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पर्णिनी
प्राचीन चरित्रकोश
पलिंगु
पर्णिनी-एक अप्सरा (ब्रह्मांड. ३.७.१८-२४)। के जन्म में हम दोनों हंस होनेवाले हैं, तथा उसके बाद
पर्युषित--एक पापी पुरुष । प्रेतयोनि में गये इस | हमें मनुष्य देह प्राप्त होगी। उसके कथनानुसार इसे मनुष्य का पृथु नामक ब्राह्मण ने उद्धार किया (पद्म. स. | फिर मनुष्यजन्म प्राप्त हुआ (पद्म. उ. १२९)। ३२)।
-पाणिनि के अनुसार एक आयुधजीवि संघ पर्वण--रावण के पक्ष के राक्षसों एवं पिशाचों का एक | (पा. स. ५.३.११७) । ऋग्वेद में इन लोगों का निर्देश दल (म. व. २६९.२)।
पृथु लोगों के साथ 'पृथु-पर्शव' नाम से प्राप्त है (ऋ.७ पर्वत-एक देवर्षि । यह कश्यप ऋषि का मानसपुत्र | ८३.१) । इन दो लोगों ने सुदास राजाको मदद दी, एवं (ब्रह्मांड. ३.८.८६), एवं नारद महर्षि का भतीजा था | मिल कर कुरुश्रवण राजा को पराजित किया (ऋ. १०. (म. स. ४.१३; ७.९, १०.२७; शां. ३०.२८)। महा- ३३.२)। लुडविग के अनुसार, आधुनिक मध्य एशिया भारत में अनेक स्थलों पर, यह एवं नारद का साथ साथ । | में रहनेवाले 'पर्थियन' एवं पर्शियन लोग ही, संभवतः निर्देश प्राप्त है। इन दोनों को गंधर्व एवं देवर्षि माना प्राचीन 'पृथुपार्शव' मानवसंघ रहा होगा (लुडविग, ऋग्वेद जाता है।
अनुवाद)। यह जनमेजय के सर्पसत्र का सदस्य था (म. आ. ४८. प्राचीन पर्शिया के लोगों के साथ वैदिक आर्यों का ८)। यह युधिष्ठिर की सभा में (म. स. ४.१३), इंद्र- | घनिष्ठ संबंध था। उस ऐतिहासिक संबंध को पृथु एवं सभा में (म. स. ७.९), एवं कुबेरसभा में (म. स. पशुओं के निर्देश से पुष्टि मिलती है। भाषाशास्त्रीय दृष्टि १०.२६) विराजता था। यह शरशय्या पर पड़े हुये भीष्म से. वैदिक 'पर्श' एवं प्राचीन ईरानी 'पास' तथा के दर्शन के लिये गया था (भा. १.९.६)। पांडवों के | बावेरु भाषा में प्राप्त 'परसु' (बहिस्तून शिलालेख) वनवासकाल में, यह उन्हें मिलने 'काम्यकवन' गया था, | ये तीन ही शब्दों में काफी साम्यता है। एवं शुद्धभाव से तीर्थयात्रा करने की आज्ञा उन्हें दी थी |
__'पर्श' संघ का हरएक सदस्य 'पार्शव' कहलाता .(म. व. ९१.१७-२५)।
था । पाणिनि के समय, ये लोग भारत के दक्षिणपश्चिम एक बार संजय राजा की कन्या दमयंती से, नारद एवं के प्रदेश में रहते थे । उत्तर भारत में रहनेवाले 'पार्थोई' यह दोनों एकसाथ प्रेम करने लगे। पश्चात् दमयंती एवं | लोगों का निर्देश 'पेरिप्लस' में प्राप्त है। . नारद का विवाह होने पर, इसने क्रुद्ध हो कर नारद को
२. ऋग्वेद के दानस्तुति में निर्दिष्ट एक राजा (ऋ. शाप दिया, 'तुम वानरमुख बनोंगे' (म. शां. ३०.२४;
| ८.६.४६ )। यह संभवतः 'पशु' मानवसंघ का राजा नारद देखिये)।
रहा होगा । वत्स काण्व ऋषि का प्रतिपालक ' तिरिंदर . ब्रह्मसरोवर के तट से, अगस्त्य ऋषि के कमलों | पारशव्य' नामक एक राजा था (सां. श्री. १६.११.२०) • की चोरी होने पर, अन्य ऋषियों के साथ इसने भी |
वह संभवतः इसी 'पशु' राजा का पुत्र होगा। 'शपथ खायी थी (म. अनु. १४३.३४)।
शु मानवी--पश लोगों की एक राजकुमारी (ऋ. - पर्वत काण्व-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.१२, |
१०.८६.२३)। कात्यायन के अनुसार, यह पशु लोगों में ९.१०४; १०५)। नारद के साथ इसका कई बार उल्लेख
से एक स्त्री का नाम था (पा. सू. ४.१.१७७ वार्तिक . आया है (ऐ. ब्रा. ८.२१, ७.१३; ३४; सां. श्री. १५. | २)। इसे कल बीस पत्र हये थे। १७.४ )। इसे देव भी माना गया है ।
___ सायण के अनुसार, यह एक मृगी का नाम था । पर्वतायु--बालधि ऋषि का पुत्र । 'मेधावी' इसीका ।
पलस्तिजमदग्नि-एक ऋषि इसने ससर्परीविद्या सूर्य से नामांतर था।
ला कर विश्वामित्र को दी । सायण इसका अर्थ दीर्घायुषी पर्वतेश्वर--विंध्य देश का राजा । प्रजा को अत्यधिक
जमदग्नि लेते हैं (ऋ. ३.५३.१६)। त्रस्त करने, तथा द्रव्य का अति लोभ करने के कारण, यम ने इसे घोर नरक में भेजा। बाद में इसे वानर का जन्म | पलांडु- एक यजुर्वेदी श्रुतर्षि । प्राप्त हुआ। अपहार के कारण, इसका पुरोहित सारसपक्षी पलाला-सप्तमाताओं में से एक (म. व. २१७.९)। बना। एक बार यह वानर उस पक्षी को पकड़ने के लिये पलिंगु- इसका उल्लेख हिरण्यकेशी शाखा के पित. गया। तब सारस पक्षी ने गतजन्म बता कर कहा, 'बाद तर्पण में है (स. गु. २०,८.२०)।
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