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देव
प्राचीन चरित्रकोश
देवकीपुत्र
अपने स्वभावानुरूप किया। देवों ने दमन (इंद्रिय- | देवक--(सो. कुरु.) युधिष्ठिर को पौरवी से उत्पन्न दमन) कर के, मनुष्यों ने दान से, एवं दानवों ने दया | पुत्र (भा. ९.२२.३०)। से श्रेयप्राप्ति करने की कोशिश की (बृ. उ. ५.२.१- २. (सो. कुकुर.) आहुक राजा का पुत्र । पूर्व जन्म में ३)। किंतु 'देवत्व' प्राप्त करने के लिये इन तीनों 'द' | यह गंधों का राजा था। की जरूरत रहती है, ऐसा अनिषदों का कहना है। इसकी कन्या देवकी मथुरा के उग्रसेन राजा के मंत्री
| वसुदेव को दी गयी थी (म. आ. ६१.६२; भा. ९.२४; इसी ढंग की और एक कथा महाभारत के 'अनुगीता' |
विष्णु. ४.१४ )। ममत में देवकी इसकी बहन थी। में दी गयी है । प्रजापति के पास श्रेयप्राप्ति का उपाय
इससे साथ और छः बहनें इसने वसुदेव को दी थी। पूछने, पन्नग, देवर्षि, नाग तथा असुर आ गये। प्रजापति
उग्रसेन इसका कनिष्ठ बंधु था । इसके पुत्र देववान् , ने सब को 'ॐ' अक्षर से ही उपदेश दिया ।
उपदेव, सुदेव एवं देवरक्षित थे (पद्म. स. १३)। उस उपदेश का अर्थ, हर एक व्यक्ति ने अपने | अपने स्वभाव के अनुसार ग्रहण किया। सों ने दंश, देवक मान्यमान-एक असुर । यह तृ सुओं का असुरों ने दया, देवों ने दान एवं महर्षिओं ने दमन, इस |
शत्र, एवं शंबर का स्नेही था (क्र. ७.१८.२०)। कई अर्थ से यह 'ॐ' स्वरूप उपदेश का अर्थ किया, एवं
लोगों के मत में, 'स्वयं को देव माननेवाले ' शंबर का वैसे ही आचरण उन्होंने करना शुरू किया (म. आश्व. हा यह नामांतर था। २६)। इस कथा से प्राचीन समाज के सर्प, असुर, देव देवकर-(सू. इ.) भविष्यमत में प्रतिव्योम का आदि भिन्न भिन्न ज्ञातिसंघ के स्वभाववैशिष्टयों का पता पुत्र । इसका पुत्र सहदेव। . चलता है।
देवकी--देवक की कन्या एवं कृष्ण की माता ।
यह वसुदेव की पत्नी थी। इसके विवाह के उपरिनिर्दिष्ट चर्चा से ज़ाहिर है कि, प्राचीन काल में देव
समय आकाशवाणी हुई, 'इसके अॅम पुत्र के नाम की मानवों की एक ज्ञाति थी। पश्चात् उस जाति के
द्वारा मथुरा के कंस राजा का वध होगा। इसलिये व्यक्तिओं के उपर अधिदैविक एवं आध्यात्मिक संस्कार कर
कंस ने इसे एवं इसके पति वसुदेव को कारागृह के, देवों को अतिमानुषा एवं दैवी रूप दिया गया। उससे
में रखा। बाद में इसे कीर्तिमत् , सुषेण, भद्रसेन, ऋजु, देव नामक मानवजाति का स्वरूप धुंधला सा हो गया।
संमर्दन, भद्र, बलराम तथा कृष्ण नामक आठ पुत्र हुए। रामकृष्णादि महापुरुषों का मानुष तथा दैविक स्वरूप
कृष्णजन्म के बाद, उसे कंस से बचाने के लिये, कृष्ण संमिश्ररूप में स्पष्ट है। इंद्रादि देव भी पहले मानव थे।
को नंद के घर छोड़ने की सलाह इसने वसुदेव को दी . अनन्तर देवत्व का आरोप उन पर किया गया । उपनिषदों
थी। (पा. ब्र. १३)। में 'इंद्र-विरोचनासंवाद' में, एक विशेष अध्यामिक
बलराम तथा कृष्ण के पहले जन्मे हएं, इसके छ: स्थान भी उन्हें दिया गया है । दत्त, गणपति, स्कंद, उमा,
पुत्रों को कंस ने मार डाला। कृष्ण द्वारा कंसवध होने के आदि देव पहले सिद्ध, समर्थ, पराक्रमशील व्यक्ति के
बाद, देवकी तथा कृष्ण का मिलन हुआ। उसने देवकी की स्वरूप में लोगों के आदरस्थान बने । अनन्तर उन्हें देवता
उसके मृत पुत्रों से भेट करवायी (भा. ९..२४; १०.३; बनाया गया । अन्त में उनको आध्यात्मिक शुद्ध
| ४४)। पूर्वजन्म में यह सुनार की पत्नी पृश्नि थी (भा. परब्रह्म रूप देने का प्रयत्न हुआ। शिवादि देवों का पहला
१०. ३)। कृष्णनिर्याण की वार्ता सुनते ही इसने अग्निरुद्रादि स्वरूप तथा बाद का शिवस्वरूप सर्वथा भिन्न है।
प्रवेश किया। आध्यात्मिकता इष्ट है। फिर भी इन देवों का वास्तव
२. शैब्य की कन्या (ब्रह्म. २१२.४)। यह युधिष्ठिर स्वरूपदर्शन तथा प्राचीन मानव समाज का विभागात्मक
की पत्नी थी। इसका पुत्र यौव्य (म. आ. ९०.८३)। ज्ञान भी इतिहास के अध्ययन लिये आवश्यक है।
| ३. ऋषभदेव के वंश के उद्गीथ की पत्नी (भा. ५. २. एक व्यास (व्यास देखिये)।
१५)। भांडारकर संहिता में देविका पाठभेद उपलब्ध देवऋषभ--वैवस्वत मन्वन्तर के धर्म ऋषि को | है। भानु नामक स्त्री से उत्पन्न पुत्र । इसका पुत्र इंद्रसेन देवकीपुत्र-कृष्ण का मातृक नाम (छां. उ. ३ (भा. ६.६.५)।
१७.६; कृष्ण देवकीपुत्र देखिये)। २९२