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कच
प्राचीन चरित्रकोश
कच
३. इस समय इसे मार कर, इसका चूर्ण बना | अपना पिता शुक्राचार्य तथा कच दोनों को जीवित देख कर राक्षसों ने जलाया सुरा के पात्र में वह रक्षा मिलाई। कर, देवयानी को अत्यंत आनंद हुआ। वही पात्र शुक्राचार्य को पीने के लिये दिया तथा
___सुरापान के कारण यह भी समझ में न आया कि, अपने अपने घर चले गये।
मैं कच की राख पी रहा हूँ। इसके लिये शुक्राचार्य को देवयानीप्रणय-दिन का अवसान हो गया। रात
अत्यंत खेद हुआ। सुरादेवी पर क्रोधित हो कर शुक्राचार्य हई, किन्तु कच नहीं आया। यह देख, देवयानी ने ने मद्यपान पर निम्मलिखित निर्बंध लगा दिया।" जो पिता से कहा कि, अभी तक कच नहीं आया । हो न हो, ब्राह्मण आज से भविष्य में व्यसनी लोगों के चंगुल में उसे अवश्य राक्षसों ने मार डाला होगा । उसे तत्काल फँस कर मुर्वत से अथवा मूर्खता से सुरापान करेगा, वह जीवित कर के आश्रम में लाने के लिये, देवयानी हठ
धर्मभ्रष्ट हो कर ब्रह्महत्या के पातक का भागीदार बनेगा । करने लगी। तब शुक्राचार्य ने देवयानी से कहा कि, बार
उसे इहपरलोक में अप्रतिष्ठा तथा अनंत कष्ट भोगने बार जीवित करने पर भी कच की मृत्यु हो जाती है, इस
पडेंगे।" इस प्रकार धर्ममर्यादा स्थापित कर के उसने लिये भला मैं क्या कर सकता हूँ? अब तुम रुदन
दैत्यों से कहा, 'तुम्हारी मूर्खता के कारण मेरे प्रिय शिष्य मत करो। कच की मृत्यु के लिये दुःख मनाने का अब कच को यह संजीवनी विद्या प्राप्त हो गई। इस प्रकार कुछ प्रयोजन नहीं है। तब देवयानी ने उसके रूपगुणों का |
हजार वर्षों तक गुरु के पास रहने के बाद कच ने देवलोक रसभरा वर्णन किया एवं शोकावेग से वह प्राणत्याग करने
में जाने के लिये गुरु की आज्ञा मांगी। के लिये प्रवृत्त हो गई। देवयानी का यह अविचारी कृत्य देख कर शुक्राचार्य असुरों को बुला लाये । तथा उनसे
| शुक्राचार्य ने कच को जाने की आज्ञा दी। कच बोले, "मेरे पास विद्याप्राप्ति के हेतु आये हुए मेरे | देवलोक जा रहा है यह देख कर, देवयानी ने उससे प्रार्थना शिष्य को मार कर तुम लोग क्या मुझे अब्राह्मण बनाना
| की । ' हम दोनों समान कुलशीलवाले हैं । मेरी चाहते हो ? तुम्हारे पापों का घड़ा भर गया। प्रत्यक्ष
| तुम पर अत्यंत प्रीति है। इस प्रीति के कारण ही तीन इन्द्र आदि का भी घात ब्रह्महत्या के कारण होता है फिर बार राक्षसों द्वारा मारे जाने पर भी मैंने तुम्हें जीवित तुम्हारी क्या हस्ती ?" क्रोध से ऐसा कह कर, शुक्राचार्य
किया, इसलिये मेरा पाणिग्रहण किये बिना तुम्हारा देवने कच को पुकारा । तब संजीवनी विद्या के प्रभाव से
लोक जाना ठीक नहीं है। कच ने उसे बहुत ही समझाया, शक्राचार्य के उदर में जीवित कच ने वह उदर में
कि हम दोनों का जन्म एक ही उदर से होने के कारण किस प्रकार आया, तथा दैत्यों ने किस प्रकार उसे मारा
धर्मदृष्टि से तुम मेरी गुरुभगिनी हो। तस्मात् तुम मुझे वह बताया। तदनंतर उसने कहा, 'गुरुहत्या के पाप
गुरु के समान पूज्य हो। इतना कहने पर भी देवयानी ने का भागीदार मैं न बनूँ तथा देवयानी का मेरा एवं संपूर्ण अपना हठ नहीं छोड़ा। तब कच ने कहा, 'अपने पुत्र विश्व का अकल्याण न हो, इस हेतु से मैं गर्भवास ही। के भाँति तुमने मुझे प्यार किया। तुम्हारा तथा मेरा जन्म स्वीकार करता हूँ।
एक ही पिता से हुआ है, अतएव तुम मेरे द्वारा पाणितब शुक्राचार्य ने देवयानी से कहा, 'अगर तुम्हें
| ग्रहन की कामना मत कसे' इतना कह कर कच ने देवयानी
को दृढ मनोभाव से शुक्राचार्य की सेवा करने के लिये कच चाहिये तो मेरा वध होना आवश्यक है। अगर मैं तुम्हें प्रिय हूँ तो उदरगत कच का बाहर आना असंभव
कहा तथा उससे आशीर्वाद मांगा। है। तब देवयानी ने कहा कि, 'तुम दोनों मुझे प्रिय | शापप्रतिशाप-भनमनोरथा देवयानी ने अत्यंत संतप्त हो। दोनों में से किसी का भी विरह मेरे लिये दुखदायी | हो कर उसे शाप दिया कि, मेरी प्रार्थना अमान्य कर ही होगा।
| बड़े अहंकार से, जो विद्या प्राप्त कर तुम जा रहे हो वह प्रथमतः शुक्राचार्य ने कच को उदर में, संजीवनी तुम्हें कभी फलद्रा न होगी। तब कच ने शांति से विद्या का उपदेश किया तथा बाहर आने के बाद अपने को | कहा, 'चूकि तुम गुरुभगिनी हो एवं मैं सात्विक ब्राह्मण हूँ, जीवित करने के लिये कहा । तदनंतर संजीवनीविद्याप्राप्त | मैं तुम्हें प्रतिशाप नहीं देता। यह शाप कामविकारजन्य है। कच शुक्राचार्य का उदरविदारण कर बाहर आया तथा | अर्थात् तुम्हारा वरण ब्राह्मण पुत्र करे, यह तुम्हारी इच्छा उसी विद्या से तत्काल उसने शुक्राचार्य को जीवित किया। | कभी सफल नहीं हो सकती। मेरी विद्या मुझे फलद्रूप
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