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गाधि
प्राचीन चरित्रकोश
गांधारी
दुख से, यह स्वयं भी अग्निप्रवेश करने को सिद्ध हो गया, गांधारी-गांधार देशाधिपति सुबल की कन्या (म. तथा अग्निराशि पर गिर गया। इसके अवयव जलने लगे। आ. ९०.६१)। इसने बाल्यावस्था में रुद्र की आराधना
इसी समय, सरोवर के जल में अघमर्षण करनेवाला | की थी, जिस कारण इसे सौ पुत्र होंगे ऐसा वरदान गाधि ब्राह्मण, इस दीर्घस्वप्न से जागृत हुआ। मिला। कुरुवंश में संतति का अभाव था। इसी कारण
चार घटिकाओं के बाद, इसका भवभ्रम नष्ट हुआ। भीष्म आदि लोगों ने धृतराष्ट्र के लिये, गांधारी की स्वप्न की सब घटनाओं का स्मरण कर, यह विचार करने | माँग की (म. आ. १०३. ९-१०)। तदनुसार सुबल लगा। तदनंतर गाधि ने देढ साल तक तपस्या की। तब इसे | ने धृतराष्ट्र को गांधारी दी। यह महापतिव्रता थी। दर्शन दे कर विष्णु ने बताया कि, तुमने देखी हुई सब | धृतराष्ट्र अंधा था । इसलिये इसने भी अपनी आँखों पर घटनायें माया है। विष्णुवचन की सत्यासत्यता अजमाने | पट्टी बाँध कर अंधत्व अंगिकार किया। यह परपुरुष के लिये, यह पुनः कीर देश में गया। विष्णुद्वारा का दर्शन भी न करती थी (म. आ. १०३.१३)। इसका मोह निरसन होने के पश्चात् , यह जीवन्मुक्त हुआ (यो. वा. ५.४४.४९)।
| वर के अनुसार इसके उदर में गर्भ रहा। इसे समागानबंध-वाराहकल के घोरकल्प में से प्रसिद्ध | चार मिला कि, कुंती को युधिष्ठिर उत्पन्न हुआ है। जल्दी गायनाचार्य । तत्कालीन नारद ने इससे गायन सीखा। | पुत्र हो, इसलिये इसने बलपूर्वक अपना गर्भ बाहर निकाला आगे चल कर कुछ कारणवश, इसे उलूक्योनि प्राप्त हुई । (म. आ. १०७.१०-११)। उससे मृतप्राय सा मांस (अ. रा. ७)।
का पिंड बाहर आया। इतने में वहाँ व्यास आये। यह गांदम-एकयावन का पैतृक नाम (ता. ब्रा. २१. | सारा हाल देख कर उन्हें इस पर बडी दया आई । उन्होंने १४, २०; तै. ब्रा. २..७. ११. २)। तैत्तिरीय ब्राह्मण
गर्भ के सौ टुकडे बनवा दिये । पश्चात् घृतकुंभ मँगवा कर, में कांदम पाठ है। .
उसमें गर्भ रखने का आदेश दिया। कहा कि, 'यथागांदिनी-काशिराज की कन्या, तथा यदवंश के | अवसर योग्य काल पा कर गर्भ व्यवस्थित हो जावेगा। श्वकल्क की पत्नी । अक्रूर आदि इसके पुत्र थे (भा.१०. |
तदनुसार योग्य समयपर गर्भ सजीव हुआ (म. आ. ४१)। यह अनेक वर्षों तक गर्भ में थी। इसका कारण
१०७.१२-१४)। इसी समय कुंती को भीम उत्पन्न इसके पिता ने पूछा । इसने कहा कि, 'अगर तुम मुझसे
हुआ (म. आ. ११४.१४)। गांधारी को दुर्योधन आदि हमेशा गोदान कराओगे, तो ही मैं जन्म लूंगी। इसके
सौ कौरव तथा दुःशला नामक कन्या यों एक सौ एक पिता ने यह कबूल किया (वायु. ९६. १०५-१०९;
संताने हुई (धृतराष्ट्र देखिये)। ह. वं. १. ३४. ६-१०)।
दुर्योधन ने पांडवों से शत्रुता प्रारंभ की, तब गांधारी . गांधार-(सो. द्रुह्यु.) भागवत मतानुसार आरब्ध |
ने हितोपदेश दिया। उसका कुछ भी परिणाम नही हुआ का, विष्णु मतानुसार सेतुपुत्र वा आरद्वत् का, मत्स्य |
| (म.उ. १२७) । दुर्योधन की मृत्यु के समय, कृष्ण ने इसे मतानुसार शरद्वत् का तथा वायुमतानुसार अरुद्ध का
सांत्वना दी (म.श.६२)। गांधारी ने रणक्षेत्र में आ कर, पुत्र । गांधार देश के राजाओं को, विशेषतः शकुनि को
पुत्रशोक से संतप्त हो, सब के शव (प्रेत) दिखाये । कृष्ण यह नामप्रयुक्त होता था (गांधार नमजित् देखिये)।
को शाप दिया कि, छत्तीस वर्षों में तेरे कुल का क्षय होगा। . गांधार नग्नजित्-एक गांधार राजा । इसे सोम- | तब कृष्ण ने हँस कर कहा कि, यह मुझे मालूम ही था विषयक ज्ञान प्राप्त था (ऐ, ब्रा. ७. ३४)। शतपथ | (म.स्त्री.२६.४१-४३)। इसके बाद व्यास आदि लोगों ने ब्राह्मण में इसका अथवा स्वर्जिन्नानजित् का, ननजित् | इसका सांत्वन किया। दुर्योधनवध तथा दुःशासन का रक्तऐसा उल्लेख मिलता है। एक बार, प्राण शब्द के अर्थ के | प्राशन, इस विषय पर भीम से इसका संवाद हुआ। तब संबंध में दिया हुआ इसका मत, राजन्यबंधु होने के | भीमसेन ने कहा, 'दुःशासन का लहू दांत तथा ओठों के कारण अस्वीकृत हुआ (८.१.४.१०)। सायणाचार्य | अंदर बिल्कुल ही नहीं गया' (म. स्त्री. १४.१४)। एक गांधार तथा नगजित् को दो पृथक् व्यक्ति मानते हैं (ऐ. ब्रा. बार इसकी संतापपूर्ण दृष्टि धर्म के पैरों की अंगुलियों पर भाष्य.)।
पड़ी । इससे उसकी अंगुलियों के अत्यंत सुंदर नख विद्रूप गांधारकायन-अगस्त्यकुल का एक गोत्रकार। । हो गये (म. स्त्री. १५.७)। द्रौपदी तथा कुन्ती अपने
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