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धृष्टकेतु
प्राचीन चरित्रकोश
धृष्टद्युम्न
एक बार यह तथा केकय देश का राजा बृहत्क्षत्र ६. (सू.) एक राजा । वायु, मत्स्य तथा पनमत में यह द्रोणाचार्य पर आक्रमण कर रहे थे। उस वक्त, त्रिगर्तराज | धृष्ट का पुत्र, एवं वैवस्वत मनु का पौत्र था (पद्म. स.८)। वीरधन्वन ने इन्हे रोकने की कोशिश की । फिर धृष्टकेतु | ७. नृग का पुत्र (लिंग. १.६६.४६)। एवं वीरधन्वन् इन वीरों में भयंकर युद्ध हुआ। वीर
भयकर युद्ध हुआ। वार- धृष्टद्युम्न-(सो. अज) पांचालराज द्रुपद का अग्निधन्वन् ने एक बाण छोड़ कर, इसका धनुष तोड़ दिया। तुल्य तेजस्वी पुत्र । यह पृषत् अथवा जंतु राजा का नाती, फिर अपना तूटा हुआ धनुष फेंक, इसने सुवर्ण की | एवं द्रपद राजा का पुत्र था । द्रोणाचार्य का विनाश करने मूटवाली एक महावीर्यशाली फौलादी शक्ति दोनों हाथों के लिये, प्रज्वलित अग्निकुंड से इसका प्रादुर्भाव हुआ में पकंड ली, एवं बराबर लक्ष्य वेध कर वह वीरधन्वन् | था। फिर उसी वेदी में से द्रौपदी प्रकट हुई थी। अतः इन के रथ पर फेंक दी । उस शक्ति के भयंकर प्रहार से दोनों को 'अयोनिसंभव,' एवं इसे द्रौपदी का 'अग्रज वीरधन्वन् का सीना विदीर्ण हो गया, एवं वह तत्काल | बंध' कहा जाता है (म. आ. ५७.९१)। अग्नि के अंश मृत हो गया (म. द्रो. ८२. ९-१७)।
| से इसका जन्म हुआ था (म. आ. ६१.८७)। इसे पश्चात् द्रोण से लड़ते-लड़ते, इसका मित्र केकयराज | 'याज्ञसे नि', अथवा 'यज्ञसेनसुत' भी कहते थे। बृहन्क्षत्र मृत हो गया। फिर इसने अपने सारथी को द्रोण से बदला लेने के लिये, द्रुपद ने याज एवं उपयाज अपना रथ द्रोण के रथ की ओर बढ़ाने को कहा । पतंग | नामक मुनियों के द्वारा एक यज्ञ करवाया । उस यज्ञ के जिस प्रकार अग्नि ज्योति पर झपटता है, उस प्रकार इसने | 'हविष्य' सिद्ध होते ही, याज ने द्रुपद की रानी द्रोण पर आक्रमण किया। किंतु इसके सीने पर एक तीक्ष्ण | सौत्रामणी को, उसका ग्रहण करने के लिये बुलाया। बाण मार कर द्रोण ने इसका वध किया (म. द्रो. महारानी के आने में जरा देर हुई। फिर याज ने क्रोध १०१.२२-३८)। .
से कहा, 'रानी! इस हविष्य को याज ने तयार किया है, मृत्यु के पश्चात. यह स्वर्गलोक में जा कर विश्वेदेवों में | एवं उपयाज ने उसका संस्कार किया है। इस कारण इससे विलीन हो गया (म. स्व. ५.१३-१५ ) । व्यासजी ने | संतान की उत्पत्ति अनिवार्य है । तुम इसे लेने आवो, या
आवाहन करने पर, परलोकवासी कौरवपांडव वीरों के न आओ'। इतना कह कर, याज ने उस हविष्य की अग्नि साथ, यह भी गंगाजल से प्रगट हुआ था (म. आश्र. | में आहुति दी। फिर उस प्रज्वलित अग्नि से, यह एक ४०.११)।
तेजस्वी वीरपुरुष के रूप में प्रकट हुआ (म. आ. १५५.
३७-४०)। इसके अंगों की कांति अग्निज्वाला के इसे करेणुमती नामक एक बहन, एवं रेणुमती नामक
समान तेजस्वी थी। इसके मस्तक पर किरीट, अंगों में एक कन्या थी। उनमें से रेणुमती नकुल से ब्याही गयी
उत्तम कवच, एवं हाथों में खड्ग, बाण एवं धनुष थे। 'थी-(म. आ..९०.८६ )। वीतहोत्र नामक एक पुत्र भी इसे था (गरुड. १.१३९)।
अग्नि से बाहर आते ही, यह गर्जना करता हुआ
एक रथ पर जा चढ़ा, मानो कही युद्ध के लिये जा रहा २. (सू. निमि.) विष्णुमत में सत्यधृति का पुत्र ।
हो (म. आ. १५५.४०)। उसी समय, आकाशवाणी भागवत तथा वायुमत में यह सुधृति का पुत्र था।
हुई, 'यह कुमार पांचालों का दुःख दूर करेगा । द्रोणवध ३. (सो. काश्य.) भागवतमत में सत्यकेतु का एवं
| के लिये इसका अवतार हुआ है (म. आ. १५५.४४ )।
लि विष्णु तथा वायुमत में सुकुमार का पुत्र (गरुड. १.१३९)। यह आकाशवाणी सुन कर, उपस्थित पांचालो को बड़ी
४. (सो. अज.) भागवत, विष्णु तथा वायुमत में | प्रसन्नता हुई। वे 'साधु, साधु' कह कर, इसे शाबाशी धृष्टद्युम्न का पुत्र । यह भारतीय युद्ध में पांडवों के पक्ष में |
| देने लगे। था । द्रोण ने इसका वध किया। इसकी मृत्यु से पांचाल | द्रौपदी स्वयंवर के समय, 'मस्त्यवेध' के प्रण की घोषणा वंश समाप्त हुआ (म. द्रो. १३०.१२)।
द्रुपद ने धृष्टद्युम्न के द्वारा ही करवायी थी (म. आ. ५. केकय देश का राजा । इसकी स्त्री श्रुतकीर्ति । इसे | १७६-१७९)। स्वयंवर के लिये, पांडव ब्राह्मणों के वेश संतर्दन (विष्णु. ४.१४; भा. ९.२४.३८), चेकितान, | में आये थे। अर्जुन द्वारा द्रौपदी जीति जाने पर, 'एक बृहत्क्षत्र, विंद तथा अनुविंद (वायु. ९६.१५६) नामक | ब्राह्मण ने क्षत्रियकन्या को जीत लिया', यह बात सारे पाँच पुत्र थे।
राजमंडल में फैल गयी। सारा क्षत्रिय राजमंडल क्रुद्ध हो ३३१