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________________ त्रित प्राचीन चरित्रकोश त्रिपुर (त्र. ५.४१.४)। त्रित की वरुण तथा सोम के साथ | उस समय उसे यह पूर्वयुग की कथा सुनाई गयी (म. एकता दर्शाई है (ऋ. ८.४१.६;९.९५.४)। श. ३५; भा. १०.७८)। आत्रेय राजा के पुत्र के रूप एक बार यह कुएँ में गिर पड़ा । वहाँ से छुटकारा हो, में, त्रित की यह कथा अन्यत्र भी आई है (स्कन्द. ७.१. इस हेतु से इसने ईश्वर की प्रार्थना की। यह प्रार्थना | २५७)। बृहस्पति ने सुनी तथा त्रित की रक्षा की (ऋ. १.१०५. २. चक्षुर्मनु को नब्बला से ऊ पुत्रों में से एक । १७)। भेडियों के भय से ही त्रित कुएँ में गिरा होगा। ३. अंगिरस् गोत्र का एक मंत्रकार । (१८)। इसी ऋचा के भाष्य में, सायण ने शाट्यायन ४. ब्रह्मदेव के मानस पुत्रों में से एक । ब्राह्मण की एक कथा का उल्लेख किया है। एकत, द्वित निधन्वन--(सू. इ.) विष्णु, वायु तथा भविष्य के तथा त्रित नामक तीन बंधु थे। त्रित पानी पीने के लिये मतानुसार वसुमनस् का पुत्र; परंतु मत्स्य तथा पद्म के कुएँ में उतरा। तब इसके भाईयों ने इसे कुएँ में धक्का मतानुसार संभूति का पुत्र । भागवत में अरुणपुत्र त्रिबंधन दे कर गिरा दिया, तथा कुँआ बंद करवे चले गये । तब | | का निर्देश आया है । वह तथा यह एक ही है। मुक्ति के लिये, त्रित ने ईश्वर की प्रार्थना की (इ. १. १०५)। यह तीनों बंधु अग्नि को उदक से उत्पन्न हुएँ थे त्रिधामन-वर्तमान मन्वन्तर का दशम व्यास (व्यास देखिये)। (श. ब्रा. १.२.१.१-२; तै. ब्रा. ३.२.८.१०-११)। २. दसवाँ शिवावतार। इसने काशी में तपस्या की। महाभारत में, त्रित की यही कथा कुछ अलग ढंग से दी गयी है । गौतम को एकत, द्वित तथा त्रित नामक पुत्र इसे भंग, बलबंधु, नरामित्र, तथा केनुशंग नामक चार शिष्य थे। इसके समय भृगु ऋषि व्यास था (शिव. शत. ५)। थे। यह सब ज्ञाता थे। परंतु कनिष्ठ त्रित तीनों में श्रेष्ठ होने के कारण, सर्वत्र पिता के ही समान उसका सत्कार __त्रिनाभ---कश्यप तथा खशा का पुत्र। . होने लगा। एकत तथा द्वित का लोगों पर अधिक प्रभाव | त्रिनेत्र--(मगध. भविष्य.) मस्त्य के मतानुसार न पड़ता था। इन्हें विशेष द्रव्य भी प्राप्त नहीं होता था। निवृत्ति का पुत्र । वायु में इसको सुव्रत, ब्रह्मांड तथा एक बार त्रित की सहायता से यज्ञ पूर्ण कर के, इन्होंने | विष्णु में सुश्रम, तथा भागवत में शम कहा गया है। काफी गौों प्राप्त की। गौों ले कर जब ये सरस्वती के मत्स्य के मतानुसार इसने अट्ठाईस, तथा वायु तथा ब्रह्मांड : किनारे जा रहे थे, तब त्रित आगे था। दोनों भाई गौओं | के मतानुसार 'अडतीस वर्षों तक राज्य किया। को हाँकते हुए पीछे जा रहे थे। इन दोनों को गौओं का त्रिपुर-एक असुरसंघ । मयासुर ने ब्रह्माजी के हरण करने की सूझी। त्रित निःशंक मन से जा रहा था। प्रसाद से तीन पुरों (नगरों) की रचना की। उन पुरों इतने में सामने से एक भेडिया आया। उससे रक्षा करने क्रमशः लोहमय, रौप्यमय, एवं सुवर्णमय थे। नगर के हेतु से त्रित बाजू हटा, तो सरस्वती के किनारे के एक | पूर्ण होने के पश्चात्, उनका अधिपत्य तारकासुर के कुएँ में गिर पड़ा। इसने काफी चिल्लाहट मचाई। परंतु | ताराक्ष, कमलाक्ष एवं विद्युन्मालि इन तीन पुत्रों को दिया भाईयों ने सुनने पर भी, लोभ के कारण, इसकी ओर | गया (म. क. २४.४)। ये तीन असुर 'त्रिपुर' नाम से ध्यान नहीं दिया । भेड़िया का डर तो था ही। प्रसिद्ध हुएँ। जलहीन, धूलियुक्त तथा घास से भरे कुों में गिरने के मयासुर ने नगर निर्माण कर असुरों को दिये। उस बाद, त्रित ने सोचा कि, 'मृत्यु भय से मैं कुों में गिरा। समय उसने त्रिपुरों को चेतावनी दी कि, 'तुम्हें देवताओं इसलिये मृत्यु का भय ही नष्ट कर डालना चाहिये। इस को न तो त्रस्त करना चाहिये, नहीं तो उनका अनादर विचार से, कुएँ में लटकनेवाली वल्ली को सोम मान कर | करना चाहिये। इसने यज्ञ किया। देवताओं ने सरस्वती के पानी के द्वारा किंतु बाद में विपरीत बुद्धि हो कर, त्रिपुर अधर्माचरण इसे बाहर निकाला। आगे वह कूप 'त्रित-कूप' नामक तीर्थ- करने लगे। इसलिये शिवजी के हाथ से इनका नाश स्थान हो गया। हुआ। यह अधर्माचरण विष्णु ने इनमें फैलाया (शिव. घर वापस जाने पर, शाप के द्वारा इसने भाईयों को | रुद्र. ४.५)। त्रिपुरा में धार्मिकता होने के कारण, उनपर भेड़िया बनाया। उनकी संतति को इसने बंदर, रीछ आदि | विजयप्राप्ति असंभव थी। इसलिये विष्णु ने बुद्ध के बना दिया । बलराम जब त्रित के कूप के पास आया, रूप में इन पुरों को धर्मरहित किया। बाद में देवों ने
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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