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________________ प्राचीन चरित्रकोश अगस्त्य । के राजा की कन्या लोपामुद्रा इसकी पत्नी है । यह सब प्रसंग इसका दक्षिण के साथ अधिक संबंध दर्शाते है यह दक्षिण का ही वासी था ऐसा भी कहा जा सकता था, परन्तु उत्तर की ओर यमुना, प्रयाग, गंगा के साथ इसका संबंध आया है (मत्स्य. १०३ म. आ. २३५. २; व. ९५.११ ) । इससे यह विंध्याचल को नम्र बना कर दक्षिण में आया, इस कथा की पुष्टि होती है | अगस्त्य नामक तारा भाद्रपद माह में दक्षिण की ओर उदित होता है तथा इसके उदय के बाद पानी निर्दोष हो जाता है, इस कथा का संबंध अगस्त्य व्यक्ति से जोड़ा गया है (मत्स्य. ६१ ) । अगस्त्यद्वारा रचित ग्रंथ - १. वराहपुराण में पशुपालोख्यान में प्राप्त अंगस्त्यगीता, २. पंचरात्र की अगस्त्य संहिता, ३. स्कन्दपुराण की अगस्त्य संहिता, ४. शिवसंहिता (c.), ५. भास्कर संहिता का द्वैधनिर्णयतंत्र (ब्रह्मवै. २.१६ ) । अगस्त्य वंश के गोत्रकार करंभ (करंमय), कौशल्य (ग), मतुवंशोदभव, गांधारकायन, पौलस्त्य, पील्ड, मर्योभुव, शकट (करट), सुमेधस ये गोत्रकार अगस्त्य, मयोभुव, तथा महेन्द्र इन तीन प्रवरों के हैं। ६. ब्रह्मदेव का मानसपुत्र उसके कोपसे इसकी उत्पत्ति हुई ( म. शां. ४८. १६) दक्ष प्रजापती की कन्या स्वाहा इसकी पत्नी ( म. व. २२० भा. ४. १. ६० ) । दूसरी पत्नी याकुवंश के दुर्योधन राजा की । इक्ष्वाकुवंश माहिष्मती नगरी के राजा नील की कन्या । नीलम्बर कन्या सुदर्शना (म. अनु. २.२१) । प्रथम पत्नी स्वाहा नीलध्वज ने अपनी कन्या अग्नी को देते समय ऐसा करार किया और जो भी शत्रु माहिष्मती नगरी पर आक्रमण करे, उसका था कि, वह निरन्तर नीलम्बज की नगरी में ही रहे, सैन्य जला डाले। इस करार के कारण अग्नि अपने श्वसुरगृह में घर जमाई बन कर रहने लगा। आगे चल कर जब अर्जुन की सेना से नीलध्वज को लड़ना पड़ा, तब अग्नि ने अर्जुन की सेना को जला दिया (जै. अ. १५) । इसने सहदेव की सेना भी जलाई परंतु अन्त में सहदेव द्वारा स्तुति की जाने पर यह वापस लौटा ( म. स. २८ ) । सप्तर्षियों का हविर्द्रव्य देवताओं को अर्पण कर के लौटते समय, सप्तर्षि की पत्नियाँ इसे गोचर हुई। तब इसके मन में कामवासना उत्पन्न हुई तथा उनकी प्राप्ति की इच्छा से गार्हपत्य में प्रविष्ट हो कर यह चिरकाल तक उनके पास रहा। परन्तु वे इसके वश में न आने के कारण, अत्यंत निराश हो कर देहत्याग का निश्चय कर के वह अरण्य में गया । परंतु उन खियों में से दक्षकन्या । स्त्रियों स्वाहा की प्रीती अग्नि से होने के कारण, वह इसके पीछे वन में गई तथा उसने अन्य सप्तर्षि-पत्नियों का स्वरूप | इस से ज्ञात होता है की अगस्त्य, निमि तथा अलर्क धारण कर के इसकी इच्छापूर्ति की (म.व. २११ - २१४ ) । का समकालीन था । परन्तु वह अरुंधती का रूप न ले सकी । अगस्त्य (ग), पौर्णिमास ( ग ) ये गोत्रकार अगल्य, पारण, पौर्णिमा इन तीन प्रवरों के है ( मल्या. २०२ ) । अगस्त्यगोत्रीय मंत्रकार मत्स्य. १४५.११४-११५२.३२, ११८-१२० अगस्त्य अगस्त्य अय इन्द्र बाहु दृढायु दृढद्युम्न विध्यबाह इनमें से अगस्त्य, इन्द्रबाहु तथा हटयुम्न को अगस्ति संज्ञा है (मत्स्य. १४५. ११४-११५) । अग्नि अगस्त्यशिष्य—वेद की कुछ ऋचाएँ इसके नाम पर हैं (ऋ. १. १७९५-३) । अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा विदर्भराज निमि की कन्या थी निमि ने उस को लोपामुद्रा के साथ राज्य भी दिया था ( म. अनु. १३. ११ ) । काशी का नृप प्रतर्दन का पोता तथा बस का पुत्र अलर्क ने लोपामुद्रा की कृपा से दीर्घायु प्राप्त की थी (वायु. ९२.६७: ब्रह्माण्ड ११. ५३)। ५ अगस्त्यस्वसृ - मंत्रद्रष्ट्री (ऋ. १०.९०.९ ) । अग्नि-इन्द्र का शिष्य । इसका शिष्य काश्यप (. बा. २ ) । २. एक आचार्य । इसने सोम की विशेष परंपरा सनश्रुत को कथन की ( ऐ. ब्रा. ७. ३४ ) । ३. धर्म तथा वसु का पुत्र । इसको वसोर्धारा नामक पत्नी से द्रविणक . पुत्र हुए तथा कृत्तिका नामक पत्नी से स्कन्द नामक पुत्र हुआ ( भा. ६. ६. ११ ) । ४. स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ( मनु देखिये) । ५. तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ( मनु देखिये) ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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