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प्राचीन चरित्रकोश
नृग
फिर ब्राह्मणों ने 'उःशाप' दिया, 'भगवान् कृष्ण के द्वारा तुम्हारा उद्धार होगा ।
पश्चात् अपने वसु नामक पुत्र को गद्दी पर बैठा कर, यह वन में गया। बाद में कृष्ण के हस्तस्पर्श से गिरगिट योनि से इसका उद्धार हो गया ( म. अनु. ७०; भा. १०.६४; वा. रा. उ. ५३-५४) ।
शौर्य एवं दान के कारण, मृत्यु के पश्चात् नृग को उत्तम लोकों की प्राप्ति हो गयी ( म. भी. १७.१० ) ।
इसने आजन्म मांसभक्षण का निषेध किया था। उस कारण, इसे 'परावरतत्त्व' का ज्ञान हो कर, यह यमराज की सभा में विराजमान हो गया (म. अनु. ११५.६० ) । नंग 'औशीनर'-- (सो. अनु.) एक राजा भागवत एवं मास्त्र के अनुसार, यह उशीनर राजा का पुत्र था। वायु में इसे 'मृग' कहा गया हैं।
नृग 'मानव' - (सु. ) पद्म के अनुसार मनु के दस पुत्रों में से दूसरा पुत्र । पुराणों में कई जगह मनुपुत्र नाभाग एवं नृग एक ही माने गये है ( लिंग. १. ६६.४५ ) । इसके पुत्र का नाम सुमति था।
भागवत में राग राजा की 'वंशावलि विस्तृतरूप से दी गयी है (भा. ९.२.१७-९८ ) । किंतु वह विश्वासार्ह नहीं प्रतीत होती है। नग एवं उसका पितामह ओघवंत के पूर्वपुरुषों के महाभारत में दिये गये नाम इस ' वंशावलि ' में नृग के ' वंशज ' के नाते दिये गये है ।
नृचक्षु -- (सो. पूरु. भविष्य . ) पूरुवंश का एक राजा । भागवत तथा मत्स्य के अनुसार यह सुनीथ का, एवं विष्णु के अनुसार ऋच का पुत्र था ( त्रिचक्षु देखिये ) |
नृत्यप्रिया -- स्कंद की अनुचरी मातृका ( म. श. ४५. १०) ।
नृपंजय -- (सो. द्विमी. ) द्विमवंश का एक राजा । विष्णु के अनुसार यह सुवीर का, एवं मत्स्य के अनुसार सुनीथ का पुत्र था ।
२. (सो. पूरु. भविष्य. ) पूरुवंशीय एक राजा । विष्णु, भागवत, एवं भविष्य के अनुसार यह मेधाविन् का पुत्र था इसे ' पुरंजय' नामांतर भी प्राप्त है ।
नृसिंह
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९०; ९८ ९९ ९.२७ २९ ) । अभि के कृपा से इसे शकपूत आदि पुत्र प्राप्त हुये। मित्रावरुणों ने इसका एवं सुमेधस् का रक्षण किया था (ऋ. १०.१३२.७ ) । परुच्छेप ऋषि ने इसके साथ स्पर्धा करने की कोशिश की, किंतु इसने उसको पराजित किया ( तै. सं. २.५.८.३ ) ।
नृपति (सो. मगध, भविष्य) मगध देश का एक राजा । वायु एवं ब्रह्मांड के अनुसार, यह धर्मनेत्र का पुत्र था। इसने ५८ वर्षों तक राज्य किया (निर्वृत्ति देखिये ) ।
नृपद -- एक वैदिक ऋषि (१० ३१.११ ) । यह कण्व ऋषि का पिता था, एवं इसके नाम से उसे 'ना कण्व नाम प्राप्त हुआ था ।
नृसिंह-- भगवान् विष्णु का चौदहवाँ अवतार । इसका आधा शरीर सिंह का एवं आचा मनुष्य का था। इस कारण, इसे ' नृसिंह' नाम प्राप्त हुआ । इसका अवतार चौथे युग में हुआ था (दे. भा. ४.१६ ) । पुराणों में निर्देश किये गये बारह देवासुर संग्रामों में, 'नारसिंहसंग्राम' पहले क्रमांक में दिया गया है (मस्त्य. ४७. ४२ ) ।
हिरण्यकशिपु नामक एक राक्षस ने ग्यारह हजार पाँच सौ वर्षों तक तप कर, ब्रह्माजी को प्रसन्न किया, एवं ब्रह्माजी से अमरत्व का वर प्राप्त कर लिया। उस वर के कारण, देव, ऋपि, एवं ब्राह्मण अत्यंत त्रस्त हुये, एवं उन्होंने हिरण्यकशिपु का नाश करने के लिये अवतार लेने की प्रार्थना श्रीविष्णु से की। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भगवद्भक्त था उसको भी उसके पिता ने अत्यंत तंग किया था। फिर प्रह्लाद के संरक्षण के लिये, एवं देवों को अभय देने के लिये श्रीविष्णु नृसिंह अवतार ' ले कर, प्रगट हुये ।
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हिरण्यकशिपु के प्रासाद के संभे तोड़ कर, नृसिंह प्रगट हुआ (नृसिंह. ४४.१६ ), एवं सायंकाल में इसने उसका वध किया (भा. २.७; ह. वं. १.४१; ३९.७१; लिंग. १.९४ मत्य. ४७.४६ पपा. उ. २३८ ) । गंगा नदी के उत्तर किनारे पर हिरण्यकशिपु का वध कर, नृसिंह दक्षिण हिंदुस्थान में गोतमी (गोदावरी) नदी के किनारे पर गया, एवं उसने वहाँ दण्डक देश का राजा अंचर्य का वध किया (ब्रदा. १४९)। इस प्रकार वध करने से इसे खून चढ़ गया। फिर शिवजी ने शरम का अवतार ले कर, नृसिंह का वध किया (सिंग १.९५)।
नृमेध आंगिरस -- अमि का एक आश्रित एवं सामद्रष्टा ऋषि (ऋ. १०.८०.३, पं. बा. ८. ८. २१ ) । ऋग्वेद के अनेक सूक्तों का प्रणयन इसने किया था (ऋ. ८.८९९
वेदों में प्राप्त नमुचि की एवं नृसिंह की कथा भनेक दृष्टि से समान है । 'नृसिंह अवतार ' का निर्देश 'तैत्तिरीय आरण्यक' में भी प्राप्त है। नृसिंहतापिनी नामक एक ' ' उपनिषद् भी उपलब्ध है । नृसिंह की कथा प्रायः सभी पुराणों में दी गयी है । किन्तु प्रह्लाद की संकटपरंपरा एवं
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