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________________ नल प्राचीन चरित्रकोश पाकशास्त्र तथा अश्वविद्या पर लिखित, नल राजा के तथा नवग्रहों की पूजा की थी (आ. रा. सार. १०)। कई ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। प्रतपन, अकंपन, तथा प्रहस्त आदि रावणपक्षीय राक्षसों २. (स. इ.) अयोध्या के ऋतुपर्ण राजा का पुत्र । से युद्ध करते समय इसने काफी पराक्रम दर्शाया था इसे सुदास नामक पुत्र था। इसका मूल नाम सर्वकर्मन् | (कुशलव देखिये )। राम केअश्वमेध यज्ञ के समय, यह अथवा सर्वकाम था (लिंग. १.६६.१)। . अश्वरक्षण के लिये शत्रुघ्न के साथ गया था (पद्म. पा. इसका पिता ऋतुपर्ण, निषध देश के नल राजा का 10 राजा का ११)। मित्र था (नल १. देखिये)। वायुपुराण के मत में, नलकबर-देवों के धनाध्यक्ष कुवेर का पुत्र (म. प्राचीन भारतीय इतिहास में दो नल सुविख्यात थे: स. १०.१८)। इसे मणिग्रीव नामक ज्येष्ठ बंधु था। . १. अयोध्या का राजा इक्ष्वाकुवंशज नल-यह ऋतुपर्ण एकबार ये दोनों भाई अपने स्त्रियों के साथ गंगानदी का पुत्र था। २. वीरसेन का पुत्र नैषध नल (वायु.८८. के तट पर कैलास पर्वत के उपवन में क्रीडा कर रहे थे। १७४-१७५)। सुरापान की नशा के कारण, इन में से किसी के शरीर पर ३. (सो. क्रोष्टु.) भागवतमत में यदु राजा का पुत्र । वस्त्र न था। उसी मार्ग से नारद जा रहे थे। नारद को इसे 'नील' नामांतर भी प्राप्त था। देखते ही शाप के भय से, इसकी स्त्रियों ने बाहर ओं ४. (सो. कुकुर.) यादव राजा विलोमन् (तित्तिरि) कर अपने अपने वस्त्र परिधान कर लिये। परंतु नलकबर का पुत्र | इसे 'नंदनोदरदुंदुभि' नामान्तर भी प्राप्त तथा मणिग्रीव इतने वेहोश थे कि, उन्होंने देवर्षि की कुछ था (मत्स्य. ४४.६३)। मत्स्यमत में यह सर्प था। | भी मर्यादा न रखी । नग्नस्थिति में इन्हें देखते ही इन ५. इन्द्रसभा में उपस्थित एक ऋषि । दोनों को अच्छा सबक सिखाने का विचार नारद ने किया। ६. (सू. इ.) दल का नामान्तर । अपने शरीर पर वस्त्र है या नहीं, इसका भी होश जिन्हें ७. तेरह सैंहिकेयों में से एक (ब्रह्म. ३)। नहीं है, उनके लिये वृक्षयोनि ही ठीक है, ऐसा विचार ८. निषध राजा का पुत्र । इसका पुत्र नभ अथवा नारद ने किया, एवं इन्हे सौ वर्षोंतक वृक्ष होने का शाप नभस् (ह. वं. १. १५. २८; ब्रह्म. ८; पद्म. सू. ८; दिया। नारद की कृपा से, उस स्थिति में भी इन्हें अपने मत्स्य. १२. ५६)। | पूर्वजन्म का स्मरण रहा, तथा कृष्ण के सान्निध्य से इनकी ९. रामसेना का एक वानर, एवं रामसेतु बाँधनेवाला मुक्ति हो गयी। स्थापत्यविशारद । यह देवों के शिल्पी विश्वकर्मा एवं कृष्णावतार में नंदगोप के घर के द्वार में स्थित 'अर्जुनघृताची नामक अप्सरा का पुत्र था (म. व. २६७. वृक्षों का जन्म इन्हें प्राप्त हुआ था । एक बार नटखट ४१)। ऋतुध्वज मुनि के शाप से, विश्वकर्मा को वानर- कृष्ण की शैतानी से तंग आ कर, यशोदा ने कृष्ण को ऊखल योनि प्राप्त हुई | उसी जन्म में उसे यह पुत्र गोदावरी से बांध दिया। कृष्ण ऊखल का खाचत ख से बाँध दिया। कृष्ण ऊखल को खींचते खींचते धीरे धीरे नदी के तट पर पैदा हुआ (वामन, ६२) । इसे अग्नि चलने लगा। चलते चलते आँगन में खड़े अर्जुनवृक्ष की का पुत्र भी कहा है (स्कंद. ३. १. ४२)। जोड़ी के बीच, वह ऊखल अटक गया । फिर कृष्ण ने ऊखल __ जी चाहे वह वस्तु निर्माण करने की शक्ति का वर, जोर से खींचते ही दोनो वृक्ष आमूलाग्र गिर पड़े तथा नल इसके पिता ने इसे दिया था (वा. रा. यु. २२)। राम कुबर एवं मणिग्रीव वृक्षयोनि से मुक्त हो गये (भा. १०. की आज्ञा से इसने दक्षिण समुद्र पर सौ योजन लंबे एवं | ९-१०; ह. वं. २.७.१४-१९; पौलस्त्य देखिये)। ९-१०, ह. व. २.७. दस योजन चौड़े सेतु का निर्माण किया । वह सेतु एक बार इसकी प्रेयसी रंभा इसे मिलने जा रही थी। 'रामसेतु' अथवा 'नलसेतु' नाम से प्रसिद्ध है (म. राह में, रावण ने रंभा पर बलात्कार किया। फिर इसने व. २६७-४६)। इसने एक ब्राह्मण को जाह्नवी नदी रावण को शाप दिया, 'तुम्हें न चाहनेवाली किसी भी स्त्री में शालिग्राम विसर्जन करने के कार्य में मदद की थी। को तुम स्पर्श नहीं कर सकोंगे (म. व. २६४.६८-६९)। इस पुण्यकार्य के कारण, उस ब्राह्मण ने इसे वर दिया. बलात्कार करते ही तुम्हारी मृत्यु हो जायेमी' (वा. रा.उ. 'तुम्हारे पत्थर पानी में तर सकेंगे।' इसी सिद्धि के २६; रावण देखिये)। कारण, सेतुबंधन का कार्य यह सफलता से कर सका। नव-(सो. अनु.) मत्स्यमत में उशीनर राजा का सेतु बांधने का कार्य शुरु करने से पहले इसने गणेश पुत्र (नर ४. देखिये)। ३५४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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