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________________ कीर्तिमत् । प्राचीन चरित्रकोश कुटीचर कारण बाद में उसने इसे मारा (भा. ९.२४; १०,१)।। से यह कृष्ण के यहाँ गया। जाते समय कुछ साथ ले वायु के मत में यह रोहिणी से उत्पन्न वसुदेवपुत्र है। | जाना चाहिये, इस विचार से पत्नीद्वारा उधार माँग कर __ कीर्तिमती-शुक्राचार्य तथा पीवरी की कृत्वी नामक | लाया गया चार मुष्ठियाँ चिउड़ा, एक जीर्ण कपड़े में बांधकर कन्या का नामांतर । यह नीप अथवा अणुह राजा की | साथ लिया। पत्नी थी। इसके पुत्र का नाम ब्रह्मदत्त था। द्वारका आ कर कृष्ण से मुलाकात होने पर, अपने कीर्तिमालिनी-(पिंगला १. देखिये)। | पुराने मित्रत्व के नाते, कृष्ण ने इसका पर्याप्त सत्कार कीर्तिमुख--शंकर की जटा से निकला हुआ एक | किया। गुरुकुल की अनेक घटनाओं का स्मरण किया। शिवगण । इसके तीन मुख, तीन पैर, तीन पुच्छ तथा सात | हाथ में हाथ डाल कर बहुत गप्पं लड़ाई। कृष्ण ने हाथ थे। शंकर ने इसे प्रेत खाने के लिये कहा। बाद में स्वयं इससे पूछा, 'तुम मेरे लिये क्या लाये हो। इसके इसका साहस देख कर, शंकर ने वर दिया कि, तुम्हारा | द्वारा दिये गये चिउड़े में से, एक मुष्टि चिउड़ा बडे आनंद स्मरण करने के सिवा मेरा दर्शन लेनेवाला का अधःपात | से कृष्ण ने भक्षण किया । एक रात्रि बडे आनंद से वहाँ होगा (पन. उ. ५०)। बिताई । दूसरे दिन यह वहाँ से निकला । इसकी कीर्तिरथ-(सू. निमि.) वाय के मत में प्रतित्वक- | अयाचित वृत्ति के कारण, न तो कृष्ण ने इसे कुछ दिया.. पुत्र । यह कृतिरथ का दूसरा नाम है। न कि इसने कृष्ण से कुछ माँगा। कृष्ण ने अपने को कीर्तिरात-(सू. निमि.) कृतिरात का नामांतर। क्यों धन नहीं दिया इस विषय में, धनप्राप्ति के बाद शायद कुकण-एक सर्प (म. उ. १०१.१० )। मैं ईश्वर को भूल जाऊंगा, इस तरह का उलटा तर्क इसने कुकर्दम--पिंडारक क्षेत्र का राजा । यह अत्यंत दुष्ट | लड़ाया। परंतु घर आने के बाद इसने देखा, इसे, उत्तम था। अनेक पापकृत्यों के कारण, इसे प्रेतयोनि प्राप्त हुई। ऐश्वयं प्राप्त हो गया है (भा. १०.८०.७)। . वहाँ इसे अनेक अनुयायी प्राप्त हुए । एकबार घूमते-घूमते | भागवत में कहीं भी इसे सुदामन अथवा श्रीदामन नहीं यह कहोड़ ऋषि के आश्रम में आया। अपने इस शिष्य | कहा गया है । किन्तु जनसाधारण में वैसी ही प्रसिद्धि है। के उद्धार के लिये कहोड ने गोखुरा के संगम पर श्राद्ध | सत्यविनायक की कथा में, यही कथा सुदामन माम पर किया। औरों का भी श्राद्ध किया। तब इसका उद्धार | आई है। . हुआ (पद्म. उ. १३९)। कुज--मंगल तथा नरकासुर का नाम । कुकुर--(सो. क्रोष्टु.) अंधक का नप्ता। इससे | का नता। इसस | कुजंभ--एक दैत्य । इसने तारकासुर को राज्याभिषेक कुकुरवंश उत्पन्न हुआ, जिसमें में उग्रसेन, कंसादि हुए। | किया (मत्स्य. १४७.२८)। . कुक्षि-रोच्य मनु का पुत्र। इसे रोच्य ने सात्वत धर्म बताया। (म. शां. ३३६.३८-३९)। कुजूंभ-एक दानव । इसके पास सुनंद नामक मूसल शिया इसने सामवेद की मोथा। जिसके कारण यह अजेय था। केवल स्त्रीस्पर्श से ही संहिताओं का अध्ययन किया (व्यास देखिये)। मूसल निर्बल बनता था। कुजंभ का निवासस्थान निविंध्या कुक्षेयु--(सो. पूरु.) रौद्र के दस पुत्रों में से एक। नदी के किनारे, अरण्य में भूमि के अंदर था। एक कक्षेयु पाठभेद प्राप्त है। समय, वैशालीनरेश विदूरथ की कन्या मुद्यावती का, कचैल-(हीन वस्त्रोंवाला) कृष्ण का एक भक्त कुजंभ ने अपहरण किया। आगे भलंदनपुत्र वत्सप्रि ने, तथा सांदीपनिआश्रम में बना हुआ उसका पुराना मुद्रावतीद्वारा मूसल को स्त्रीस्पर्श करवा कर निर्बल कर ब्राह्मण मित्र । यह बड़ा ही विरक्त, जितेन्द्रिय एवं दिया, तथा कुजंभ का वध किया। पश्चात् , मुदावती के ज्ञानी था। सरलता से जितना मिलता था, उसी पर साथ वत्सप्रि का विवाह हुआ (मार्क. ११३)। निर्वाह करने की वृत्ति के कारण, यह अत्यंत दरिद्री था। कुंजर--तारकासुर का एक सेनापति। . दरिद्रता से त्रस्त हो कर इसकी पत्नी ने इसे कृष्ण के पास २. एक वानर | अंजनी का पिता । जाने के लिये कहा । क्यों कि, कृष्ण इसका पुराना मित्र ३. सौवीरदेशीय एक राजपुत्र । तथा बड़ा ही उदार था। पत्नी के बार बार आग्रह करने | ४. कश्यप तथा कद के पुत्रों में से एक। . पर, 'अयं हि परमो लाभ उत्तम लोकदर्शनम्', इस विचार | कुटीचर-रुद्रगणविशेष। १४४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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