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________________ प्राचीन चरित्रकोश क्षेमदर्शिन् २. ब्रह्मधान की कन्या । क्षेत्रज्ञ--(शिशु. भविष्य.) भागवत मत में क्षेमधर्मन् क्षमावत्--देवल ऋषि का पुत्र । का पुत्र। २. प्रत्यूष नामक वसु का नाती। क्षेम-(स्वा. प्रिय.) इध्वजिव्ह का पुत्र । इसके वर्ष क्षय--(सू. इ. भविष्य.) वायुमत में बृहत्क्षय का | को यही नाम है (भा. ५.१)। पुत्र । २. स्वायंभुव मन्वंतर के धर्मऋषि का तितिक्षा से क्षान्ति--तामस मनु का पुत्र । उत्पन्न पुत्र। ३. (सो. मगध, भविष्य.) भविष्य, भागवत, मत्स्य, क्षाम-सुधामन् देवों में से एक । क्षितिमुखाविद्ध-विदा देखिये । वायु तथा ब्रह्मांड मत में शुचि का पुत्र । विष्णु मत में इसे क्षेम्य कहा गया है। इसने अट्ठाईस वर्ष राज्य क्षिप्रप्रसादन-(स्वा. प्रिय.) प्रियव्रत के पुत्र का किया। नाम (गणेश .२.३३.२८)। ४. सत्य देवों में से एक । क्षीर--अंगिराकुल का एक गोत्रकार । ५. ब्रह्मधान का पुत्र । क्षुद्रक-(सू. इ. भविष्य.) प्रसेनजित् का पुत्र। क्षेमक--पांडवपक्षीय राजा (म. स. ४.१९)। क्षुद्रभृत-मरीचि ऋषि के छः पुत्रों में एक । यह । २. ( सो. पूरु. भविष्य.) भविष्य एवं मत्स्य मत में स्वायंभुव मन्वंतर में था। निरमित्र पुत्र । वायु मत में निरामित्रपुत्र, भागवत मत में २. कृष्णजन्म के पहले देवकी से उत्पन्न पुत्रों में निमिपुत्र तथा विष्णु मत में खंडपाणिपुत्र। पांडववंश से एक । यह कंस के हाथ से मारा गया (भा. १०. का यह अंतिम राजा था (शनक ३. देखिये)। ३. कद्रूपुत्र तथा सर्पविशेष ।। . शुधि--कृष्ण का पुत्र । यह मित्रविंदा से उत्पन्न ४. एक राक्षस, जो निर्जन वाराणसी में रहता था 'हुआ। यह कृष्ण का अंतिम अर्थात दसवाँ पुत्र था (भा. । (ब्रह्माण्ड. ३.६७.२७; वायु. २३०.२४)। अलर्क ने इसका वध कर, वाराणसी नगरी को फिर से बसाया क्षप-एक प्रजापति का नाम । इसकी जन्मकथा | (ब्रह्माण्ड. ३.६७.७२, वायु. २.३०.६९)। इस प्रकार है । एक बार ब्रह्मदेव को यज्ञ करने की इच्छा क्षेमकर-सोमकांत राजा का मंत्री (गणेश. १.२९)। • हुई। योग्य ऋत्विज कोई नहीं मिल रहा था। तब उसने २. पश्चिम त्रिगर्तदेशीय राजा (जयद्रथ देखिये)। बहुत वर्षों तक मस्तक में एक गर्भ धारण किया। इस जयद्रथ के द्रौपदीहरणोपरांत हुए संग्राम में, क्षेमंकर का बात. को हजार वर्ष हो गये। एक छींक के साथ वह गर्भ | नकुल से युद्ध हुआ, जिसमें यह मारा गया (म. व. बाहर आया। यही क्षुप प्रजापति था। यह ब्रह्मदेव के | २५५.१७)। यज्ञ में ऋत्विज् था (म. शां. १२२.१५-१७)। क्षेमजित्--(शिशु. भविष्य.) मत्स्य मत में क्षेमधर्म २. (सू. दिष्ट.) खनित्रपुत्र । नारद ने युधिष्ठिर को यम- का पुत्र । इसे भागवत में क्षेत्रज्ञ, एवं विष्णु, वायु, तथा सभा का वृत्तांत सुनाया, जिसमें राजाओं की मालिका में | ब्रह्मांड में क्षत्रौजस् कहा गया है । इसका नाम था (म. स. ८.१२; अनु. १७७.७३ कुं.)। २. एक क्षत्रिय (म. स. ४.२५)। ३. एक क्षत्रिय राजा । ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं या क्षत्रिय | क्षेमदर्शिन्-उत्तर कोसल देश का राजा । राज्यइस संबंध में, इसका दधीचि से वाद हुआ था। इसके | भ्रष्ट तथा दुर्बल हो कर, यह कालकवृक्षीय नामक ऋषि के पश्चात दधीचि ऋषि पर इसने चढाई की, परंतु | पास आया। ऋषि ने इसे कपटनीति एवं सुनीति बतायी। शिवभक्ति के प्रभाव से दधीचि ने इसे हरा दिया (लिंग. | अंत में इसकी सद्धर्म की ओर वृत्ति देख, ऋषि ने १.३४-३५)। विदेहवंशीय जनक राजा से इसकी मित्रता करा दी। क्षुभ्य-भृगुकुल का एक गोत्रकार | विदेहाधिपति ने इसकी योग्यता देख, जेता की तरह क्षुलिक-कुलक देखिये। इसे अपने घर रखा तथा सत्कार किया। संकटकाल में क्षुव - इसने विष्णु को पराजित किया था (शिव. राजा किस तरह व्यवहार करे, यों बात धर्म को भीष्म रुद्र. स. ३८)। ने इस कथा द्वारा बतायी (म. शां. १०५-१०७)। १७५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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