________________
गरुड
प्राचीन चरित्रकोश
गरुड
अतिसूक्ष्म रूप धारण कर के, इस चक्र के बीच में विष्णु ने लीला से अपना एक हाथ इसके शरीर पर स्थित तूंबी के छेद से इसने भीतर प्रवेश किया। परंतु रखा । इससे इसके प्राण घबराने लगे। तब यह विष्णु अमृत के दोनों ओर दो नाग थे। जो भी कोई उनके की शरण में गया। उस सुमुख नामक नाग को अपने दृष्टिपथ में आता, एकदम भस्म हो जाता था । अंगूठे से उड़ा कर, विष्णू ने गरुड़ की छाती पर रखा। उनके दृष्टिपथ में आ कर भस्म न होवे, इसलिये तब से वह सुमुख गरुड़ की छाती पर है (म. उ. इसने उनकी आँखों में धूल झोंक दी। उन्हें आँखे बंद | १०३)। करने के लिये मजबूर कर के स्वयं अमृत कुंभ ले कर गालव नामक ऋषि इसका मित्र था। गालव जब गुरुबाहर निकला । इतने में इसकी विष्णु से भेंट हुई। | दक्षिणा की विवंचना में था, तब गरुड़ उसके पास आया। तब संपूर्ण कुंभ पास में होते हुए भी, इसने एक बूंद | उसकी सहायता के हेतु से गरुड़ ने उसे पीठ पर बैठाया। अमृत को भी स्पर्श नहीं किया, यह देख कर विष्णु चारों ओर घूम कर, दोनों ऋषभ पर्वत पर शांडिली अत्यंत प्रसन्न हुए। तथा उसने इसे दो वर माँगने के नामक एक ब्राह्मणी के आश्रम में आ उतरे। यह तथा लिये कहा । इन दो वरों से, 'मैं तुम्हारे साथ लेकिन गालव उसी आश्रम में विश्राम कर रहे थे। तब गरुड़ ऊँचा रहूँ, तथा बिना अमृत प्राशन किये भी मैं अमर रहूँ' ने सोचा कि, यह ब्राह्मणी अत्यंत तपोनिष्ठ है। इसे वैकुंट ऐसे दो वर इसने विष्णु से माँगे, तथा पूछा कि 'मैं तुम्हारी ले जाना चाहिये। तभी अंशतः उपकार इसपर हो सकेगा। सेवा किस प्रकार कर सकता हूँ? तब विष्णु ने कहा, 'तुम परंतु ब्राह्मणी को यह पापविचार प्रतीत हुआ। उसने मेरे वाहन बनो । तुम्हारे प्रथम वर की पूर्ति के लिये, मैं योगबल से इसके पर तोड़ डाले। गरुड़ ने उससे रथ में बैलूंगा, तब तुम मेरे ध्वज पर बेठो' (म. आ. क्षमायाचना की। तब इसे पहले से भी शक्तिपूर्ण पर २८-२९)।
प्राप्त हुए। फिर दोनों मित्र मार्गक्रमण करने लगे। मार्ग बाद में पुनः यह बदरिकाश्रम में कश्यप के
में गालव का गुरु विश्वामित्र मिला। वह दक्षिणा के लिये पास आया तथा आपबीती उसे बताई। कश्यप तथा
उतावली करने लगा। तब त्वरित द्रव्यप्राप्ति की इच्छा तत्रस्थ ऋषिओं ने इसे नारायणमाहात्म्य का निवेदन
से गरुड़ उसे ययाति राजा के पास ले गया। परंतु किया । तदनंतर इसकी तथा इंद्र की मित्रता हो कर, इंद्र
ययाति के पास, द्रव्य नहीं था। इस कारण, उसने ने इसे अमृत ले जाने का कारण पूछा । गरुड़ द्वारा
अपनी कन्या माधवी इसे इस शर्तपर दी कि, इससे बताये जाने पर इंद्र ने कहा, 'तुम्हारी माता को कपट से
| उत्पन्न पुत्रों पर ययाति का अधिकार होगा। गालव दासी बनाया गया है । हम कपटाचरण से ही उसकी
से उसने कहा, 'कोई भी राजा तुम्हारी इच्छित कीमत मुक्ति करायेंगे'। सख्यत्व दर्शाने के लिये इंद्र ने इसे वर
दे कर इसे ले लेगा।' बाद में गुरु-दक्षिणार्थ अश्वप्राप्ति दिया माना जा रहसने का साधन प्राप्त होते ही इसने गालवं को विदा किया । अमृतकुंभ दर्भ पर रखा तथा सो से कहा, कि तुम
पश्चात् यह अपने स्थान पर वापस लौट आया (म. उ. स्नानादि कर के इसका भक्षण करो। इस प्रकार सब साँप
| १०५.१११)। जब स्नान के लिये गये थे, तब इंद्र ने आ कर अमृतकुंभ इसे सुमुख, सुनामन् , सुनेत्र, सुवर्चस् , सुरूच् तथा का हरण कर लिया। इस प्रकार साँपों को धोखा दे कर, सुबल नामक छः पुत्र थे (म. उ. ९९.२-३)। महाभारत इसने अपनी माता की मुक्ति की।
के इसी अध्याय में एक और नामावलि दी गयी है । इस ___ इसकी पत्नियों के नाम भासी, क्रौंची, शुकी धृतराष्ट्री | नामावलि के प्रारंभ में कहा गया है, 'गरुड के कुल के एवं श्येनी थे (ब्रह्माण्ड. ३.७.४४८-४४९)। | अन्य नाम बता रहा हूँ' । अन्त में कहा गया है, 'ये एक बार इंद्र ने सुमुख नामक नाग को अमरत्व दिया।
सब गरुड़पुत्रों में से है। क्रुद्ध हो कर गरुड़ इंद्र के पास गया । 'तुम मेरे इंद्र ने सुमुख को अमरत्व दिया। इस कारण इंद्र मुख से मेरा भक्ष्य क्यों छीन रहे हो ? मैं सरलता से | से लड़ने गरुड़ गया था। तब इसने स्वयं ही बताया विष्णु का वहन कर सकता हूँ, इसलिये मैं सबसे, था, 'मैं ने श्रुतश्री, श्रुतसेन, विवस्वान् , रोचनामुख, अर्थात् विष्णु से भी बलवान् हूँ।' ऐसी वल्गनायें प्रस्तुत, तथा कालकाक्ष राक्षसों का वध कर के अचाट यह करने लगा। इसका गर्व हरण करने के लिये | कर्म किये हैं ' (म. उ. १०३)। .