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जयशर्मन
जयशर्मन - अवंतीनगर के शिवशर्मा ब्राह्मण का पुत्र । व्यसनी हो कर भी, इसने अधिकमास में वद्य एकादशी का व्रत आचरण किया। लक्ष्मी ने इसे एकादशी माहात्म्य बताया (पद्म. उ. ६२ ) ।
• जयसेन - - जयत्सेन १.२. देखिये ।
प्राचीन चरित्रकोश
२. (सो. क्षत्र. ) भागवत मत में अहीनपुत्र ( जय- पोषण की जिम्मेवारी मुझ पर न हो। इस शर्तपर, उससे त्सेन देखिये )।
३. क्षत्रिय राजा मागध ( म. स. ४.२३ ) ।
४. अवंत्य राजा । इसे राजाधिदेवी नामक स्त्री थी । इसके पुत्र विंदानुविंद एवं कन्या मित्रविंदा थी । वह कृष्ण को विवाह से दी गयी थी।
जया -- कृशाश्व प्रजापति की कन्या तथा पार्वती की दासी (स्कंद. १.३.२.१८ ) । यह पार्वती की सखी होने का उल्लेख भी प्राप्त है। (वामन ४ पद्म. उ. १६ ) | जयानीक - द्रुपदपुत्र पांचाल । भारतीययुद्ध में यह अश्वत्थामा से मारा गया ( म. द्रो. १३१.१२.७ ) ।
२. विराट का भाई ( म. द्रो. १३३.३९ ) । जयावह -- मणिवर तथा देवजनी का पुत्र । जयाश्व - जवानी का भ्राता अश्वत्थामा ने भारतीययुद्ध में इसका वध किया (म.द्रो. १२१.१२७)
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२. विराट का भाई ( म. द्रो. १३३.३९ ) । जयेश -- विराट नगरी में भीम द्वारा धारण किया गया गुप्त नाम (म. वि. ५.३० २२.१२ भांडारकर प्रति: जयंत ) ।
जरासंध
रहा है । अतः किस तरह क्यों न हो, हमारे पुत्र से विवाह करने को कहो' । तब इसने कहा, 'मैं तुम्हारा ही पुत्र हूँ । में ने ब्रह्मचर्यावस्था में रहने का निश्चय किया था। तुम्हारी यह स्थिति देख कर मैंने अपना विचार बदल दिया है। मेरे ही नाम की कन्या मुझे भिक्षा में प्राप्त हो । उसके
जर—जरस् देखिये ।
जरत्कारु -- ऐरावत सर्प तथा एक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.७६ ) ।
२. एक ऋषि । कारु का अर्थ है शरीर । शरीर को तप से क्षीण करता है, वह जरत्कारु, यह इस शब्द की व्युत्पति है ( म. आ. ३६.२ ) । यह यायावरों का पुत्र था ( म. आ. ४१.१६ ) ।
मैं विवाह कर लूँगा' ।
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वृद्ध होने के कारण कोई भी इसे कन्या नहीं देता था । पश्चात् अरण्य में वासुकि ने अपनी जरत्कारु नामक भगिनी इसे दी, तथा उसका पोपण करने की जिम्मेवारी स्वयं उठा ली। विवाह होने पर पतिपत्नी एकत्र रहने लगे । परंतु इसने शुरु मे ही इसे चेतावनी दी की, 'मेरे मन के विरुद्ध अगर तुम व्यवहार करोगी, तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा'।
एक दिन यह अपनी पत्नी की गोद में सिर खा कर सोया था । सायंकाल होने के बाद, संध्यालोप न हो, इसलिये उसने पति को जागृत किया तब में सोया हूँ। सूर्य की क्या मजाल है कि, वह अस्तायमान हो ? ऐसा क्रोध में वह कर यह पुनः तप करने के लिये गया ( म. आ. ४२.२९ ) । इस समय जरत्कारु] गर्भवती थी । उसे आस्तीक नामक पुत्र हुआ । जरत्कारु की पत्नी कश्यपकन्या मनसा से, आस्तीक का जन्म हुआ (दे. भा. ९४७-४९ मनसा देखिये) ।
३. जरत्कारु की पत्नी ( जरत्कारु २. देखिये) । जरद्गौरी -- आस्तीक की माता जरत्कारु का नामांतर ।
जरस् -- वसुदेव को रथराजी नामक स्त्री से उत्पन्न द्वितीय पुत्र । इसे 'जर' नामांतर है। यह क्षत्रिय था, परंतु दुराचरण से व्याध बना। इसीके बाण से कृष्ण की मृत्यु हुई। बाद में भलतीर्थ में इसकी मृत्यु हो गई (भा. ११. ३०.३२ म. मौ. ५.१९-२२ स्कन्द ७.१.२३९-२४१) ।
जरा एक राक्षसी तथा जरासंध की उपमाता ( जरासंध देखिये) । जरासंध ने कृष्णादि को का वध करने के लिये गदा फेंकी उसका प्रतिकार करने के हेतु, राम ने स्थूणाकर्ण नामक अस्त्र फेंका। इन दोनों के बीच में आने के कारण, इसकी मृत्यु हो गई (म. द्रो. १५६.१४) ।
ब्रह्मचारी अवस्था में जरत्कारु तीर्थयात्रा कर रहा था। तब इसे पास के आश्रय से एक गड्ढे में लटकनेवाले वीरणक नामक पितर दिखे । घास का जड़ चूहों द्वारा कुतरा जा रहा था। इसी कारण उनका आधार कब टूट जावेगा कह नही सकता था । उनकी इस अवस्था का कारण इसने पूछा। उन्होंने कहा, 'जरत्कारु अविवाहित होने के कारण हमारा वंश खंडित हो गया है । इस लिये हमारी यह स्थिति हो गई है। केवल तप के भरोसे हम भाज तक जीवित हैं। परंतु उस तप को कालरूपी चूहा दिनरात कुतर | विवाह किये थे। लंबी कालावधि तक वह अनपत्य रहा।
जरासंध - (सो. मगध . ) वायु मत में नभस्- पुत्र । भागवत, विष्णु एवं मत्स्य मत में राजा वृहद्रथ का पुत्र | इसलिये इसे बार्हद्रथि नामांतर था ।
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वृहद्रथ राजा ने काशिराज की जुड़यों कन्याओं से
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