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________________ अदूर . प्राचीन चरित्रकोश अनंतभागिन् अदूर-रुद्रसावर्णि मनु का पुत्र । उसका नालच्छेदन किया तथा उसे अपनी राधा नामक अदृश्यंती-मैत्रावरुणी वसिष्ठपुत्र शक्ति की पत्नी पत्नी को सौंप कर, पुत्र के समान उसका पालन किया तथा पराशर ऋषि की माता । (भा. ९.२३.१३; म. आ. ६७; १३७: व. २९३)। २. चित्रमुख ब्राह्मण की कन्या । इसका पिता पहले अधिसामकृष्ण-(सो. पूरु. भविष्य.) वायु, विष्णु वैश्य था, परंतु तप से ब्राह्मण हो गया (म. अनु. ५३. तथा मत्स्य पुराण में, इसके आगे भविष्यकालीन राजाओं का उल्लेख प्रारंभ हुआ है। इसके राज्य काल में वायु___ अद्ध-ब्रह्मांड के मत में, व्यास के यजुःशिष्यपरंपरा | पुराण लिखा गया (वायु. ९९.२५८) । हस्तिनापुर का, याज्ञवल्क्य का वाजसनेय शिष्य । बह जाने पर, यह अपनी राजधानी कौशांबी में ले गया भद्भुत-अग्निविशेष | इसकी पत्नी प्रिया । पुत्र का (वायु. ९९.२७१)। मत्स्य के मत में यह शतानीकनाम विडुरथ (म. व. २१३.२५)। पुत्र है । विष्णु तथा मत्स्य पुराणों में अधिसोमकृष्ण ऐसा २. दक्षसावर्णि मन्वन्तर में होनेवाला इन्द्र । पाठ है। भागवत में असीमकृष्ण पाठ है। शतानीकअद्म-कश्यप तथा दनु का पुत्र । अश्वमेधदत्त-अधिसामकृष्ण ऐसा वंशक्रम पाया जाता है 'अद्रिका-कश्यप तथा मुनि की कन्या अप्सरा । यह (वायु. ९९.२५७-२५८)। शाप से जल में मत्स्यी बनी । इसने मत्स्य नामक राजा अधिसोमकृष्ण-अधिसामकृष्ण देखिये। तथा मत्स्यगंधा नामक कन्या को जन्म दिया (उपरिचर ____ अधीर--एक राजा । यह शंकर का परमभक्त था। वसु देखिये; म. आ..६४)। यह विमान में अमावसु एक बार गलती से इसने एक निरपराध स्त्री को देहान्त नामक पितरों के साथ क्रीडा करते समय, अच्छोदा के शासन दिया। उसी प्रकार, एक शिवमंदिर भी इसके मन में, अमावसु के प्रति कामेच्छा उत्पन्न हुई (ब्रह्माण्ड | हाथों जलाया गया। इन दो दुष्टकृत्यों के कारण मृत्यु के : ३.१०.५४-६४)। अनन्तर, यह पिशाच बना तथा इसके मुख से निरंतर अधच्छायामय-कश्यप गोत्र का एक ऋषिगण। अग्निज्वाला निकलने लगी। परंतु शंकर के प्रसाद से इसका मधर्म--ब्रह्मदेव के पृष्ठभाग से उत्पन्न धर्मविरोधी पन्न धमावराधा | यह कष्ट दूर हुआ तथा यह शिव गणों में से एक हुआ पुरुष। इसकी पत्नी मृषा । मृषा से दंभ तथा माया यह (पद्म. पा. १११)। मिथुन निर्माण हुआ (मा. ३.१२)। इसने वह अपने अधृति-- अभूतरजस् देवों में से एक । लिये लिया। आगे चल कर, उस मिथुन से लोभ तथा अधृष्ट वा अधृष्णु-सावर्णि मनु का पुत्र । निकृति यह मिथुन उत्पन्न हो कर, आगे क्रमशः क्रोध आध्रिगु-अश्वि तथा इन्द्र ने इसकी रक्षा की (ऋ. तथा हिंसा, कलि तथा दुरुक्ति, मृत्यु तथा भय एवं निरय | तथा यातना इस प्रकार संतति उत्पन्न हुई (भा. ४. ८. | १.११२.२०, ८.१२.३)। १-४)। हिंसा से इसे अमृत तथा निकृति उत्पन्न हुए। अध्वरीवत्- सावर्णि मनु का पुत्र । - उनसे भय, नरक, माया तथा वेदना उत्पन्न हुए। माया अनग्नि-पितरों में से एक । इसकी पत्नी दक्षकन्या से मृत्यु, वेदना से दुःख तथा मृत्यु से व्याधि, जरा, स्वधा । स्वधा से इसे वयुना तथा धारिणी नामक दो शोक, तृष्णा तथा क्रोध उत्पन्न हुए (पन. सृ. ३)। कन्याएँ हुई (भा. ४.१.६२-६४, पन. सृ. ९)। • २. वरुण को ज्येष्ठा से उत्पन्न पुत्र । इसे निति नामक अनघ- उत्तम मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । पत्नी थी। इसके पुत्र १. भय, २. महाभय तथा ३.1 २. धर्मसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षि यों में से एक । मृत्यु (म. आ. ६७)। ३. एक गंधर्व (म. आ. ११४.४४)। अधितंस--(सो.) भविष्यमत में अनुतंस का पुत्र । अनंग-कर्दम प्रजापति का पुत्र (म. शां. ५९. भधिपति-एक देव । यह भृगु का पुत्र है। ९७)। अधिरथ-(सो. अनु.) सत्कर्मा का पुत्र । यह अनंत-कद्रपुत्र (काश्यप देखिये)। सारथ्यकर्म करता था। एक बार गंगातट पर क्रीडा करते २. (सो. यदु.) वीतिहोत्र का पुत्र । इसका पुत्र समय, कुंती ने कर्ण को रख कर नदी में छोडी हुई पेटी दुर्जयामित्रकर्षण (ब्रह्म. १३)। इसको मिली । तदनंतर कर्ण को बाहर निकाल कर, इसने । अनंतभागिन्- भृगु कुल का एक गोत्रकार ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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