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गवाक्ष
प्राचीन चरित्रकोश
गाधि
३. भारतीययुद्ध में भीम के द्वारा मारा गया राजा गाथिन--विश्वामित्र तथा विश्वामित्रवंशजो का पैतृक (म. द्रो. १३२.२०)।
नाम (ऐ. ब्रा. ७.१८)। गविजात-एक ब्रह्मर्षि (च्यवन तथा शंगिन्
गाधि--(सो. अमा.) वायुमतानुसार कुशाश्वपुत्र, देखिये)।
भागवत तथा विष्णु मतानुसार कुशांबुपुत्र । इसेही कौशिक गविष्ठ-कश्यप तथा दनु का पुत्र । एक दानव (म.
कहते हैं। यह कान्यकुब्ज देश का अधिपति था। इसकी आ. ५९.२९)
माता पुरुकुत्स की कन्या थी । इसे सत्यवती नामक कन्या २. अंगिरसपुत्र देवों में से एक।
थी। उसे ऋचीक ऋषि ने इससे माँगा । तब इसने गविष्ठिर आत्रेय--सूक्तद्रष्टा (ऋ. ५.१.१२; १०.
उससे एक हजार श्यामकर्ण घोडे ले कर, सत्यवती उसे दी। १५०.५, अ. सं. ४.२२.५; आश्व. श्री. १२.१४.१;
ऋचीक ऋषि ने दिये चरु के प्रभाव से, इसे विश्वामित्र ब्रह्मांड. २.३२)। यह अत्रिगोत्र का प्रवर है।
नामक पुत्र हुआ (ऋचीक देखिये; म. आ. १६५ व. गवेषण-(सो. यदु. वृष्णि.) अक्रूर के पुत्रों में से
११५, शां ४९; अनु. ७ कुं; भा. ९.१५.४; १६.२८; एक।
ह. वं. १.२७)। गवेष्टिन्--दनुपुत्र।
गाग्र-(सो. पुरूरवस् .) वायु के मतानुसार भुवन्मन्यु- २. कोसल देश में रहनेवाला एक ब्राह्मण। यह पुत्र । इसके पुत्रों को गाग्र यह सामान्यनाम दिया गया है। श्रोत्रिय एवं बुद्धिमान् था। यह बचपन से ही विरक्त था। अन्य पुराणों से प्रतीत होता है कि, ये गर्ग होंगे। कुछ इष्टकार्य की सिद्धि के लिये, यह भाईयों को छोड़ कर गांगेय--भीष्म का मातृक नाम (म.आ. ९४.७७)।
तपस्या करने के लिये अरण्य में एक सरोवर के किनारे २. गणपति देखिये।
गया । विष्णुदर्शन होने तक पानी में तप करने का इसने गांगोदधि--अंगिराकुलोत्पन्न गोत्रकार ।
निश्चय किया। दर्शन दे कर विष्णु ने इसे वर माँगने का
कहा। इसने विष्णु से भ्रामक संसारमाया दिखलाने की गांग्यायनि-चित्र का पैतृक नाम । गार्गायणि नामांतर
प्रार्थना की। है (को. उ. १.१)। गाणगारि-आश्वलायन देखिये ।
एक दिन स्नान करते समय, दर्भ हाथ में ले कर गातु आत्रेय-सूक्तद्रष्टा (ऋ५.३२)।
पानी मथना इसने प्रारंभ किया। तब इसे ऐसा दृश्य दिखा
कि, जोरों का तूफान आने के कारण, एकादे वृक्ष के समान गातु गौतम--संवर्गजित् लामकायन का शिष्य (वं.
उसका शरीर नीचे गिर गया है । वजन रो रहे हैं, तथा ब्रा. २)।
शुष्क शरीर चिता में डाल कर जला डाला गया है । बाद गात्र-उत्तम मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक।
में भूतमंडल देश की सीमा पर, एक ग्राम में, एक चांडाल गात्रवत्-कृष्ण का लक्ष्मणा से उत्पन्न पुत्र (भा. स्त्री के उदर में गर्भवास की नरकयातना भोगते हुए इसने १०.६१.१५)।
अपने को देखा । बाद में क्रमशः बढते बढते, यह विषयलोलुप गाथिन् -विश्वामित्र का पिता तथा कुशिक का पुत्र । बन गया। इसने चांडालकन्या से विवाह किया। वहाँ सर्वानुक्रमणी में इसका निर्देश है। गाथिन् कौशिक इसे संतति प्राप्त हो कर, यह वृद्ध हुआ। तदनंतर यह कुछ ऋचाओं का द्रष्टा है (ऋ.३.१९-२२) । विश्वामित्र ने | अरण्य में वास करने लगा। कुछ कालोपरांत, घर के शुनःशेप को दत्तक लिया। इसलिये वह, मूलवंश के तथा | लोगों की मृत्यु होना प्रारंभ हुआ। यह भ्रमिष्ट के समान गाथिन् के वंश के, यज्ञयागादि दैवी कमों में तथा मंत्रसाध्य वन में घूमने लगा। घूमते-घूमते यह कर लोगों की कमों में, प्रामुख्य प्राप्त करनेयोग्य हुआ (ऐ. ब्रा. ७. | राजधानी में आया । वहाँ के राजा की मृत्यु हो गई थी। १८)। विश्वामित्र के वंश के लिये, गाथिन् शब्द बहुवचन हाथी ने इस चांडाल को सूंड से पकड़ कर गंडस्थल पर प्रयुक्त होता है (आश्व. श्री. ७.१८)। यह अंगिराकुल बैठाया । इसलिये लोगों ने इसे राजा बनाया। इस प्रकार का गोत्रकार तथा इंद्र का अवतार था (वेदार्थदीपिका गवल नाम से इसने आठ वर्षों तक कीर देश का राज्य ३)। पुराणों में इसे गाधि कहा गया है (विश्वामित्र | चलाया। बाद में, नागरिकों को ज्ञान हुआ कि, अपना देखिये)।
राजा चांडाल है। उन्हों ने अग्निप्रवेश किया। उनके