SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दध्यञ्च प्राचीन चरित्रकोश दंदशूक इस क्रम से वायु, सूर्य, आकाश, चंद्र, विद्युत् , सत्य, विदित था। नारायण वर्म (कवच) का निर्देश भागवत आत्मा तथा ब्रह्म की खोज हर एक तत्त्वज्ञ को करनी में मिलता है (भा. ६.८)। दधीच-तीर्थ कुरुक्षेत्र में पडती है । मूल तत्त्व पता लगाने से, आत्मतत्त्व का संसार | प्रख्यात है (म. व. ८१.१६३ )। से घनिष्ठ तथा नित्य संबंध ज्ञात होता है । संसार तथा | मत्स्य तथा वायुमत में यह भार्गव गोत्र का मंत्रकार आत्मतत्त्व ये एक दूसरों से अभिन्न है । चक्र के जैसे आरा, था। कई ग्रंथों में इसका ऋचीक नामांतर भी प्राप्त है उसी प्रकार आत्मतत्त्व का संसार से संबंध हैं । संसार का | (ब्रह्मांड २.३२.१०४)। मूल तत्त्व ब्रह्म है। ब्रह्म तथा संसार की प्रत्येक वस्तु 'ब्राह्मण एवं क्षत्रियों में श्रेष्ठ कौन', इस विषय पर परस्परों से अभिन्न है'। क्षुप एवं दधीच ऋपि में बहुत बड़ा विवाद हुआ था। उस ऋग्वेद की ऋचाओं में इसके द्वारा प्रतिपादित वाद में, प्रारंभतः दधीच का पराभव हुआ। किंतु अंत में मधुविद्या, बृहदारण्यकोपनिषद' में उन मंत्रों की व्याख्या यह जीत गया, एवं इसने ब्राहाणों का श्रेष्ठत्त्व प्रस्थापित कर के अधिक स्पष्ट की गयी है। किया (लिंग. १.३६)। इसी विषय पर शुक्थु के साथ भी इस विद्या के महत्त्व के कारण ही, दधीच का नाम | इसका विवाद हुआ था । उस चर्चा में अपना विजय हो, एक तत्त्वज्ञ के रूप में वेदों में आया है (तै. सं. ५.१.४. इसलिये क्षुवथु ने विष्णु की आराधना की । पश्चात् विष्णु ४; श. ब्रा. ४.१.५.१८, ६.४.२.३; १४.१.१.१-८२२६; | ब्राह्मणरूप में दधीच के पास आया। विष्णु एवं दधीच तां. बा. १२.८.६; गो. बा. १.५.२१; बृ. उ. २.५.२२; का युद्ध हुआ। पश्चात् इसने विष्णु को शाप दिया, ४.५.२८)। 'देवकुल के सारे देव रुद्रताप से भस्मसात हो जायेंगे। अस्थिप्रदान-वृत्र के कारण देवताएँ त्रस्त हुई। | दनायु--प्राचेतस दक्ष प्रजापति तथा असिन्नी की देवताओं ने वृत्रवध का उपाय विष्णु से पूछा । उसने कहा, | कन्या तथा कश्यप की भार्या (कश्यप देखिये)।.. 'दधीच की हड्डियों से ही वृत्र का वध होगा । उन हड्डियों के | दनु--प्राचेतस दक्ष प्रजापति तथा असिनी की कन्या त्वष्टा से वज्र बना लो । हड्डियाँ माँगने को अश्वियों को भेजो'।। | तथा कश्यप की भार्या (कश्यप देखिये.)। इससे दानव हड्डियों के प्राप्त्यर्थ इस पर हथियार चलाने को त्वष्टा | उत्पन्न हुएँ। दानव एक जाति का नाम हैं। केशिन् , डरता था। किंतु आखिर वह राजी हुआ। उसने इसके | नमुचि, नरक, शंबर आदि दानव सुविख्यात थे। इसके शरीर पर नमक का लेप दिया । पश्चात् गाय के द्वारा नमक | पुत्र का नाम वृत्र था (श. ब्रा. १.५.२.९)। के साथ ही इसका मांस भी भक्षण करवाया। पश्चात् | दनुपुत्र--एक ऋषि । ऋग्वेद की कुछ ऋचाओं का यह इसकी हड्डियाँ निकाली गयी। त्वष्टा ने उन हड्डियों से | द्रष्टा हैं (ऋ. ३.६.१-१४, कश्यप देखिये)। षट्कोनी वज्र तथा अन्य हथियार बनाये । | दंतक्रूर-एक क्षत्रिय । इसे परशुराम ने मारा (म. ___ दधीचि के अस्थिप्रदान के बारे में, पुराणों में निम्न- | द्रो. परि. १ क्र. ८. पंक्ति. ८३७)। लिखित उल्लेख प्राप्त है। देवासुर संग्राम के समय, | दंतवक्र--करुष-देश का राजा । यह वृद्धशर्मन् तथा देवों ने इसके यहाँ अपने हथियार रखे थे। पर्याप्त | श्रुतदेवी का पुत्र था। कलिंगराज चित्रांगद की कन्या के समय के पश्चात् भी, उसे वापस न ले जाने से, दधीच ने | स्वयंवर में यह उपस्थित था (म. शां. ४.६)। द्रौपदी उन हथियारों का तेज, पानी में घोल कर पी लिया। बाद | स्वयंवर में, लक्ष्यवेध का असफल प्रयत्न इसने किया था। में देवताएँ आ कर हथियार माँगने लगे। इसने सत्त्यस्थिति | वहाँ इसका वक्र नाम से निर्देश है (म.आ. १८२४४)। उन्हें कथन की, एवं उन हथियारों के बदले अपनी हड़ियाँ | पांडवों के राजसूययज्ञ के समय, दक्षिण दिग्विजय में सहदेव लेने की प्रार्थना देवों से की। देव उसे राजी होने पर, | ने इसे जीता था (म. स. २८.३. भा. ९.२४.३७)। योगबल से इसने देहत्याग किया (म. व. ८८.२१, श. | भारतीययुद्ध में इसे पांडवों की ओर से रण-निमंत्रण ५०.२९; भा. ६.९.१०; स्कन्द. १.१.१७; ७.१.३४; ब्रह्म. | दिया गया था (म. उ. ४.२२)। शिशुपाल, शाल्व, ११०; पक्षा. उ. १५५; शिव. शत. २४)। सौभ, विदूरथ के बाद, कृष्ण ने इसका वध किया (भा. इसका आश्रम सरस्वती के किनारे था ( म. व. ९८. | १०.७८.१३; जयविजय देखिये)। १३)। गंगाकिनारे इसका आश्रम था(ब्रह्म .११०.८)। दंतिल--मतंग ऋषि का पुत्र । इसका भाई कोहल | इसे 'अश्वशिर' नामक विद्या तथा 'नारायण नामक' वर्म | दंदशूक-क्रोधवशा से उत्पन्न सों में से प्रमुख । २६४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy