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________________ पितामह चौथी से सातवीं ईसवी के बीच माना जाता है । पितृ-- दक्षकन्या स्वधा का पति । इसे 'पितर नामांतर भी प्राप्त है ( पितर देखिये) । प्राचीन चरित्रकोश पितृवर्तिन - कुरुक्षेत्र के कौशिक ब्राह्मण के सात पुत्रों में से कनिष्ठ पुत्र । इसके स्वसृप (खसृप ), क्रोधन, हिंस्र, पिशुन, कवि और वाग्दुष्ट आदि भाई थे। ये सात भाई गर्ग ऋषि के शिष्य बन कर रहे थे । हरिवंश के अनुसार, कौशिक विश्वामित्र नामक इनके पिता ने इन्हें शाप दिया, तत्पश्चात् यह एवं इसके भाई गर्ग ऋषि के शिष्य बने । पिता के पश्चात् इन्हें बड़ा कष्ट सहना पड़ा। एक दिन सातो भाई गर्ग की' कपिला नामक गाय को उसके बछड़े के साथ अरण्य में ले गये। वहाँ क्षुधाशांति के हेतु, इसके भाइयों ने गाय को मार कर खाने की योजना बनायी । कवि तथा स्वसृम ने इसका विरोध किया, परन्तु श्राद्धकर्मनिपुण पितृवर्ति ने कहा, 'अगर गोवध करना ही है, तो पितृ के श्राद्ध के हेतु करो, जिससे गाय को भी सद्गति मिलें और हम लोगों को पाप न भुगतना पड़े ' । इसका कथन सब को मान्य हुआ। दो भाइयों को देवस्थान पर, तीन को पितृस्थान पर, तथा एक को अतिथि के रूप में बैठाया, एवं स्वयं को यजमान बनाकर, पितृवर्तिन् ने गाय का 'प्रोक्षण किया। संध्या . के समय गर्गाश्रम में वापस आने के बाद, बछड़ा गुरु को सौंप कर, इन्होंने बताया, कि 'धेनु व्याघ्र द्वारा भक्षित की गयी' । कालांतर में इन सातों बन्धुओं की मृत्यु हो गयी। क्रूरकर्म करने, तथा गुरु से असत्य भाषण करने के कारण, इन लोगों का जन्म व्याधकुल में हुआ । इस योनि में इनके नाम निर्वैर, निर्वृति, शान्त, निर्मन्यु, कृति, वैधस तथा मातृवर्तिन् थे । पूर्वजन्म में किये पितृतर्पण के कारण, इस जन्म में, ये 'जातिस्मर' बन गये थे । मातृपितृभक्ति में वैराग्यपूर्वक काल बिता कर इनकी मृत्यु हुयी । मृत्यु के पश्चात् इन्हें कालंजर पर्वत पर मृगयोनि प्राप्त हुयी । मृगयोनि में इनके नाम निम्नलिखित थे:-- उन्मुख, नित्यवित्रस्त, स्तब्धकर्ण, विलोचन, पंडित, घस्मर तथा नादिन् कहा जाता है । कहा जाता है, अभी तक कालंजर पर्वत पर इनके पदचिह्न दिखाई पड़ते हैं। यह कालंजर पर्वत, वर्तमान बुंदेलखण्ड के बांदा जिले में बदौसा तहसील में स्थित, कालंजर ही होगा । पितृवर्तिन तीसरे जन्म में, ये शरद्वीप में चक्रवाक पक्षी बने । इस जन्म में, इनके नाम इस प्रकार थे : – निस्पृह, निर्मम, क्षांत, निर्द्वन्द्व, निष्परिग्रह, निर्वृत्ति तथा निभृत (ह. वं. १.२१.३१ ) । पद्म पुराण में, इनके नाम इस प्रकार दिये गये है : --सुमना, कुसुम, वसु, चित्तदर्शी, सुदर्शी, ज्ञाता तथा ज्ञानपारंग (पद्म. सृ. १० ) । मस्त्यपुराण के अनुसार, मृगयोनि में इनके नाम इस प्रकार थे: सुमनस्, कुमुद, शुद्ध, छिद्रदर्शी, सुनेत्रक, सुनेत्र तथा अंशुमान् ( मस्त्य. २०.१८ ) । चौथे जन्म में ये मानससरोवर पर हंस पक्षी हुये । उस समय के इनके नाम हरिवंश में प्राप्त हैं, पर वहाँ भिन्न भिन्न अध्यायों में भिन्न भिन्न नाम दिये गये है। छिद्रप्रदर्शन, सुनेत्र तथा स्वतंत्र । अन्य स्थान पर वे इस पर उनके नाम इस प्रकार हैं:-सुमना, शुचिवाच, शुद्ध, पंचम, प्रकार प्राप्त हैं: -- पद्मगर्भ, अरविंदाक्ष, क्षीरगर्भ, सुलोचना, उरुबिंदु, सुबिंदु तथा हेमगर्भ । पद्मपुराण तथा मत्स्यपुराण में 'हंसयोनि ' नहीं दी गयी है, परन्तु उन पुराणों के चक्रवाकयोनि' में दिये गये नामों में, तथा हरिवंश में 'हंसयोनि' के प्रथम दिये गये सात नामों में अत्यधिक साम्य है । एक बार ये सातो बन्धु मानससरोवर पर तपश्चर्या कर रहे थे । तत्र कांपिल्य नगर का पुरूकुलोत्पन्न नीप राजा 'विभ्राज' अपने पत्नी के सहित वहाँ आया, एवं सरोवर में क्रीड़ा करने लगा । पद्मपुराण में इसी राजा का नाम 'अणुह' दिया गया है। राजा का ऐश्वर्य देख कर, स्वतंत्र ( पितृवर्तिन् ), छिद्रदर्शन (कवि ), तथा सुनेत्र (स्वसृप ) के मन में ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए लिप्सा जागृत हुयी । फिर अन्य भाइयों ने क्रुद्ध हो कर इन तीन भाइयों को शाप दिया । इस शाप के कारण, स्वतंत्र ( पितृवर्तिन् ) अगले जन्म में विभ्राज राजा के कुल में जन्म लेने को विवश हुआ । विभ्राज राजा का पुत्र अणुह एवं उसकी पत्नी कृत्वी के कोख में, इसने ब्रह्मदत्त नाम से जन्म लिया । इन सातो बंधुओं द्वारा बध की गयी कपिला, नये जन्म में सन्नति नाम से देवल ऋषि की कन्या, एवं ब्रह्मदत्त की पत्नी बनी। उसे ब्रह्मदत्त से विष्वक्सेन नामक पुत्र हुआ । यह पुत्र पूर्वजन्म में स्वयं राजा विभ्राज ही था । ब्रह्मदत्त वेदवेदांगों में निपुण था, एवं उसको समस्त प्राणीजाति की भाषाओं का ज्ञान था ( ब्रह्मदत्त देखिये ) । ४२३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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