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________________ प्राचीन चरित्रकोश कश्यप उस स्थान पर केशरंध्रतीर्थ बना । कश्यपद्वारा गंगा लाई गई इस लिये उसे काश्यपी कहते हैं । उसे ही चारों युगों में अनुक्रम से कृतवती, गिरिकर्णिका, चंदना तथा भ्रमती नाम है ( प . १२५ ) । विष्णुवाहन गरुड - यह तपश्चर्या चालू थी, तब गरुड़ अपने पिता के पास आया तथा उसने कहा कि, एक अदृष्य शक्ती ने मुझे वाहन बनने के लिये कहा है तथा मैं ने वह मान्य भी किया है। कश्यप ने अन्तर्शन से जान कर कहा कि, तुम विष्णु के वाहन बने हो तथा अब तुम्हें उसकी ही आराधना करनी चाहिये। वो बता कर काश्यप ने उसे नारायणमहालय का कथन किया। पृथ्वीरक्षा — इतने में अंग राजा ने पृथ्वी का दान करने का निश्चय किया। इस लिये अपना शरीर त्याग कर पृथ्वी ब्रह्मदेव के पास गई। इससे उसका शरीर निर्जीव बन गया । तब योगशक्ति के द्वारा कश्यप अपने शरीर से बाहर निकला तथा पृथ्वी के शरीर में प्रविष्ट हो कर उसे सजीव बनाया। कुछ दिनों के बाद पृथ्वी वापस आई, तथा कश्यप को नमस्कार कर, अपने शरीर में प्रविष्ट हुई। इस प्रकार कश्यप की कन्या होने के कारण पृथ्वी को काश्यपी कहते हैं । う क्षत्रियाधिपति--आगे चल कर दुष्टों की पीड़ा के कारन पृथ्वी डूबने लगी । तब कश्यप ने अपने ऊरु का आधार उसे दिया तथा उसे तारा। इस लिये उसे काश्यपी तथा ऊर्बी नाम प्राप्त हुए ( म. शां. ४९.६३-६४ ) । उसने अपने लिये राजा मांग कर बहुत से क्षत्रियों का नाम सुझाया । तब कश्यप ने उन सब को अभिषेक किया। पृथ्वीपर्यटन एक बार कश्यपादि सप्तर्षि पृथ्वी पर घूम रहे थे। तब शिविपुत्र शैव्य उर्फ वृषादर्मि ने सप्त यों को एक यज्ञ में अपना पुत्र दक्षिणास्वरूप में दिया । इतने में उस पुत्र की मृत्यु हो गई । तब उन क्षुधार्त ऋषियों ने उसके मांस को पकाने के लिये रखा। यह वृषादर्भि ने देखा, तथा उस अघोरी कृत्य से ऋषियो को परावृत्त करने के लिये, उनकी इच्छानुसार दान देने का निश्चय किया । किन्तु न तो वे दान लेने के लिये तैय्यार हुए, न मांस ही पका । इसलिये उसे छोड़ कर वे चले गये। । आगे एक सरोवर में कमल थे । उन्हें खाने की इच्छा से, उन्होंने वहाँ की कृत्या यातुधानी की अनुमति से कमल तोड़ कर किनारे पर रखे । कुछ कारण से इन्द्र उन्हें चुरा कर ले गया । तदनंतर कश्यप तथा ऐल का 1 कश्यप संवाद हुआ । उसमें ब्राह्मण का महत्व, पापपुण्यसूक्ष्मभेद तथा रुद्र ये विषय कश्यप ने समझाये । परिसंवाद - तार्क्ष्य मुनिका सरस्वती से संवाद हुआ था। उन दोनों में से श्रेष्ठ कौन, किस कृत्य से व्यक्ति धर्मभ्रष्ट नहीं होता, अग्निहोत्र के नियम, सरस्वती कौन है, मोक्ष आदि विषय चर्चा के लिये थे परंतु यह तार्क्ष्य कश्यप ही था, यह नही कह सकते (म. व. १८.४ ) । तदनंतर कश्यप ने एक सिद्ध देखा । तथा उससे शानप्राप्ति के हेतु से बडी ही एकाग्रता से उसकी पूजा की। सिद्ध कीं आज्ञा से कश्यप ने प्रश्न पूछे । सिद्ध ने उसके उत्तर दिये तथा इसे संतुष्ट किया (म. आश्व. १७) । यह एक ऋषि था (बाबु. ५९.९० ब्रह्माण्ड २.२२.९८ - १०० ) । इसके शरीर से तिल उत्पन्न हुए (भाषि. ब्रहा. ७)। यह स्वारोचिष तथा वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक था । व्यास की पुराणशिष्य परंपरा के भागवतमतानुसार यह रोमहर्षण का शिष्य था ( व्यास तथा आपस्तंत्र देखिये) । ग्रंथ कश्यप के नाम पर चरकसंहिता के काफी पाठ है। भूतप्रेतादि पर भी इसके कुछ मंत्र है। इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ हैपर निम्नलिखित ग्रंथ है- १. कश्यपसंहिता (वैद्यकीय) २. कश्यपोत्तरसंहिता २. कश्यपस्मृति, जिसका उल्लेख हेमाद्रि, विज्ञानेश्वर तथा माधवाचार्य ने किया हैं ( C. C. ) ४. कश्यपसिद्धांत (नारदसंहिता में इसका उल्लेख भाया है ) । परिवार - कश्यप को बत्सार तथा असित नामक दो पुत्र थे । वत्सार को निध्रुव तथा रेभ नामक दो पुत्र हुए। निध्रुव को सुमेधा से अनेक कुंडपायिन हुए । रेभ से रैभ्य उत्पन्न हुए । इसी प्रकार की वंशावली अन्यत्र भी प्राप्त है ( ब्रह्माण्ड ३.८.२९ - ३३; वायु ७०.२४-२५; लिंग. १.६२ कूर्म. १.१९ ) । कश्यप की स्त्रिया -- अदिति, अरिष्टा, इरा, कद्रू, कपिला, कालका, काला, काष्ठा, क्रोधवशा क्रोधा, खशा धावा, ताम्रा, तिमि, वन, बनायु, दया, दिति, धनु, नायु, पतंगी, पुलोमा, प्राधा, प्रोवा, मुनि, यामिनी, वसिष्ठा, विनता, विश्वा, सरमा, सिंही, सिंहिका, सुनेत्रा, सुपर्णा, सुरभि, सुरसा, सूर्य । यथार्थ में कश्यप को तेरह स्त्रियाँ थीं । बाकी नाम तो पाठान्तर से आये है, तथा संततिसादृश्य के कारण, बाकी सब एक ही मालूम होती है। भागवत तथा विष्णु मतानुसार इसे किसी समय अरिष्टनेमि नामक चार स्त्रिया बतायी गयी हैं । ये सब दक्ष कन्यायें थी । पुलोमा तथा कालका वैश्वानर की कन्यायें है । 1
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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