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नर्मदा
कन्या पैदा हुई। किसी और समय, इसने मान्धातृका पुत्र पुरुकुत्स को अपना पति बनाया था ( म. आश्र. २०. १२-१३; नर्मदा ३. देखिये) ।
प्राचीन चरित्रकोश
नये - एक दानी पुरुष । इंद्र ने इसकी रक्षा की थी (ऋ. १.५४.६; ११२.९; नार्य देखिये ) ।
नल--निषध देश का सुविख्यात राजा । यह वीरसेन राजा का पुत्र था (पद्म; सृ. ८; लिंग. १.६६.२४ - २५, वायु. ८८; १७४ मत्स्य. १२.५६ . . १.१५ २.६३.१७३-१७४)। मत्स्य तथा पद्म के मतानुसार वीरसेनपुत्र नल तथा निषधपुत्र नल दोनों इक्ष्वाकु वंश ही हैं । किंतु लिंग, वायु तथा ब्रह्मांड एवं हरिवंश में वीरसेनपुत्र नल का वंश नहीं दिया गया है।
पांडवो के वनवास काल में युधिष्ठिर ने वृहदश्व ऋषि से कहा, 'मेरे जैसा बदनसीब राजा इस दुनिया में कोई नहीं होगा ' | फिर बृहदश्व ने, युधिष्ठिर की सांत्वना के लिये उससे भी ज्यादा बदनसीब राजा की एक कथा सुनायी । वही नल राजा की कथा है ( म.व. ५० ) ।
नल राजा निषध देश का अधिपति था, एवं युद्ध में अजेय था (म. आ. १.२२६ - २३५) | एक बार, नल ने सुवर्ण पंखों से विभूषित बहुत से हंस देसे उनमें से एक हंस को इसने पकड़ लिया ( म. व. ५०.१९ ) । फिर उस हंस ने नल से कहा, 'आप मुझे छोड़ दें। मैं आपका प्रिय काम करूँगा। विदर्भनरेश भीम राजा की कन्या दमयंती को आप के गुण बताउँगा, जिससे वह आपके सिवा दूसरे का वरण नहीं करेंगी ।
हंस का यह वचन सुन कर, नल ने उसे छोड़ दिया (म. व. ५०.२०-२२ ) । पश्चात् हंस ने दमयंती के पास जाकर गल के गुणों का वर्णन किया। उससे दमयंती न के प्रति अनुरक्त हो गयी (म.व. ५०-५१ ) ।
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नल
यथावकाश दमयंती- स्वयंवर की घोषणा विदर्भाधिपति भीम राजा ने की। उसे सुन कर, नल राजा स्वयंवर के लिये विदर्भ देश की ओर रवाना हुआ। नारद द्वारा दमयंती स्वयं वर की हकीकत इंद्रादि लोकपालों को भी ज्ञात हुई। वे भी स्वयंवर के लिये विदर्भ देश चले आये । नल को देखते ही इसके असामान्य सौंदर्य के कारण, दमयंती प्राप्ति की आशा इंद्रादि लोकपालों ने छोड़ दी। बाद में इंद्र ने नल राजा को सहायता के वचन में फँसाया एवं उसे दूत बनाकर दमयंती को बताने के लिये कहा, 'लोकराल तुम्हारा वरण करना चाहते है । '
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इंद्र के आशीर्वाद के कारण, अदृश्य रूप में यह कुंडिनपुर दमयंती के मंदिर में प्रविष्ट हो गया। वहाँ दमयंती तथा उसकी सखियों के सिवा यह किसी को भी नहीं दिखा। इस कारण, यह दमयंती तक सरलता से पहुँच - सका। दमयंती के मंदिर में नल के प्रविष्ट होते ही उसकी सारी सखियाँ स्तब्ध हो गई तथा दमयंती भी इस पर मोहित हो गई। बाद में दमयंती द्वारा पूछा जाने पर नल ने अपना नाम बता कर देवों का संदेशा भी उसे बताया ( म. व. ५१-५२ ) फिर भी दमयंती का नल को पति बनाने का निश्चय अटल रहा |
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नल का वरण दमयंती द्वारा किये जाने के कारण, देवों को भी आनंद हुआ तथा उन्होंने इसे दो दो वर दिये । इंद्र ने इसे वर दिया, 'तुम्हे यज्ञ में मेरा प्रत्यक्ष दर्शन होगा, तथा सद्गति प्राप्त होगी ' । अभि ने वर दिया, ' चाहे जिस स्थान पर तुम मेरी उत्पत्ति कर सकेंगे, तथा मेरे समान तेजस्वी लोक की प्राप्ति तुम्हें होगी ' । यम ने इसे अन्नरस तथा धर्म के उपर पूर्ण निष्ठा रहने का, उसी प्रकार वरुण ने इच्छित स्थल पर जल उत्पन्न करने की शक्ति का वर दिया। वरुण ने इसे एक सुगंधी पुष्पमाला भी प्रदान की, एवं वर दिया, 'तुम्हारे पास के पुष्प कभी भी नहीं कुम्हलायेंगे ' । इन वरों के अतिरिक्त, देवताप्रसाद से कहीं भी प्रवेश होने पर इसे भरपूर जगह मिलती थी, ऐसी भी कल्पना है ।
पश्चात् भीमराज ने दमयंती विवाह का बड़ा समारोह किया। काफी दिनों तक नल को अपने पास रख लेने के बाद, इसे दमयंती सहित निषध देश में पहुँचा दिया ।
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दमयंती स्वयंवर में, उसकी परीक्षा लेने के लिये, नल के ही समान रूप धारण कर, इंद्रादि देव सभा में बैठ गये। स्वयंवर के लिये भाये सहस्रावधि राजाओं का वरण न कर, दमयंती उस स्थान पर आई जहाँ बै था। वहाँ उसने देखा, पाँच पुरुष एक ही स्वरूप धारण कर एक साथ बैठे हैं। उसके सामने बड़ी ही समस्या उपस्थित हो गई। बाद में उसने कहा कि 'नल के प्रति मेरा अनन्य प्रेम हो, तो यह मुझे गोचर हो।' इतना कहते ही उसके पातिव्रत्यबल से सारे देव उनके " वास्तव देवता स्वरूप' में उसे दिख पडे । घर्मबिंदुविरहित स्तब्ध दृष्टिवाले, प्रफुल्ल पुष्पमाला धारण करनेवाले, धूलि स्पर्शविरहित, तथा भूमि को स्पर्श न करते हुएँ खडे देव उसने देखे । उन देवों को नमन कर, दमयंती ने नल को वरमाला पहनायी।