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________________ कालनेमि प्राचीन चरित्रकोश कालयवन . पातालवासी एक दैत्य (पन. उ. ६; म. स. गार्ग्य कडे ब्रह्मचर्य से रहता था। एक बार उसके साले ५१)। विरोचन बद्ध होने पर इसने सारी सेना का | ने उसे षंढ (नपुंसक) कहा। यह सुन कर गार्ग्य अत्यंत क्रुद्ध पराभव किया। विष्णु पर आक्रमण करने के कारण चक्र हुआ। इसलिये उसने दक्षिण में जाकर लोह पिष्ट भक्षण ने इसके सौ हाथों को तथा मस्तकों को तोड़ डाला, किया। बारह वर्ष तपस्या की। शंकर को प्रसन्न कर एवं इसके प्राण ले लिये ( पन. सृ. ४)। विष्णु ने वध | लिया। शंकर से यादवों को पराजित करनेवाला पुत्र उसने किया, इस लिये प्रतिशोध लेने के लिये यह कंस हुआ | मांग लिया। यह घटना दक्षिण में अजितंजय नामक नगर में (भा. १०.१; कंस देखिये)। हुई। उस समय यवनाधिपति राजा निपुत्रिक था । वह पुत्र संहाद का पुत्र । इसके चार पुत्रः-ब्रह्म जित् , ऋतु की कामना कर रहा था। उसे गार्ग्य के वर का पता चला। जित्, देवांतक तथा नरांतक । तब उसने गार्य को गोपस्त्रियों में से गोपाली नामक ग्वालन से पुत्र होने का प्रबन्ध किया। इस तरह उत्पन्न पुत्र कालपथ--विश्वामित्र ऋषि का पुत्र (म. अनु. ४. कालयवन है। ५०)। ___ यवनराज के घर छोटे से बडा हुआ कालयवन कालपृष्ठ--कश्यप को दिति से उत्पन्न दैत्य । इसने सौभाग्य से उसके राज्य का अधिपति बन गया। इसका तास्या कर वर मांगा, 'जिसके सिर पर मैं हाथ रख, वह | कृष्ण के साथ संजोग से युद्ध हुआ वा सहेतुक रचाया भस्म होवे ।' बाद में इसका प्रयोग यह शंकर पर करने गया, इस विषय में पुराणों की एकवाक्यता नहीं है। लगा। विष्णु ने मोहिनीरूप धारण कर, इसे आपने ही कालयवन दिग्विजय के लिये निकला । मथुरा के सिर पर हात रखने को उद्युक्त किया । अतः यह स्वयं बलशाली यादवों पर इसने आक्रमण किया। इसी प्रकार भस्म हो गया (स्कन्द, ५.३.६७; भस्मासुर देखिये)। का निर्देश कुछ ग्रंथों में है। जरासंध कृष्ण को जीतने में कालभीति--एक शिवभक्त । गर्म में ही यह काल असमर्थ था, अतः हेतुपुरस्सर सौभपति शाल्वद्वारा मार्ग नामक असुर से डर रहा था, इस लिये कालयवन को निमंत्रित करने का उल्लेख हरिवंश में है। इसका नाम काल भीति रखा गया । इसके पिता मांटी ने ___जाते समय, कृष्ण शायद विघ्न डालेगा इस लिये पुत्रप्राप्ति के हेतु से १०० वर्षों तक रुद्र का अनुष्ठान सौभपति शाल्व जरासंध का संदेश लेकर इसके पास किया । तब मांटी की पत्नी गर्भवती हुई । चार आकाशमार्ग से आया । कालयवन इसी संधि की ताक में वर्ष होने पर भी गर्भ बाहर नहीं आता था । तब मांटी ने था। इसने उसी दिन विपुल सेना ले कूच करने की गर्भ से इसका कारण पूछा। गर्भ ने उत्तर दिया, मुझे तैयारी की। यह यवन था, तथापि कूच करने के कालमार्ग का डर लग रहा है। अनंतर मांटी ने शिवजी को पहले इस के द्वारा अग्निहवन देने का उल्लेख मिलता है इस वृत्तान्त का कथन किया। शिवजी ने इसे धर्म, ज्ञान, (ह. व. २.५४)। वैराग्य आदि का बोध कराने को कहा । बोध प्राप्त होने पर | ___इधर जरासंध के बारबार के आक्रमणों से कृष्ण त्रस्त गर्भ बाहर आया। आगे चल कर, इसका संस्कार होने पर कालभीतिक्षेत्र में इसने अनुष्ठान किया । यह स्वर्ग हो गया था। इसलिये उसने मथुरा के समान समतल मैदान सुख का उपभोग करने लगा । शिवजीने इसकी भक्ति में स्थित राजधानी छोड़ कर दूरस्थ समुद्रवेष्टित द्वारका को राजधानी बनाने की यादवों से मंत्रणा की। एक ओर देख प्रसन्न हो कर वर दिया, 'तुम ने कालमार्ग पर विजय प्राप्त की, अतः तुम 'महाकाल' नाम से से जरासंध तथा दूसरी ओर से कालयवन के आगमन को देख कर, चतुर कृष्ण ने एक रात में ही राजधानी बदलने प्रख्यात हो जाओगे।' साथ ही उन्होंने आशीर्वाद दिया का निश्चय किया। कि, तुम यहाँ करंधम को उपदेश दोगे। अनंतर मेरे | इसके पूर्व उसने कालयवन को डराने का प्रयत्न प्रतिहारी नंदी बनोगे। (स्कंद. १.२.४०)। किया । एक काले सर्प को घडे में रख कर, उस पर मुद्रा कालभैरव--भैरव तथा रुद्र देखिये । लगाई गई। अपने दूत के द्वारा वह घडा कृष्ण ने कालकालयवन--गार्ग्य (गर्ग) तथा गोपाली का पुत्र । यवन के पास भिजवाया। इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। इसका पिता गार्ग्य वृष्णि तथा अंधक का पुरोहित था। | कालयवन ने सर्प देख कर स्वाभाविक रूप से उद्गार कहीं उसे गर्ग नाम से भी उल्लेखित किया गया है। निकाले, 'कृष्ण इस काले सर्प की तरह है।' उस घडे में १३९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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