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________________ दृढायु प्राचीन चरित्रकोश दृढायु--(सो.) पुरूरवा को उर्वशी से उत्पन्न पुत्र । पुनः पुनः मिलता है। इन सारे ज्ञातिसंगों में, देव लोगो (म. आ. ७०.२२; पन. स. १२)। का ज्ञातिसंघ बौद्धिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से २. अगत्स्यपुत्र (म. अनु. २७१.४० कुं. दृढस्यु सर्वाधिक प्रगत एवं बलिष्ठ प्रतीत होता है। देखिये)। ___ आधुनिक काल में, पृथ्वी पर अनेक मानवजातियाँ दृढायुध--(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का पुत्र। | रहती है। उसी प्रकार प्राचीन काल में, देव, असुर, दृढाव-(सू, इ.) भागवत, विष्णु तथा भविष्य- गंधर्व, सर्प, नाग, गरुड, दानव, दैत्य आदि अनेक मत में कुवलयाश्व का पुत्र । मत्स्य एवं वायु मत में यह | मानवजातियां अस्ति च में थी। इन जातियों के स्त्रीपुरुषों कुबलाश्व का पुत्र था । पनमत में यह कुवलाश्व का नाती | को, सर्वसामान्य मानवों जैसे, हर्ष वेदादि विकार थे। तथा धुंधुमार का पुत्र था ( पन. सृ.८)। उनके विवाह हो कर उन्हें संतति पैदा होती थी। लड़ाई दृढास्य-दृढत्यु का नामांतर। कर के वे आपस में झगड़ते भी थे। दृति ऐद्रोत--इंद्रोत देवाप का शिप्य (जै. उ. ब्रा. सर्वथैव मानुषि का धारण किये हुएँ, ऐसे बहुत सारे ३.४०.२)। अभितारिन् काक्षसे नि के साथ इसका देव प्राचीन ग्रंथों में प्राप्त है। वैदिक ग्रंथो में से, अग्नि, उल्लेख प्राप्त है (पं. बा. १४.१.१२, १५)। 'दृतिवात- | इंद्र, मित्र, वरुण आदि देवों का चरित्रचित्रण इसी वन्तौ' में निर्दिष्ट दृति भी यही रहा होगा (पं. बा. २५. मानुषि आकृति से मिलता-जुलता है। पुराणों में से, ३.६)। 'महाव्रत' नामक श्रौतकर्म का सतत आचरण | राम, कृष्ण, शिव, विष्णु आदि देवों का. व्यक्तिचित्रण करने के कारण, इसका उत्कर्ष हुआ। यह सत्र भी | भी मानुषि ढंग का ही है। इसी के नाम से प्रसिद्ध हुआ (का. श्री. २४.४.१६, ६. निरुक्त में, य, अंतरिक्ष एवं पृथ्वी, ये तीन प्रदेश : २५, आश्व. श्री. १२.३; सा. श्री. १३.२३.१; ला. श्री. देवों का निवासस्थान बताये गये हैं। इससे जाहीर है कि, १०.१०.७) । दृत तथा दृति दोनों एक ही रहे होंगे। कई देव पृथ्वी पर, कई अंतरिक्ष में, एवं कई धुलोक में इति ऐद्रोत शौनक---इंद्रोत शौनक का पुत्र एवं रहते थे। देवो मे से अष्ट वसु पृथ्वी पर, ग्यारह शिष्य (वं. ब्रा. २)। | रुद्र अंतरिक्ष में, एवं बारह आदित्य दुलोक में रहते थे। दृप्तबालाकि गार्ग्य--एक आचार्य (श. बा. १४. | हिंदु श्राद्ध विधि में, वसु, रुद्र, एवं आदित्य इन तीन ५.१; बृ. उ. २.१.१)। गार्ग्य बालाकि ऋष अत्यंत | देवताओं को पिता, पितामह एवं प्रपितामह मान कर गर्विष्ठ होने के कारण, उसे यह नामांतर प्राप्त हुआ। काशी | उन्हें तर्पण किया जाता है। के अजातशत्रु नामक राजा का यह समकालीन था। मनुष्यों में से अनेक पुरुष देवज्ञाति में प्रवेश पा. अजात शत्र को उपदेश देने के लिये यह गया था। सकते थे । जो पहले मनुष्य थे, किंतु पश्चात् देव हो गये, दृभीक--इंद्र ने इसका वध किया (ऋ.२.१४.३)। ऐसे ऋभु आदि व्यक्तिओं का निर्देश वै देक ग्रंथो में प्राप्त दृशाल भार्गव-एक मंत्रद्रष्टा (क. सं. १६.८)। है | अश्विनीकुमार भी पहले मनुष्य ही थे, किंतु बाद में दृषी -(सू. इ.) हर्यश्व राजा की पत्नी। वे देव हो कर, उन्हें यज्ञ की आहुति प्राप्त होने लगी। २. विश्वामित्र की स्त्री (ब्रह्म. १०.६७; ह. वं.१.२७; | काशिराज धन्वन्तरि भी पहले मनुष्य था, किंतु पश्चात् ब्रह्मांड. ६६.७५; वायु. ९२.१०३)। पंचमहायज्ञ के वैश्वदेव में उन्हे देव के नाते प्रवेश ३. काशी के दिवोदास (प्रथम) की पत्नी । प्राप्त हुआ। रामकृष्ण आदि अवतारी पुरुष भी पहले ४. उशीनर की पत्नी। मनुष्य ही थे। दृष्टरथ-एक बड़ा राजा (म.अनु. २७१.५०.कुं.)। देवों के शासकवर्ग में, इंद्र, सप्तर्षि आदि लोग प्रमुख दृष्टशर्मन--(सो. वृष्णिा.) विष्णुमत में श्वफल्क का थे। इंद्रादि देवों के वर्णन से पता चलता है कि, वे भी पुत्र। पहले पराक्रमी मानव ही थे। अपने अतुल पराक्रम के देय--सुन्य देवों में से एक । कारण वे देव हो गये। पृथ्वी पर से सर्वाधिक पराक्रमी देव-एक प्राचीन मानवज्ञातिसंघ । प्राचीन वैदिक | व्यक्ति को केवल देवत्व ही नही, इंद्रपद भी प्राप्त हो सकता एवं पौराणिक ग्रंथों में, देव, असुर, राक्षस, पितर आदि | था। प्र येक मनु के इंद्र एवं सप्तर्षि अलग रहते थे। जातिसंघो का, एवं इन ज्ञ तियो के स्त्री पुरुषों का निर्देश इंद्रपद के प्राप्ति के लिये प्राचीन काल में कितने झगड़े २९०
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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