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________________ प्राचीन चरित्रकोश दमयन्ती छोड़ कर नल चला गया। बाद में अयोध्या के ऋतुपर्ण राजा के यहाँ, बाहुक नाम से वह सारथ्यकर्म करने लगा। बाद में इसे एक अजगर निगलने लगा। उस समय एक भील ने इसको बचाया। परन्तु उसके मन में दमयंती के लिये, पापवासना जागृत हुई। इस कारण, इसने अपने पातिक्रत्य सामर्थ्य से उसे दग्ध किया । तदनन्तर सार्थवाहों के काफिले के साथ, यह चेदिपुर आई, तथा सैरंध्री नाम धारण करने लगी । इसके पिता द्वारा इसकी खोज के लिये भेजे गये एक दूत ने इसे ढूँढ निकाला । पश्चात् यह अपने मायके में जा कर रहने लगी । नल का पता लगाने के हेतु, इसने अपना दूसरा स्वयंवर जाहीर किया। उस स्वयंबर में नल उपस्थित हुआ । नल तथा दमयंती का पुनर्मीलन हुआ। बाद में नल ने पुष्कर से अपना राज्य पुनः जीता। इससे इन दोनों का जीवन सुख से व्यतीत हुआ (म. व. ५४–७८; नल देखिये ) । दमयंती ने अपने दूसरे स्वयंवर का केवल नाटक रचाया था । इस स्वयंवर के लिये बाहुक (नल ) एवं ऋतुपर्ण के सिवा और किसी को नहीं बुलाया था। इसके पिता भीम को भी इस स्वयंवर का पता नहीं था। बाहुक नल ही है या नहीं, इसकी जाँच लेने के लिये, स्वयंवर का नाटक इसने रचाया था। २. शैब्यपुत्र संजय की कन्या । एक बार, नारद तथा पर्वत ऋषि, बरसात शुरू होने कारण चार माहों तक, संजय राजा के घर में रहने के लिये आये । उनकी योग्य व्यवस्था कर राजा ने दमयंती को उनकी सेवा के लिये नियुक्त किया । बाद में नारद के प्रति इसके मन में प्रीति उत्पन्न हो गयी । पर्वत की अपेक्षा, नारद के आदरातिथ्य की ओर, यह जादा ध्यान देने लगी। पर्वत को संशय आकर उसने नारद से पूछा। नारद ने कबूल किया कि, 'वह दमयंती से प्रेम करता है'। यह देख कर पर्वत ने क्रोधित हो कर नारद को शाप दिया, 'तुम वानरमुख बनोगे ' । नारद ने भी पर्यंत को शाप दिया, 'तुम स्वर्ग में न जा सकोगे । , दरद भी जामात के नाते नारद पसंद नहीं था । तदनुसार उसने इसे समझाने का बहुत प्रयत्न किया । परंतु इसने कहा, 'मूर्ख राजपुत्र से शादी करने के बजाय, गायनविद्या जाननेवाले, गुणग्राही तथा मधुर संभाषण करनेवाले नारद का वरण ही श्रेयस्कर है । अन्त में दमयंती के कथनानुसार, इसका विवाह संजय ने नारद से कर दिया। कालांतर में पर्वत मुन ने अपना दिया हुआ शाप वापस लिया, तथा नारद पूर्ववत् दिखने लगा । दमयंती ने भी आनंद से यह वृत्तांत अपने मातापिता को बता दिया ( दे. भा. ६. २६ - २७; म. द्रो. परि. १. क्र. ८. पंक्ति. २७४ से आगे; श्रीमती देखिये) । दमवाह्य - अंगिरस् गोत्र का प्रवर । चमदाह्य इसका पाठभेद है । दंभ - विप्रचित्ति दानव का पुत्र ! २. (सो. पुरूरवस् . ) मत्स्य मतानुसार आयु का पुत्र 1 ·30 दंभोद्भव -- एक राजा । यह अपने ऐश्वर्य से मत्त हो कर, हमेशा ब्राह्मणों से पूछता था, "मुझे से बढ़ पर श्रेष्ठ इस पृथ्वी पर कौन है। ब्राह्मणों ने इसका प्रअ सुन कर इसकी मज़ाक उड़ायी फिर भी यह आदत से बाज न आया । तब ब्राह्मणों ने श्रेष्ठ नरनारायण का नाम इसे बताया। यह सेनासहित नरनारायण के आश्रम में गया। नरनारायण ने इसका पराभव किया, तथा इसका गर्व दूर किया । कृष्णदौत्य के समय परशुराम ने दभोद्भव की यह कहानी बतायी है ( म. उ. ९४९ कि. ५१.९१७९ पंक्ति ३१* ) । कोटिल्य के अर्थशास्त्र' में भी इसकी मदोन्मत्तता तथा नरनारायण के साथ युद्ध का निर्देश है । वहाँ डम्भोद्भव पाठ है ( कौटिल्य. पृ. २८ ) । दंभोलि -- दृढास्य का पुत्र । यह अगस्त्यकुलोत्पन्न था। परंतु इसके पिता हढ़ास्य को पुलहने अपना पुत्र माना । इसलिये यह पौलह बना ( विष्णु. १.१०.९ ) । दया- कश्यप प्रजापति की स्त्री, एवं दक्ष प्रजाप्रति की कन्या (स्कंद. १.२.१४) । यह धर्म की पत्नी थी, यों कई स्थानों पर उल्लेख है। इसे अभय नामक पुत्र था ( भा. ४.१.५० ) । शाप के कारण, नारद वानर के समान दिखने लगा । तथापि दमयंती ने उसकी सेवा में कमी न की संजय दमयंती के लिये वरसंशोधन कर रहा था। अपनी माता के द्वारा दमयंती ने पिता को सूचित किया कि, 'मैं नारद से प्रेम करती हूँ। बानरमुख एवं भिक्षुक नारद को अपनी कन्या देना राजा को योग्य न लगा। दमयंती की माता को दरद — दुर्योधन के पक्ष का एक वाह्निक राजा (म. आ. ६१.५५८० पंक्ति ६ । ) २६६ +
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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