महा ११.२०-२१ ) ।
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२. (प.) कुकुत्स्थ राजा का पुत्र भागवत मत में पुरंजय का पुत्र इसे पृथु नामक पुत्र था ( म. व । १९२.२) ।
३. (सू. निमि. ) विष्णुमत में क्षेमारिपुत्र । इसका पुत्र मीनरथ ।
अनेहहि - अंगिराकुल का एक गोत्रकार ।
अनोवैन - ब्रह्मांड के मत में व्यास के साम शिष्यपरंपरा का लौगाक्षी का शिष्य ( व्यास देखिये) ।
अनौपम्या बांणासुर की पत्नी ।
प्राचीन चरित्रकोश
अन्तक - ( शुंग. भविष्य. ) सुज्येष्ठ का पुत्र । अंतरिक्ष - ( स्वा. प्रिय.) अपभदेव के सो पुत्रों में से नौ तत्यशानियों में से एक यह बड़ा भगवद्भक्त था 1 इसने जनक को उपदेश दिया था ( भा. ५.४ ९-१२ ११.२.२-१६ ) ।
२. ( . . भविष्य) मत्स्य के मत में निराश्व का पुत्र विष्णु तथा वायु के मत में किचरका पुत्र तथा भागवत मत में पुष्कर का पुत्र ।
३. मुरा के सात पुत्रों में से दूसरा। इसका वध कृष्ण ने किया (भा. १०.५९ ) ।
४. एक व्यास (व्यास देखिये) ।
५. आय. नामक देवताओं में से एक।
६. (सु. इ. ) भविष्य के मत में केशीनर का पुत्र । अंतर्धान - ( स्वा. उचान. ) पृथु के पुत्रों में से एक। विजिताश्च को, अंतर्हित होने की शति के कारण,
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यह
नाम दिया गया था।
अनावृष्टि इसका पुत्र । इसे तंमु, महान्
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अंधक
नामक चार पुत्र थे (म. आ. ८९.११)। ऋतेयु का पुत्र । इसका पुत्र प्रतिरथ (गरुड. १४०० १-२ ) । को तक्षककन्या ज्वलन्ती से उत्पन्न पुत्र । इसने सरस्वती नदी के किनारे द्वादशवार्षिक सत्र किया। सत्र समाप्त होने पर सरस्वती नदी स्त्री रूप में प्रगट हुई तथा अपने से विवाह करने के लिये उसने इसे अनुरोध किया। तब इसने उससे विवाह किया। उससे इसे तंमु नामक पुत्र हुआ ( म. आ. ९०.१२; रंतिभार तथा मतिनार देखिये) । २. (सो. यदु. ) कंवलचर्हिप का पुत्र । इसका पुत्र तमोजा ।
अंत्य-- भृगुपुत्र यह देवो में से एक है।
अंत्यायन एक पुत्र
अंतिक - (सो. यदु. ) मत्स्य के मत में यदु पुत्र । अंतिदेव - (सो. पृरु. ) मत्स्य के मत में गुरुधिपुत्र । अंतिनार - ( सो. पूरु. ) भद्राश्व का पुत्र । इसे तंसुरोध, प्रतिरथ तथा पुरस्ता नामक तीन पुत्र थे ( अ. २७८. ३ - ५ ) । ऋयू का पुत्र । इसे वसुरोध, प्रतिरोध तथा सुबाहु नामक पुत्र थे (ब्रह्म, १२.५१-५३) कालना । तक्षककन्या से ऋचेयु को उत्पन्न पुत्र । इसे तंसु, प्रतिरथ तथा सुबाहु नामक पुत्र तथा गौरी नामक कन्या थी यही मांधाता सन्नतेयु अथवा अतिरथ व
की माता थी (ह. वं. १.३२.१ - ३ )
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अंधक- यह पार्वती के धर्मबिंदुओं से उत्पन्न हुआ। हिराण्याक्ष पुत्रप्राप्ति के लिये तपश्चर्या कर रहा था, उस समय शंकर ने उसे यह पुत्र दिया ( लिङ्ग १.९४ ) । हिरण्याक्ष तथा हिरण्यकश्यपु की मृत्यु के पश्चात् यह गद्दी पर आया । परंतु अनन्तर पार्वती को हरण कर ले जाने की योजना इसने की, तब अवंती देश के महाकाल वन में, शंकर का इससे घनघोर युद्ध हुआ। इस युद्ध में, इसके प्रत्येक रक्तबिंदु से इसी के समान व्यक्ति उत्पन्न हो कर, अंधको से संपूर्ण संसार व्याप्त हो गया तब शंकर ने अंकों के रक्त को प्राशन करने के लिये, मातृका उत्पन्न कीया तथा उन्हें अंधक का रक्त प्राशन करने के लिये कहा । वे रक्त पी कर तृप्त हो जाने के बाद, पुनः रक्तबिंदुओं से अगणित अंधक उत्पन्न होने लगे । उन्होंने शंकर का अजगव धनुष्य भी हरण कर लिया (पद्म. सु. ४६ ) |
अंत में शंकर त्रस्त हो कर विष्णु के पास गया। विष्णु ने शुष्करेवती उत्पन्न की, तथा उन्होंने सब अंधका नाश कर दिया। शंकर ने मुख्य अंधक को सूली पर चढावा, उस समय अंधक ने उसकी स्तुति की। तब शंकर ने प्रसन्न हो कर इसे गणाधिपत्य दिया (मत्स्य. १७९ ) । इसने पार्वती के लिये स्पष्ट मांग की, इसलिये शंकर का तथा इसका युद्ध हुआ। परंतु शुक्राचार्य संजीवनी विद्या से मृत असुरों को जीवित कर देते थे, इससे इसकी शक्ति कम न होती थी तब शंकर ने शुक्राचार्य को निगल लिया तथा अंधक को गणाधिपत्य दे कर संतुष्ट किया ( शिव. रुद्र. यु. ४८ पद्म सु. ४६. ८१) । रणों का मुख्य स्थान इसे देने के पश्चात् इसका नाम भृंगीरीटी रखा गया । इसके पुत्र का नाम आदि है।
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