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कर्ण
प्राचीन चरित्रकोश
कण
निवासी परशुराम के पास गया। परशराम क्षत्रियद्वेष्टा परिस्थिति भय, आनंद एवं दुखमिश्रित हो गई थी। होने के कारण, वह क्षत्रियों को विद्या नहीं सिखाता था । पुत्रप्रेम से उसका हृदय भर आया । परंतु उसकी अवस्वकार्य यशस्वी करने के लिये, कर्ण ने असत्य कथन | हेलना तथा पांडवबैर देख कर उसे अत्यंत दुख हुआ किया एवं परशुराम को उसने बताया कि, वह भृगु- | (म. आ. १२६)। कुलोत्पन्न ब्राह्मण है, इसलिये शिष्य बन कर रहने की कृतज्ञता--कर्ण के राजपुत्र एवं क्षत्रिय न होने के अनुमति परशराम ने दी। उसने कर्ण को सप्रयोग एवं कारण, यह अपमान उसे सहना पड़ता था। उस यथाविधि ब्रह्मास्त्र सिखाया।
समय दुर्योधन ने कहा कि, शौर्य कुल पर निर्भर नहीं एक दिन उपवास से श्रांत परशुराम कर्ण की गोद में सिर रहता । उसने कर्ण को अंगदेश का राज्य दे कर गौरवारख कर सोया था, तब एक कृमि ने आ कर उसकी जांघ न्वित किया। इस उपकार के विनिमय की पृच्छा करने काट खायी। रक्त पेशे से परशुराम जागृत हआ। पर दुर्योधन ने कर्ण से मित्रत्व भाव कायम रखने इतनी वेदनाएं कोई ब्राह्मण शांति से सहन नहीं कर सकता,
की इच्छा प्रदर्शित की। इस प्रकार बाल्यावस्था से यह सोच कर कर्ण के बारे में परशुराम के मन में शंका | इनमें अकृत्रिम मित्रत्व स्थापित हो कर इसने उसके उत्पन्न हुई। चाहे जो हो, यह अवश्य क्षत्रिय है। कर्ण ने लिये मृत्यु तक का स्वीकार किया (म. आ. १२६ ] । सत्यकथन कर उसे संतुष्ट किया, तथापि इसे शाप मिला कि, जरासंधस्नेह--इसने मल्लयुद्ध कर के जरासंध का बराबरी के योद्धा से युद्ध करते समय, तथा अंतिम समय जोड़ ढीला कर दिया, इसलिये जरासंध ने इसे मालिनी-- इसे अस्त्र की स्फूर्ति न होगी, अन्य समय पर होगी। नगर दे कर इससे स्नेहसंपादन किया (म. शां. ५.६)। असत्यकथन के कारण, परशुराम ने कर्ण से जाने के लिये | विवाह--कर्ण ने काफी सूतकन्याओं से विवाह किये कहा, परंतु यह आशीर्वाद भी दिया कि, तुम्हारे समान | (म. उ. १३९.१०)। द्रौपदीस्वयंवर में यह मत्स्यदूसरा कोई भी क्षत्रिययोद्धा न होगा (म. शां. ३.३२)। भेद के लिये आगे बढा, तब द्रौपदी ने कहा, "मैं सूतपुत्र
गोवत्सहत्या-एक बार धनष्य बाण समवेत यह को नहीं वरूंगी।" यह सुन कर इसे पीछे हटना पडा आश्नम के बाहर गया हुआ था, तब असावधानी से एक | (म. आ. १७८. १८२७११)। ब्राह्मणधेनु का बछड़ा इसके द्वारा मारा गया। तब उस बुद्धिभेदयत्न--कौरव पांडवों के वैर के कारण. ब्राह्मण ने इसे शाप दिया, 'युद्ध में भूमि तुम्हारे रथ निष्कारण कर्ण तथा पांडवों में बैर आया। यह देख कर का पहिया निगल लेगी तथा असावध अवस्था में तुम्हारा कुंती को अत्यंत दुख हुआ। उसने इसका समाधान कर के शिरच्छेद होगा,'। इससे कर्ण को अत्यंत दुख हुआ। पांडवों की सहायता के लिये, इसे प्रवृत्त करने के लिये इसने धन दे कर उःशाप मांगने का प्रयत्न किया, शिष्टाई के हेतु से कृष्ण को इसके पास भेजा । शिष्टाई के परंतु उसने इसका धिक्कार किया (म. क. २९; शां. बाद कृष्ण कर्ण के पास गया. तथा उसने कर्ण से उसका २.२३-२९)।
जन्म वृत्त बता कर कहा, कि तुम्हें सार्वभौम पद का लाभ अवहेलना-धृतराष्ट्र की अनुज्ञा से द्रोण ने कौरव | होगा। पांडवों के समान शूर नररत्न तुम्हारी सेवा करेंगे। पांडवों का शस्त्रास्त्रकौशल्य देखने के लिये रंगमंच तैय्यार द्रौपदी तुम्हारी अर्धांगी बनेगी। कौरवों द्वारा तुम्हारी हार किया। परंतु कर्ण ने कहा कि. अर्जन के द्वारा दिखाये गये | नहीं होगी, तथा भविष्य में होनेवाला क्षय भी टेल जायेगा। कौशल की अपेक्षा अधिक कौशल में दिखा सकता हूँ। सब कार्य ठीक से होगा। ऐसे कई प्रलोमन इसे दिखाये। तब कौरव पांडवों का झगड़ा हो कर, कर्ण ने अर्जुन को द्वंद्व | कर्ण ने उत्तर में कृष्ण से कहा कि, यद्यपि कुन्ती युद्ध का आव्हान दिया। उस समय सब लोग आश्चर्य- मेरी माता है एवं पांडव मेरे बंधु हैं यह कथन मुझे मान्य मूढ हो कर, कर्ण की ओर देख रहे थे। परंतु दुर्दैव से | है, तथापि मुझे नदी में छोड कर, कुन्ती ने बडी भारी भूल कर्ण का जन्मवृत्त किसी को मालूम न होने के कारण इसे | की है । उसी के कारण मुझे अधिरथ के पास रहना यहाँ नीचा दिखना पड़ा। इसके अतिरिक्त कर्ण का पड़ा। मैं ने सूतकन्याओं से विवाह किये तथा उनसे मुझे पालनकर्ता पिता अधिरथ वहाँ आया तथा कर्ण ने उसे | पुत्रपौत्रादि भी हुए। इन कारणों से, एवं राधा के अनुपम नमस्कार किया । तब सब लोक सूत, सूतपुत्र राधेय आदि एवं अकृत्रिम प्रेमपाश से मैं बद्ध हो गया है। अब यह कह कर इसकी अवहेलना करने लगे। इस समय कुंती की | संबंध तोड़ना मेरे लिये असंभव है। इसके अतिरिक्त मैं