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________________ तरंत प्राचीन चरित्रकोश था। इस पुत्र के लिये माँगा था। किंतु इस पुत्र का नाम प्राप्त से यह मारीच के साथ मलद तथा करुष देशों में आकर नहीं है (बृहद्दे. ५.५०-८१)। रहने लगी। वह प्रदेश उजड़ कर 'ताटकावन' नाम से पुस्मीहळ तथा यह ये दोनों जन्म से क्षत्रिय थे। किंतु | प्रसिद्ध हुआ। आपत्काल के जरियें इन्हे ऋषि बनना पडा। क्षत्रियों के पास ही में विश्वामित्र का आश्रम था। उसने यज्ञ प्रारंभ लिये दानग्रहण का निषेध होने के बावजूद, ध्वस्त्र तथा किया कि, यह माँ बेटे उसका विध्वंस करते थे। त्रस्त पुरुषन्ति से इन्होंने दान स्वीकार कर के प्रतिग्रह-दोष हो कर विश्वामित्र अयोध्या गया, तथा यज्ञ के संरक्षण के मंत्रप्रभाव से हटा दिया (पं. ब्रा. १३.७१२; जै. लिये, दशरथ के पुत्रों को ले आया। ताटका की सारी ब्रा. ३.१३९)। अपने दान-कर्ताओं की प्रशस्ति भी पापी हरकतें बता कर, उसने उन पुत्रों को इसका वध इन्होंने बनायी थी (ऋ. ९.५८.३, शा. बा. सायण- | करने के लिये कहा। तब राम ने इसका वध किया भाष्य; साम. २.४१०)। किंतु सर्वानुक्रमणी के अनुसार | (वा. रा. बा. २५-२६)। इस दानप्रशस्ति का कर्ता ये नहीं, बल्की अवत्सार काश्यप | ताड़का-ताटका का नामांतर । ताड़कायन--विश्वामित्र का पुत्र (म. अनु. ७.५६ तरस--राम सेना का एक वानर। यह हनुमान के | कुं.)। साथ पश्चिम द्वार का रक्षण करता था। | तांड--एक आचार्य । ताम गायन करते समय गायत्री तरुक्ष--एक दाता। दास बल्बुथ के साथ ऋग्वेद की छंद के मंत्र का प्रस्ताव, अष्टाक्षरी होना चाहिये 'इस मत दानस्तुति में इसका उल्लेख आया है। वशाश्व्य का यह का यह प्रवर्तक था (ला. श्री. ७.१०.१७) । लाट्यायन आश्रयदाता था। इससे दान मिलने का प्रशस्तीपूर्वक श्रौतसूत्र में इसे पुराणताण्ड कहा गया है। . निर्देश वशाय ने किया है (ऋ.८.४६.३२)। तांडविंद वा तांडविंदव-एक आचार्य (सां. आ. तरुणक-एक सर्प (म. आ. ५२.१७)। ८.१०)। तजे-उत्तम मनु का एक पुत्र । तांडि--अंगिरागोत्र का प्रवर । ' सामविधान तर्पय-वसिष्ठकुल का गोत्रकार । ब्राह्मण' में दिये विद्यावंश से, यह बादरायण का शिष्य तष--अर्क नामक वसु का पुत्र । प्रतीत होता है। तल-एक शाखाप्रवर्तक (पाणिनि देखिये)। तांडिन्-एक छन्दशास्त्रज्ञ आचार्य । महावृहती छन्द तलक-(आंध्र. भविष्य.) भागवत मत में हालेय | को यह सतोबृहतीं छन्द कहता है (छन्दःशास्त्रम् ३.३६)। का पुत्र । पंचपत्तलक, पत्तलक, एवं मंदुलक इसीके ही तांड्य--एक आचार्य (श. बा. ६.१.२.२५)। नाम है। 'अनिचिती' से संबंधित किसी विषय पर इसका उद्धरण तलवकार--एक शाखाप्रवर्तक (पाणिनि देखिये)।। दिया गया है। जैमिनिगृह्यसूत्र के उपकौगतर्पण में इसका उल्लेख है। वैशंपायन का यह शिष्य था। वैशंपायन के शिष्यों तवि-सोमतन्वि पाठभेद हैं। में से ऋचाभ, आरुणि, तथा यह, मध्य देश के थे। ताटका--एक राक्षसी । यक्षिणी होने की वजह से, सामवेद का 'तांड्य महाबाहाण' इसने निर्माण किया है। मनचाहे मायावी रूप यह ले सकती थी। हजार हाथियों | यह ग्रंथ सामवेद की कौथुम शाखा का है, एवं तंडिनो का बल इसमें था। की परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है। उसे 'पंचविंश यह सुकेतु नामक यक्ष की कन्या थी। सुकेतु को यह ब्राह्मण' अथवा 'प्रौढ ब्राह्मण' भी कहते है । विचक्षण ब्रह्मदेव के वर से उत्पन्न हुई थी। जंभपुत्र सुंद की यह का तांड्य यह पैतृक नाम है (वं. बा.२)। पत्नी थी। सुंद से इसे मारीच तथा सुबाहु ये पुत्र हुए। महाभारत में भी इसके नाम का निर्देश है (म. स. __ सुंद के द्वारा कुछ अपराध होने के कारण, अगस्त्य ने | ७.१०; शां. २३६.१७)। शाप दे कर उसको नष्ट किया। बदला लेने के हेतु से तान्व--पुथु का पुत्र (ऋ. १०.९३. १५)। पुथु अपने पुत्रों समेत, ताटका ने अगस्त्य पर आक्रमण किया। राजाओं में इसका उल्लेख आया है । तन्व का वंशज, इस तब अगस्य ने मारीच को राक्षस होने का, तथा ताटका | अर्थ से भी यह नाम प्रयुक्त होगा। पैतृक धन कन्या को को मनुष्यभक्षक भद्दा राक्षसी होने का शाप दिया। तब | नही, बल्की पुत्र को मिलना चाहिये, ऐसा इसका मत था
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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