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________________ कल्माषपाद प्राचीन चरित्रकोश कल्याण आंगिरस मांस नहीं है तो मनुष्यमांस ही बना दो। उसको भोजन दो | इससे सब पातकों से मुक्त हो कर, वसिष्ठ ने बड़े सन्मान बस । आचारी ने आज्ञानुसार कार्य कर, वह अन्न उस | से इसे राज्याभिषेक किया । गौतम ऋषी की अनुज्ञा से तपस्वी ब्राह्मण को दिया । तब वह अन्न अभोज्य है, ऐसा | गोकर्ण क्षेत्र में जा कर यह मुक्त हुआ। अन्त में यह जान कर उसने भी इसे नरमांसभक्षक राक्षस होने का शाप | शिवलोक गया (स्कंन्द. ३. ३. २; नारद. १. ८-९)। दिया। तीसरे दिन इन दोनों शापों से इसके शरीर में | साभ्रमती में स्नान करके यह मुक्त हो गया (पन. उ. राक्षस का संचार हुआ। यह शापदान नौमिषारण्य में हुआ | ६. १३२)। (वायु. १.२)। राज्याभिषेक-इसकी पत्नी मदयंती अरण्य में निरंतर असुरजीवन-आगे चल कर थोडे ही दिनों में, इसकी | इसके साथ रहती थी (म. आ. १७३.५-६ )। यह शक्ति से मुलाकात हुई। वंशावली की दृष्टि से यह गलत | दिन के छठवें प्रहर में आहार करता था। उस समय है ( शतयातु देखिये)। तब इसने कहा, "चूंकि तुमने मुझे केवल वह सामने नहीं आती थी। एक बार अहिल्या के अयोग्य शाप दिया है, मैं तुमसे ही मनुष्यभक्षण प्रांरभ | कथनानुसार गौतमशिष्य उत्तंक मदयंती के कुंडल मांगने करता हूँ।" यों कह कर इसने उसे खा डाला । आगे | आया । यह उसको खाने के लिये दौड़ा। परंतु उसने कहा, चल कर, इस राजा के शरीर में प्रविष्ट राक्षस को विश्वामित्र | कि मेरा कार्य हो जाने दो, मैं वापस आ रहा हूँ। त के बारबार उपदेश करने के कारण, इसने वसिष्ठ के | इसने पूछा कि तुम्हें क्या कार्य है, तथा कार्यपूर्ति के लिये सौ पुत्र भी खा डाले । वसिष्ठ ने पुत्रशोक से प्राण देने| इसने उत्तंक को मद्यती के पास जाने के लिये कहा। का काफी प्रयत्न किया, परंतु वह असफल रहा (म. आ. मदयंती ने पति से एक चिन्ह लाने के लिये कहा। वह १६६-१६७; अनु. ३; ब्रह्माण्ड. १. १२)। एक बार चिन्ह इससे लाते ही मदयंती ने कुंडल उत्तंक को यह नर्मदा के किनारे (नारद. १.९), वन में घूम | दिये, तथा सम्हाल कर ले जाने के लिये कहा। जाते रहा था, तब इसने एक ब्राह्मण दंपती को क्रीड़ा में निमग्न | जाते कल्माषपाद ने उत्तंक को प्रतिज्ञा से मुक्त कर दिया देखा। उन्हें देखते ही, कल्माषपाद ने दौड़ कर उनमें से (म. आश्व. ५५-५६)। पतिव्रता के उपरोक्त शाप ब्राह्मण का भक्षण कर लिया। तब क्रुद्ध हो कर ब्राह्मणी | के कारण यह प्रजोत्पादन नहीं कर सकता था। तब ने उसे शाप दिया कि, स्त्री समागम करते ही तुम मृत | इसने वसिष्ठ के द्वारा अपनी पत्नी मदयंती में गर्भधारणा हो जाओगे। यों कह कर वह सती हो गई (म. आ. करवाई। वही अश्मक है (म. आ. ११३. २११८२, भा. ९. ९. १८-३५, रकंन्द. ३. ३.२)। २२; १६८.२१-२५, शां. २२६.३०; अनु. १३७.१८%, ___ मुक्ति-वसिष्ठ ने इसे उश्शाप दिया कि, तुम राक्षस वा. रा. सु. २४; वायु. ८८. १७७)। इसे सर्वकर्मा बनोगे तथा आगे चल कर तुम्हारे शरीर पर । नामक पुत्र था (मत्स्य. १२)। इसका वसिष्ठ के साथ गाय के माहात्म्य के बारे में संवाद हुआ था। इसने काफी गायें गंगाबिंदु पडेंगे, तब तुम मुक्त होगे। परंतु ब्राह्मणी ने उपरोक्त वर्णित शाप दे कर, तुम सदा राक्षस ही रहोगे दान में दी। मृत्यु के बाद इसे सद्गति मिली (म. अनु. ७८.८०)। ऐसा शाप दिया। इसको दूसरे शाप से क्रोध आया तथा इसने ब्राह्मणी को उलटा शाप दिया कि, पुत्रसमवेत कल्याण-एक वैश्य । यह सिंधुदेश में पालीग्राम तुम पिशाची बनो। आगे चल कर पिशाची तथा यह राक्षस में रहता था। इसकी पत्नी इंदुमति । पुत्र बल्लाल । अगले जन्म में यह दक्ष बना (गणेश १.२२)। एक स्थान पर आये, जहाँ पीपल था । वहाँ कल्माषपाद तथा सोमदत्त नामक एक ब्रह्मराक्षस का गुरुविषयक संवाद ___ कल्याण आंगिरस--एक ऋषि । स्वर्गप्राप्ति के लिये हो कर उन दोनों के पाप नष्ट हो गये। उधर से एक गर्ग सत्रानुष्ठान करने वाले अंगिरसों को, देवों की ओर जाने नामक कलिंगदेशीय मुनि गंगा ले कर जा रहा था। का देवयानमार्ग प्राप्त नहीं होता था । सत्रानुष्ठान करनेवाले इनकी प्रार्थना से उसने इनके शरीर पर गंगोदक छिड़कते उन ऋषियों में से कल्याण नामक यह ऋषि, इस देवयान के ही, वह पिशाची तथा ब्रह्मराक्षस दोनों मुक्त हो गये। | बारे में विचार करता हुआ उर्ध्वमार्ग से जा रहा था । राह यह शोक कर रहा था, तब आकाशवाणी हुई, "शोक | में इसे अप्सराओं सह झूले पर बैठ कर क्रीड़ा कर रहा मत करो। तुम भी मुक्त हो जावोगे।" वहाँ से यह काशी. | उर्णायु नामक एक गंधर्व मिला । इस गंधर्व को जब इसने गया, तथा छः महीनों तक इसने गंगास्नान किया। देवयान के बारे में पूछा, तब उसने देवयानमार्ग प्राप्त कर १२५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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