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________________ प्राचीन चरित्रकोश देवयानी ययाति राजा से हुआ । शर्त की अनुसार, शर्मिष्ठा भी इसकी दासी बन कर ययाति के यहाँ गयी (म. आ. ७३. ७५; मत्स्य २७ - २९ ) । से बाद में इसकी दासी बनी हुआ शर्मिष्ठा को, ययाति 'पुत्र उत्पन्न हुआ । तब यह क्रोधित हो कर फिर एक बार अपने पिता के पास गयी। इस कारण शुक्र ने ययाति को शाप दिया 'तुम वृद्ध बन जाओगे ' । अन्त में ययाति के द्वारा बहुत प्रार्थना की जाने पर शुक्र ने उसे उःशाप दिया, 'तुम अपना वार्धक्य तरुण पुरुष को दे सकोगे। देवयानी को ययाति से यदु तथा तुर्वसु नामक दो पुत्र हुएँ से ( बाबु. ९२.७७-७८) । किन्तु उन दोनों ने ययाति का वृद्धत्व स्वीकारना अमान्य कर दिया। ययाति ने उन दोनों को शाप दे दिया। देवरक्षित (मो. कुकुर) विष्णु, मत्स्य तथा पद्म के मत में देवक का पुत्र देवरंजित एवं देववर्धन इसीके नामांतर है (पद्म. स. १३) । - देवरक्षिता – देवक राजा की कन्या एवं वसुदेव की स्त्री इसे गद आदि नौ पुत्र थे (मा. ९.२४) । देवरंजित - (सो, कुकुर) वायुमत में देवक का पुत्र ( देवरक्षित १. देखिये) । " निर्देश आया है ( वा. रा. उ. ५८ ) । रामायण में, देवयानी के केवल यदु नामक पुत्र का किये, उन्हें 'मनुष्यराजन् ' कहा जाता था । 'मनुष्यराजन् के प्रमुख नाम देवोदास वाध्यक्ष, वैतन्य । 'देवराजन् ' एवं ' मनुष्यराजन् ' के कुछ साम प्रसिद्ध है (पं. बा. १८.१०.५) । 6 देवरात (सो. क्र. ) एक यादव राजा भागवत विष्णु, मत्स्य तथा पद्म के मत में यह करंभ का पुत्र था। वायुमत में करंभक का पुत्र । भविष्यमत में इसे देवरथ कहा गया है (पद्म. सृ. १३ ) । २. एक ऋषि भागवत के अनुसार इसका पुत्र याज्ञवल्क्य । वायु तथा ब्रह्मांड में ब्रह्मवाह पाठभेद है। देवरथ - (सो.) भविष्यमत में कुभ का पुत्र (देवरात २. देखिये ) । ३. एक गृहस्थ । इसे कला नामक कन्या थी । उसके पति का नाम शोण था । मारीच द्वारा कला का वध देवराज--(स. इ.) विकुक्षि का नामांतर ( मरत्य होने के बाद, देवरात तथा शोण उसको ढूँढ़ने, १२.२६ ) । विश्वामित्र के यहाँ गये । वहाँ से वसिष्ठ को साथ ले कर वे शिवलोक में गये। मरतें, समय, 'हर का नाम मुख से निकलने के करण, इसकी कन्या कैलास में पार्वती की दासी बनी थी। पार्वती ने इसे एवं शोण को सोमप्रत समारोह के लिये टैरने के लिये कहा। वह समारोह समाप्त होने पर ये दोनों वापस आये (पद्म. पा. ११२ ) । २. (सु. निमि.) देवरात का पाठभेद । ३. एक ब्राह्मण । यह किरात नगर में व्यापार करता था। यह अत्यंत धूर्त एवं शराबी था। एक बार तालाब में यह स्नान करने गया। वहाँ शोभावती नामक वेश्या से इसका संबंध जड़ा | उसके कारण माँ, बाप तथा पत्नी का भी इसने वध किया | देवरात देवराज वसिष्ठ - एक ऋषि । यह अयोध्या का राजा त्रय्यारुण का पुरोहित था । इसीके कारण त्रय्यारुण ने सत्यत्रत त्रिशंकु को, अयोध्या देश के बाहर निकाल दिया तथा अपना राज्य इस पर ( अपने पुत्र ) सौंप दिया ( त्रिशंकु देखिये ) । इसी के द्वारा विश्वामित्र ने आप को ब्राह्मण कहलवाया (JRAS १९१७. ४०-६७ ) । देवराजन - एक सन्मान्य उपाधि । देवों में से जिन्होंने राजसूययज्ञ किया, उन्हें यह उपाधि लगायी जाती थी ( देव देखिये) । प्राचीन काल के सुविख्यात 'देवराजन् ' की नामावली सायणाचार्य ने दी है। उनके नाम सिंधुक्षित, दीपंअवसदेपंधरा, पृथु पार्थ, कक्षीयत एवं काक्षीवत् मानवों में जिन्होंने राज २९६ - ४. युधिष्ठिर की सभा का एक क्षत्रिय ( म. स. ४. २२ ) । | एक बार यह प्रतिष्ठान नगर में गया। वहाँ इसने शिव का दर्शन लिया तथा शिवकथा सुनी। पश्चात् एक माह के बाद इसकी मृत्यु हुई। केवल अकाल किये गये शिवपूजन के कारण, इसे कैलास में जाने का भाग प्राप्त हुआ (शिवपुराण माहात्म्य ) | देवरात जनक - (सू. निमि.) विदेह देश के सुविख्यात 'जनक' राजाओं में से एक (म. शां. २९८ ) । भागवत एवं वायु में इसे सुकेतु का, तथा विष्णु में यह स्वःकेतु का पुत्र बताया है। इसके घर में रुद्र ने एंक शिवधनुष्य रखा था । 'सीता स्वयंवर' के समय, उस ४. काशी का राजा इसकी कन्या मुदेवा इक्ष्वाकु की पत्नी थी (पद्म. भू. ४२.६ ) ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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