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प्राचीन चरित्रकोश
कृतवाय
प्राय
लिया (लिंग, ९४ ) इस कूर्म की पीठ का घेरा एक ५. कृति ५. देखिये। लाख योजन था। दुर्वास द्वारा दी गयी पारिजातक की कृतक-वसुदेव को मदिरा से उत्पन्न पुत्रों में से माला का इंद्र ने अपमान किया, इसलिये ऋषि ने तीसरा (भा. ९.२४)। उसे, 'वैभव नष्ट होगा' यों शाप दिया । इस कारण कृतंजय-(स. इ. भविष्य.) भागवत मत में लक्ष्मी समुद्र में गुप्त हो गयी। उसे प्राप्त करने के | बर्हिराज का, विष्णु मत में धर्म का, वायुमत में धर्मिन् लिये विष्णु ने बताया, 'लक्ष्मी को निकालने के का, तथा मत्स्य मत में बृहद्राज का पुत्र । लिये, मंदराचल की मथनी, वासुकी का डोर एवं २. एक व्यास (व्यास देखिये)। एक ओर देव तथा दूसरी ओर दैत्य, समुद्रमंथन करें। कृतति-चित्र केतु राजा की करोड स्त्रियों में से उस समय मैं स्वयं कूर्म रूप ले कर, पीठ पर ज्येष्ठ । इसे अंगिराऋषि की कृपा से पुत्र हुआ। यह मंदराचल पर्वत धारण करूंगा, तब लक्ष्मी प्राप्त होगी' इसकी सौतों को सहन नहीं हुआ । इसलिये उन्होंने इसके (पद्म. ब्र. ८.)। समुद्रमंथन के समय मंदराचल नीचे जाने पुत्र को विष दिया । परंतु अंगिरा ने उसे पुनः जीवित लगा, तब विष्णु ने कूर्मावतार धारण किया। अमृतप्राप्ति के | किया (भा. ६.१४; चित्रकेतु देखिये)। लिये यह अमृतमंथन चल रहा था (पद्म.उ.२३१-२३३; कृतध्वज-प्रतर्दन राजा का नामांतर। भा.२.७.१३; ८.७.८)। देवदानवों ने इस तरह क्षीरसागर २.(सू. निमि.) धर्मध्वज जनक के दो पुत्रों में से का मंथन कर चौदह रत्न निकाले तथा पूर्ववत् वैभव | एक । संपादित किया । लोहाघाट के पास विष्णु ने मंदर पर्वत | कृतप्रज्ञ-भारतीय युद्ध में दुर्योधन के पक्ष के राजा धारण करने के लिये कूर्मावतार लिया । कूर्मावतार के भगदत्त का पुत्र । नकुल ने इसका वध किया (म.. क. ४. पश्चात् , लोग एकादशी का उपवास करने लगे (पद्म, उ. | २९)। २६०)।
___ कृतयशस् आंगिरस--मंत्रद्रष्टा (ऋ. ९.१०८.१०२. कश्यप तथा कद्रू का पुत्र (म. आ. ३५)।
११)। - कर्म गार्ल्समद-सूक्तद्रष्टा (ऋ. २.२७.२९)। । कृतवर्मन्-(सो. यदु. अंधक.)। ह्रदीकपुत्र (मस्य
कृशांब स्वायव लातव्य-साम का एक प्राचीन | ४४.८०-८१)। यह द्रौपदीस्वयंवर में गया था (म. आदि. आचार्य । इसने यज्ञायज्ञीय साम में, गिरा के स्थान पर | १७७.१७) । दुर्योधन के पक्ष में यह एक अक्षौहिणी इरा कहने के लिये बताया (पं. वा. ८.६.८)। यह | सेना ले कर आया था (म. उ. १९.१७)। बलराम द्वारा लातव्य कुल के स्वायु का पुत्र होगा।
रैवतक पर्वत पर किये गये उत्सव में यह आया था (म. कृष्मांड-एक दैत्य । कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन आ. २११.११)। इसने पांडवों से भीषण युद्ध किया इसे विष्णु ने मारा (स्कंद. २.४.३१)।
था; किन्तु भीम ने इसे तीन बाणों से विद्ध किया (म. कूष्मांडराज-रुद्रगणविशेष ।
द्रो. ९०.१०.)। दुर्योधन के पक्ष के बचे तीन वीरों में कृकण-किंकिण देखिये।
से यह एक था (म. सौ. ९.४७-४८)। बाद में यह कृणु-एक ऋषि । वाल्मीकि देखिये।
द्वारका गया । युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ में अश्व के संरकृत(सो. कुश.) राजा जय का पुत्र । इसका पुत्र क्षणार्थ यह अर्जुन के साथ गया था। यादवी युद्ध में इसे हर्यवन ।
| सात्यकि ने मारा (भा. ९.२४.२७; म. मौ.३)। २. वसुदेव को रोहिणी से उत्पन्न पुत्र (भा. ९.२४)।। २. (सो. सह.) भागवत मत में धनकपुत्र (कृतवीय ३. मणिवर तथा देवजनी का गुह्यक पुत्र ।
४. व्यास की सामशिष्य परंपरा के भागवत, वायु | कृतवात्र-अंगिरसकुल का मंत्रकार । ऋतवाच् पाठतथा ब्रह्मांड मतानुसार हिरण्यनाभ का शिप्य । भागवत | भेद है। के अनुसार यह चतुर्विशशाखाध्यायी है। यह सन्नति- | कृतवीर्य--(सो. यदु. सह.) भागवत तथा विष्णु पुत्र तथा हिरण्यनाभ कौसल्य का शिष्य था। इसने साम- | मत में राजा धनक के चार पुत्रों में ज्येष्ठ । इसका पुत्र संहिता का चतुर्विशतिधा विभाग किया। उनको प्राच्यसाम | कार्तवीर्याजुन । उसे सहस्रार्जुन भी कहते हैं (म. आ. कहते है। (ह. वं. १.२०.४२-४३)
| १६९; स. ८.८)। मस्य तथा वायु में धनक के स्थान
देखिये)।