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ऋतु
१०. वैवस्वत मन्वन्तर में हुआ। यह आयु नाम से पौष माह में सूर्य के साथ साथ घूमता है।
११. स्वायंभुव मन्वन्तर में जितदेवों में से एक । १२. स्वायंभुव मन्यन्तर में सप्तर्षियों में से एक । १३. अगस्त्य कुल का गोत्रकार । १४. अमिताभ देवों में से एक। क्रतुजित् जानाकि एक ऋषि दृष्टि साफ होने के लिये, कमजोर आखवाले रजनकोणेय द्वारा इसने त्रिविका नामक दृष्टि करायी ( तै. सं. २.२.८.१ ) । यह रजनकोय का उपाध्याय था ( क. सं. ११.१; ऋतुविद् देखिये) ।
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क्रतुविद् – एक ऋषि विश्वंतर के सोमयज्ञ में श्यापर्णो का प्रवेश हुआ। उनके द्वारा बताये गये सोम की विशिष्ट परंपरा में अरिंदम ने क्रतुविद को उपदेश दिया । इसने जानकी को उपदेश दिया ( ऐ. बा. ७.३४ ) ।
ऋतुस्थला-यक्ष २. देखिये।
कथ- शुक्तिमान पर्वत के पूर्व में स्थित एक राजा । भारतीय युद्ध में यह दुर्योधन के पक्ष में था ।
२. (सो. क्रोष्टु.) विदर्भराज के चार पुत्रों में से एक । इसका पुत्र कुंति या कृति । भविष्य में क्राथ पाठभेद है । • कथक - विश्वामित्र कुछ का एक गोत्रकार ।
क्रथन -- अमृत का रक्षणकर्ता एक देव ( म. आ. २८.१८ ) ।
२. एक असुर (म. स. ९.१३) ।
३. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्रपुत्र |
प्राचीन चरित्रकोश
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६. कश्यप एवं खशा का पुत्र । कथल - एक ऋग्वेदी ब्रह्मचारी । कानुजातेय - राम का पैतृक नाम
क्रोधदान
२. कर्दम ऋषि की नौ कन्याओं में एक । ऋतु ऋषि की
पत्नी ।
क्रिया -- स्वायंभुव मन्वन्तर के दक्षप्रजापति की कन्या । धर्म ऋषि की स्त्री (म. आ. ६०.१३) । इसका पुत्र योग। इसके साठ हजार बालखिल्य हुए।
३. द्वादशादित्य में से अंशुमान् आदित्य की स्त्री । क्रिवि--व्यक्ति के लिये प्रत्युक्त देशवाचक शब्द | सायण इसका अर्थ कुंआँ लेते हैं (ऋ. ८. २०.२४; २२.१२; क्रैव्य पांचाल देखिये ) । पांचाल देश का यह प्राचीन नाम है।
कीत वैतहोत्र इसका कुरु देश से संबंध था (मे सं. ४.२.६ ) ।
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क्रोध - यह ब्रह्मदेव की भृकुटि से उत्पन्न हुआ (भा. ३.९.२२) । एक बार जमदग्नि श्राद्ध कर रहे थे। यह वहाँ गया । जमदग्नि ने होमधेनु के दूध से खीर तयार की थी। इसने सर्व रूप धारण कर खीर पर गरल डाला, परंतु जमदग्नि क्रोधित न हुआ क्योंकि, उसने क्रोध को जान लिया था। तब क्रोध भयभीत हो कर शरण में आया । कहने लगा, " प्रासज्ञान से मैं सारे भागवों को शीमकोपी समझाता था। अब अनुभव से ज्ञात हुआ कि, भार्गव क्षमाशील है। " उसने अभ्ययाचना की। जमदग्नि ने उसे अभयदान दिया तथा कहा "पितरों के क्रोध को तुम ही
४. वरुणलोक का असुरविशेष ।
"
५. रामसेना में इस नाम के दो वानराधिपति थे सम्हालो ” । पितरों ने इसे नाराज हो कर शाप दिया । क्रोध
( वा. रा. यु. २६.४२ ) ।
को इसलिये नकुलयोनि प्राप्त हुई। आगे चल कर पितरों को संतुष्ट कर, इसने उःशाप की याचना की । पितरों ने उःशाप दिया, ' धर्म की सभा में कृष्ण की उपस्थिति में उच्छवृत्ति ब्राहाण की कथा कहने पर तुम मुक्त हो
काथ (सो. कुरु. ) पृतराष्ट्रपुत्र इसे भीमसेन ने जागि' ( . अ. ६७: उच्छवृत्ति देखिये) । युद्ध में मारा ( म. स. ३५.१५ ) ।
२. एक क्षत्रिय (म. आ. ६१.३८ ) ।
३. एक राजा । इसके पुत्र का भारतीय युद्ध में कलि एवं दुरुक्ति नामक दो संतान हुई ( मा. ४.८.३ ) । अभिमन्यु ने वध किया |
३. अष्टभैरवों में से एक ।
४. काला एवं कश्यप का पुत्र ( म. आ. ५९.३४ ) । क्रोधदान - (सू. इ. ) भविष्य मत में शाक्यवर्धन का पुत्र ।
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कुंच आंगिरस - सामद्रष्टा (पं. बा. १२.९०११४ ११.२० ) । इसके दो साम हैं। उसके कारण, इसे आवश्यक छठवाँ दिन प्राप्त होता था।
कैव्य पांचाल -निवि देश का राजा। इसने परिवा ( एकचक्रा) नगरी के निकट अश्वमेध किया (श. ब्रा. १३.५.४.७१ देखिये) ।
कोडोदय - वसिष्ठकुल का गोत्रकार । क्रोडोदरायण - वसिष्ठकुल का गोत्रकार ।
२. ब्रह्मदेवपुत्र अधर्म के वंशज लोभ तथा निकृति का पुत्र । इसकी हिंसा नामक बहन थी, जिससे क्रोध को