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________________ नल प्राचीन चरित्रकोश सकेगा। इतना ही नहीं, मेरे विष की बाधा तुम्हारे शरीरस्थ कलि को ही हो जायेगी ' । नल को एक वस्त्र प्रदान कर कर्कोटक ने आगे कहा, 'अब तुम बाहुक नामांतर से अयोध्या के राजा ऋतुपर्ण के पास जा कर वास करो। जब पूर्ववत् सुरूप होने की इच्छा तुम करोगे, तब स्नान करके यह वस्त्र ओढ लेना। इससे तुम्हे पूर्वस्वरूप प्राप्त होगा' । इतना कह कर कर्कोटक अंतर्धान हो गया (म. व. ६२. १९-२३)। कर्कोटक के गुप्त होने के बाद नल दस दिनों से अयोध्या जा पहुँचा। ऋतुपर्ण राजा से मिल कर इसने कहा, 'मुझे अश्वविद्या तथा सारथ्य का पूर्ण ज्ञान है । आप मुझे आश्रय पूर्ण है। आप मुझे आज दें, तो मैं अपने पास रहने के लिये तैयार हूँ । ऋतुपर्ण ने इसे अपने आश्रय में रखा, एवं इसे अपनी अश्वशाला का प्रमुख बना दिया । नल के पुराने सारथि वार्ष्णेय तथा जीवल पहले से ही ऋतुपर्ण की अश्वशाला में काम करते थे । संयोगवश नल के ये पुराने नौकर इसके सहायक बना दिये गये। किंतु इसके नये रंगरूप में वे इसे पहचान नहीं सके । नल सत्कार कर तथा साथ में सेना दे कर पालकी से इसे कुंडिनपुर पहुँचा दिया । दमयंती को देख कर भीम को अत्यंत आनंद हुआ । कन्या का शोध लगने के कारण एक चिंता से भीमराजा मुक्त हुआ। केवल नल ही को मालूम हो ऐसे संकेतदर्शक वाक्यों के साथ भीमराय ने अनेक ब्राह्मण देश देश में नल को ढूँढने के लिये भेज दिवे (म. व. ६४-६६ ) । । अपनी पत्नी दमयंती, कन्या, तथा पुत्र का स्मरण कर के यह रोज विलाप करता था । एक दिन जीवल ने इसे पूछा, ' किसके लिये तुम हररोज शोक करते हो ?' कुछ न कह कर यह स्तब्ध रह गया (म. व. ६४.१२-१९) ऋतुपर्ण राजा के यहाँ नौकरी करने से पहले ही वार्ष्णेय ने दमयंती के कथनानुसार उसके पुत्र तथा कन्या को कुंडिनपुर में भीमराजा के पास पहुँचा दिया था, तथा कहाँ था, फिन तासक हो गया अब उसका कोई भरोसा नहीं है'। बाद में भीमराजा को ज्ञात हुआ कि राज्यभ्रष्ट हो कर नल दमयन्ती सह अरण्य में चल गया है । उनमें से पर्णाद नामक ब्राह्मण अयोध्या नगरी में आया । वहाँ पहुँचने के बाद दमयंती द्वारा बताये गये पूर्वस्मृति-निदर्शक तथा कर्तव्यबुद्धि आगृत करनेवाले अनेक वाक्य कहते कहते, वह नगर की बस्ती यस्ती में घूमने लगा । वे वाक्य सुन कर नल को अत्यंत दुख हुआ तथा एकांत में पर्णाद से मिल कर इसने कहा 'दीन दशा प्राप्त होने के कारण मैंने पत्नी का त्याग किया, इसलिये अयोध्या से चला गया, एवं कुंडिनपुर आ कर यह यह मुझे दोष न दे। इतना होते ही पर्णाद द्रुतगति से वृत्त उसने दमयंती को बताया । यह वृत्त सुन, दमयंती को अत्यंत आनंद हुआ, किंतु पर्णाद द्वारा किये गये बाहुक के रूपवर्णन के कारण वह संदेह में पड गयी । उस संदेह की निष्कृति करने के लिये उसने अपनी माता के द्वारा ऋतुपर्ण को संदेखा भेजा, 'नल जीवित है या मृत यह न समझने के कारण दमयंती अपना दूसरा स्वयंवर कल सूर्योदय के समय कर रही है; इसलिये अगर इच्छा हो तो आप वहाँ आयें ' (म. व. ६५) । कुंडिनपुर से अयोध्या काफी दूर होने के कारण, एक दिन में वहाँ पहुँचना ऋतुपर्ण को अशक्यप्रायसा लगा। फिर भी अपने सारथि बाहुक से उसने पूछा । बाहुक ने एक दिन में रथ से अयोध्या पहुँचने की शर्त मान्य की एवं बडी ही तेजी से रथ हाँका । मार्ग में ऋतुपर्ण का उत्तरीय गिर पड़ा। उसे उठाने के लिये राजा ने बाहुक को रथ खड़ा करने के लिये कहा। फिर बाइक ने कहा 'आपका वस्त्र एक योजन पीछे रह गया है ' । यह देख कर ऋतुपर्ण बाहुक के सारथ्यकीशल्य पर बहुत ही खुष हुआ। बाद में बाहुक से अश्वहृदयविद्या सीख कर, ऋतुपर्ण ने उसे 'अक्षयविद्या ( रात खेलने की कला ) प्रदान की ( म. व. ७०.२६ ) । इस प्रकार ये दोनों परम मित्र बन गये (ह. वं. १. १५; वायु. २६, विष्णु. ४. ४. १८९ ब्रह्म. ८. ८० ) । अपनी बन्या एवं जमाई को ढूँढ़ने के लिये भीमराजा ने सारे देशों में ब्राह्मण भेजे । उनमें से सुदेव नामक ब्राह्मण घूमते घूमते वहाँ गया, जहाँ दमयंती राजपत्नी की सैरंध्री बन कर दिन काट रही थी। दमयंती के पीपलपत्ते के समान ताम्रवर्णीय दाग़ के कारण उसने दमयंती को पहचान लिया, तथा कहा, 'तुम्हारे पिता की आज्ञानुसार मैं तुम्हें ढूँढ़ने आया हूँ'। यह सुन कर दमयंती अपने आपको सम्हाल न सकी, एवं फूट फूट कर रोने लगी । यह सारा वृत्त चेदिराजपत्नी सुनंदा ने राजमाता को बताया, उसे दमयंती की दुखभरी कहानी सुन कर बहुत ही खेद हुआ। बाद में उसने दमयंती का बड़ा | ३५२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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