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________________ देवभाग प्राचीन चरित्रकोश देवयानी गलती होने के कारण, संजयों का नाश हुआ। यह वासिष्ठ यह सुन कर, शाकल्य क्रोध से पागल सा हो गया। सातहव्य का समकालीन था (तै. सं. ६.६.२.२)। । याज्ञवल्क्य के कथनानुसार इसने उसे हजार प्रश्न पूछे । देवभूति--(शुंग. भविष्य.) भागवत तथा विष्णुः | उन सारे प्रश्नों के उत्तर याज्ञवल्क्य ने दिये। पश्चात् मत में भागवत का पुत्र । देवभूमि तथा क्षेमभूमि इसी के | याज्ञवल्क्य द्वारा शाकल्य को प्रश्न पूछा जाने का समय नामांतर थे। आया। य ज्ञवल्क्य ने शर्त लगायी, 'इन प्रश्नों का उत्तर देवभूमि-(शुंग. भविष्य.) मत्स्य मत में पुनर्भव का, | न दे सके, तो शाकल्क्य को मृ-यु स्वीकारनी पडेगी। एवं ब्रह्मांड मत में भागवत का पुत्र । इसने दस वर्षों तक | शाकल्य ने वह शर्त स्वीकार की। पथात् याज्ञवल्क्य ने राज्य किया (देवभूति देखिये)। प्रश्न पूछे, परंतु शाकल्य उनके उत्तर न दे सका । इसलिये देवमत-एक ऋषि । नारद के साथ इसका सृष्टि- | शाकल्य ने मृत्यु का स्वीकार किया। उत्पत्ति के विषय में संवाद हुआ (म. आश्व. २४)। देवमित्र शाकल्य की मृत्यु के कारण, सत्र ब्राह्मणों को देवमति--अंगिराकुलोत्पन्न एक ब्रह्मर्षि । ब्रह्महत्या का पातक लगा । अतः पवनपुर जा कर वहाँ देवमालिम्लुच--रहस्यु का उपनाम । उन्होंने द्वादशाक, वालुकेश्वर तथा न्यारह रुद्रों का देवमानुषि--(सो. क्रोष्ट.) भागवत तथा वायु के दशन लिया। चर कुंडों में स्नान किया । वाडवा दित्य के मत में शूर राजा को अश्मकी से उत्पन्न पुत्र । इसे 'देवमी- प्रसाद से उत्तरेश्वर का दर्शन ले कर, वे सारे मुक्त हो गये दुष' भी कहा गया है। (वायु. ६०.६९)। देवमित्र शाकल्य--मांडु केय ऋषि का पुत्र । इसने देवमीढ--(स. निमि.) भागवतमत में कृतिरथ का सौभरि आदि शिष्यों को संहिता कथन की । भागवत में | तथा वायुमत में कीर्तिरथ का पुत्र । इसे शाकल्य का साथी माना गया है। परंतु वाय तथा . २. (सो. क्रोष्टु.) भागवतमत में हृदीक का पुत्र । ब्रह्मांड के मत में, यह शाकल्य का शिष्य था। देवमित्र इसका पुत्र शूर । इसकी पत्नी का नाम ऐश्वाकी था शाकल्य ने पाँच संहितायें पाँच शिष्यों को सिखाई। (मत्स्य. ४६ )। देवमीढुष, देवमानुषि एवं देवमेधस् उनके शिष्यों के नाम-मुद्गल, गोखल, मत्स्य, खालीय इसाक नामातर है। तथा शैशिरेय । इसके नाम का वेदमित्र पाठभेद भी ३. (सो. पू.) द्विमीढ का नामांतर । प्राप्त है ( वेदमित्र, याज्ञवल्क्य तथा व्यास देखिये)। । ४. (सो. वृष्णि.) वृष्ण के पाँच पुत्रों में से तीसरा अपने अश्वमेध यज्ञ के समय, जनक राजा ने एक प्रण | (पन्न. सृ. १३)। जाहिर किया। सम्मीलित ब्राह्मणों में जो सर्वश्रेष्ठ देवमीदुष-(सो. कोष्ठु.) विष्णुमत में हृदीक का, साबित हो, उसे हजार गायें, उनसे कई गुना अधिक तथा म स्यमत म भजमान का पुत्र (देवमीद २. देखिये)। सुवर्ण, ग्राम, रत्न तथा असंख्य सेवक दिये जायेंगे, देवमुनि ऐमद--सूक्तद्रष्टा (इ. १०.१४६) । ऐसा प्रस्ताव उसने ब्राह्मणों के सामने रखा। अनेक 'पंचविश ब्राहाण' के मत में यह तुर का ही नामांतर ब्राह्मण स्पर्धा के कारण झगड़ने लगे। इतने में है ( २५.१४.५)। . ब्रह्मवाहसुत याज्ञवल्क्य वहाँ आया । उसने अपने | देवमेधस--(सो. क्रोष्ट.) भविष्यमत में हरिदीपक शिष्यों से कहा, 'यह सारा धन ले चलो, क्योंकि मेरी का पुत्र (देवमीढ२. देखिये)। बराबरी करनेवाला वेदवेत्ता यहाँ कोई नहीं है। जिसे यह । देवयान--कश्यपकुल का गोत्रकार ऋषिगण । अमान्य होगा, वह मेरा आह्वान स्वीकार करे। देवयानी--असुरों के राजपुरोहित शुक्राचाय की कन्या। अनेक ब्राह्मण वाद के लिये सामने आये तथा अनेक पुरंदर इंद्र की कन्या जयंती इसकी माता थी। शुक्राचार्य महत्त्वपूर्ण विषय पर विवाद हुएँ। सब को जीतने पर को प्रसन्न कर, दस वर्षों तक उसके पास रहने के बाद याज्ञवल्क्य ने शाकल्य से कुछ उपमर्दकारक बातें कहीं। जयंती को यह कन्या हुई। प्रियव्रतपुत्रो उर्जस्वती इसकी वह बोला, 'ब्राह्मण का बल विद्या तथा तत्त्वज्ञान में माता थी, ऐसा भी उल्लेख प्राप्त है (भा. ५.१.२५)। नैपुण्य होता है । किसी भी प्रश्न का उत्तर देने के लिये देवों के कथनानुसार संजीवनी विद्या सीखने के लिये मैं तैयार हूँ। इसलिये कौन सा भी प्रश्न पूछने का मैं बृहस्पतिपुत्र कच असुर गुरु शुक्राचाय के पास आ कर तुम्हें आह्वान देता हूँ। रह गया । कच का आकर्षक व्यक्तिमत्त्व देख, देवयानी २९४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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