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काश्यप
प्राचीन चरित्रकोश
काषायण
कहा, 'तुम्हारे सामने इस वृक्ष को मैं काटता हूँ। अपने तथा शिक्षाकार भी था। इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ मंत्रसामर्थ्य से तुम इसे जीवित करो, तभी तुम्हारा मंत्र- उपलब्ध हैं:-१. काश्यपपंचरात्र, २. काश्यपसंहिता, सामर्थ्य मैं सत्या मानूंगा' | तक्षक के दंश से भस्मसात् वृक्ष, | ३. काश्यपस्मृति, ४. काश्यपसूत्र । कश्यपस्मृति एवं कश्यप इसने मंत्रसामर्थ्य से अंकुरित कर के दिखाया। इसके | संहिता, तथा काश्यपरमृति एवं काश्यपसंहिता इन ग्रंथों का मंत्रसामर्थ्य के प्रति तक्षक को पूर्ण विश्वास हो गया। रचयिता एक ही होगा (C.C.)। राजा से प्राप्त होनेवाली संपदा से अधिक धन दे कर, अठारह ज्योतिषसंहिताकारों में से एक । इसकी तक्षक ने इसे विदा किया। ब्राह्मणशाप के सामने अपना | काश्यपसंहिता प्रसिद्ध है। इस संहिता के कुल पचास मंत्र सिद्ध न होगा, इस आशंका से काश्यप घर लौटा अध्याय हैं। कुल श्लोकसंख्या करीब-करीब १५०० है। (म. आ. ३९) । परंतु राजा के पास न जाने के कारण, | कहते हैं कि, इस ग्रंथ में सूर्य पर प्राप्त धब्बों का उल्लेख लोगों ने इसे जातिच्युत कर दिया। तब यह व्यंकटाचल है, तथा दूरवीक्षणादि यंत्रों का भी वर्णन है (कवि पर गया। वहाँ के तीर्थस्नान से यह पापमुक्त हो गया | चरित्र )। (स्कंद. २. १. ११)।
५. भौत्य मन्वन्तर का एक मनुपुत्र । ___३. एक ब्राह्मण । काश्यप की एक पुरानी कथा, भीष्म ६. सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक। ने ज्ञान के महत्त्व का वर्णन करने के लिये, युधिष्ठिर को ७. स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । बताई है, वह निम्न प्रकार से है।
८. वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक.. काश्यप नामक एक तपस्वी तथा सदाचारसंपन्न ब्राह्मण
९. अत्रि का मानसपुत्र (ब्रह्माण्ड ३.८.७४-८७)। था । इसे एक वैश्य ने रथ का धक्का दे कर गिरा दिया।
१०. एक शाखाप्रवर्तक (पाणिनि देखिये)। . तब विकल हो कर, क्रोध से यह प्राण देने के लिये प्रवृत्त .
११. गोकर्ण नामक शिवावतार का शिष्य। हो गया। यह जान कर, इन्द्र शृगाल रूप से वहाँ आया।
१२. दाशरथि राम की राजसभा का एक धर्मशास्त्री। उसने इसे मानवदेह तथा उसमें भी ब्राह्मण्यप्राप्ति की
१३. दाशरथि राम की सभा का एकं हास्यकार । प्रशंसा कर के मृत्यु से निवृत्त किया, तथा ज्ञान की
या ज्ञान की १४. पांडवों के साथ यह द्वैतवन में था । . ओर इसका ध्यान प्रेरित किया । तब काश्यप को भी
१५. वसुदेव, का पुरोहित । पांडवों के जातकर्मादि आश्चर्य हुआ। इसे पता चला, कि शृगाल न हो कर यह |
संस्कार इसने किये (म. आ. परि. १; क्र. ६७. पंक्ति. इन्द्र है। तब इन्द्र की पूजा कर यह घर लौट आया |
| २०)। (म. शां. १७३; नारद देखिये)।
. काश्यपि-कश्यप के वंशज का नाम । अरुण के लिये ४. एक धर्मशास्त्रकार । अठारह उपस्मृतिकारों में से | भी यही नाम प्रयुक्त है। यह एक है (स्मृतिचन्द्रिका १; सरस्वती विलास पृष्ठ । २. भृगुगोत्रीय ऋषि । १३)। उसी प्रकार, पाराशरधर्मसूत्र में भी धर्मशास्त्र- ___ काश्यपी-शिखंडिनी देखिये । कर्ता कह कर इसका उल्लेख है। परंतु याज्ञवल्क्य- ___ काश्यपीबालाक्या माठरीपुत्र-- एक आचार्य । स्मृति में इसका नामनिर्देश नहीं है। इसके ग्रंथो में | यह कौत्सीपुत्र का शिष्य था। इसका शिष्य शौनकी पुत्र आह्निककर्म, श्राद्ध, अशौच, प्रायश्चित्तादि के बारे में | (श. ब्राः १४.९.४.३१-३२)। काफी जानकारी दी गई है। मिताक्षरा, स्मृतिचन्द्रिका दि काश्यपेय--कश्यपगोत्रीय एक गोत्रकार गण। यह ग्रंथों में इसके धर्मशास्त्र से उद्धहरण लिये गये है। काश्यप- | नाम सूर्य को भी दिया जाता है। स्मृति नामक एक स्वतंत्र ग्रंथ हैं । उसमें गृहस्थ के कर्तव्य, २. कृष्ण के दारुक नामक सारथि का नाम (म. द्रो. भिन्न भिन्न प्रकार के प्रायश्चित्तादि की जानकारी है। कश्यप | १२२.५२)। नामक एक धर्मशास्त्रकार का उल्लेख बौधायनधर्मसूत्र में काश्या-भीम की पत्नी ( देखिये काली ३.)। है ( १.२.२०)। परंतु यह तथा कश्यप दोनों भिन्न भिन्न | २. जनमेजयपत्नी।। हैं, वा एक ही हैं, इसके विषय में निश्चित जानकारी | काषायण--एक आचार्य । यह सायकायन का शिष्य प्राप्त नहीं होती है । एक व्याकरणकार के रूप में पाणिनि | हैं (बृ. उ. ४.६.२ काण्व)। यह सौकरायण का भी ने इसका उल्लेख किया है (८.४.६७)। यह शिल्पकार | शिष्य है (बृ. उ. ४.५.२७ माध्य.)। .
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