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प्राचीन चरित्रकोश
कच
५. (सो. वृष्णि.) उग्रसेन के नौ पुत्रों में से चौथा। प्राप्ति में विलंब न होगा क्यों कि, देवयानी शुक्राचार्य यह कंस का कनिष्ठ भ्राता, जिसका वध बलराम ने किया का दूसरा प्राण है। यह बता कर देवताओं ने उसे • (भा. ९.२४)।
आशीर्वाद दिया। ६. अज्ञातवासकाल में विराटगह में प्रवेश करते समय
गुरुसेवा--कच विद्यासंपादन के लिये देवताओं को युधिष्ठिर ने धारण किया हुआ नाम (म.वि.१.२०:७.१०)।
|| छोड़ कर शक्राचार्य के पास आया। शुक्राचार्य ने पूछा, यह विराट का सभासद था । विराट इससे अक्षक्रीड़ा करता
'तुम कौन हो? कहाँ से आये हो ?' तब कच ने बड़ी था । दक्षिण गोग्रहण के समय विराट ने सुशर्मा पर आक्रमण
नम्रता से कहा, 'मैं बृहस्पतिपुत्र कच हूँ तथा विद्याकिया तब उसने इसे साथ लिया था तथा वहाँ सुशर्मा उसे
संपादन के हेतु आया हूँ।' शुक्राचार्य ने उसे अतिथि बांध कर ले जा रहा था । इसने अपने भाई के द्वारा विराट को मुक्त कराया (विराट देखिये)।
समझ कर तथा गुरुपुत्र होने के कारण, वंदनीय मान कर
अपने पास रख लिया। तत्पश्चात् वह गुरुभक्ति से तथा ७. कलियुग के सोलह राजाओं का एक वंश (भा.
ब्रह्मचर्य से सेवा करने लगा। शुक्राचार्य की तरुण कन्या १२.१)
देवयानी के मनोरंजन के लिये कच, गाना, वाद्य कंकट-कटु के लिये पाठभेद। .. कंकतीय-एक कुल का नाम है । इस कुल ने शांडिल्य
बजाना, नाचना, पुष्प तथा फल लाना एवं बताये हए
काम तथा गायें चराना आदि काम करने लगा। इस ऋषि से अग्निचयन करना सीखा (श. बा. ९.४.४.१७)। एक कंकटी ब्राह्मण का उल्लेख आपरतंबश्रौतसूत्र (१४.२०.
प्रकार शुक्राचार्य तथा उसकी प्रिय कन्या देवयानी के कार्य ४) में आया है। शायद बौधायन श्रौतसूत्र के (२५.६)
में कहीं भी न्यूनता न रखते हुए, कड़े ब्रह्मचर्यव्रत से कच
ने उन की ५०० वर्षों तक उत्तम सेवा की। इससे तथा छागलेय ब्राह्मण में उल्लेखित ब्राह्मण यही होगा।
आचार्य उस पर प्रसन्न हो गये, तथा देवयानी तो उसे कंकमुद्र-ऋग्वेदी ब्रह्मचारी । .
अपना बहिश्वर प्राण समझने लगी। ... कंका-उग्रसेन की कन्या तथा कंस की भगिनी।। वसुदेव के भाई आनक की स्त्री।
__संकटपरंपरा-१. देवगुरु बृहस्पति का पुत्र कच अपने कंकी-(सो. ककर.) विष्णुमत में उग्रसेन की कन्या। आचार्य के पास विद्या संपादनार्थ आया है । अवश्य ही कच-एक महर्षि (म.अन. २६.)।
यह संजीवनी विद्या संपादन करने के लिये आया होगा - . २. वर्तमान मन्वन्तर में अंगिरापुत्र बृहस्पति का
| यह सोच कर दैत्यों ने उसका वध करने का का निश्चय किया। पुत्र । परंतु इसकी माता कौन थी इसका पता नहीं चलता
एक दिन उन्हों ने उसे गौओं को चराते हुए देखा। है क्यों कि, बृहस्पति की शुभा तथा तारा नामक दोनों
क्रोधावशात् उन्हों ने इसे पकड़ा तथा इसके शरीर के - स्त्रियों की संतति में इसका नाम नहीं है।
खंडशः टुकडे कर सियारों को खिला दिये तथा वे वापस . देवकार्यार्थ गमन-एक बार देव एवं दैत्यों मैं त्रैलोक्य
अपने स्थान पर लौट आये। इधर सूर्यास्त होने पर भी का आधिपत्य तथा ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये तुमुल युद्ध
कच घर लौट नहीं आया, यह देख कर देवयानी ने यह
खबर पिता तक पहुँचाई। इस पर शुक्राचार्य ने संजीवनी .. हुआ। उसमें दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य संजीवनी विद्या के
विद्या का प्रयोग किया । तत्काल सियारों के शरीर फाड़ कारण मृत राक्षसों को तत्काल जीवित कर देते थे। इस कारण दैत्यों की शक्ति कम नहीं होती थी। देवगुरु ।
कर कच सजीव हो कर आचार्य तथा देवयानी के समक्ष
आ कर खड़ा हो गया। कच को आया जान कर देवयानी बृहस्पति को यह विद्या प्राप्त न होने के कारण,
ने विलंब का कारण पूछा। तब उसने दैत्यों का सारा कृत्य देवताओं का बहुत नुकसान होता था। तब इन्द्र तथा
| उसे बताया। अन्य देवताओं ने कच से प्रार्थना कर कहा, कि तुम शक्राचार्य तथा उसकी तरुण कन्या देवयानी को प्रसन्न । २. एक बार पुनः देवयानी के कथनानुसार जब कच कर, संजीवनी विद्या सीख कर आवो। तुम्हारा शील, अरण्य में गया था, तब राक्षसों ने उसे देखा । पुनः उसके सौंदर्य, माधुर्य, मनोनिग्रह तथा आचरण देवयानी को टुकड़े कर के, उन्होंने समुद्र में फेंक दिये । इस समय भी प्रसन्न करने के साधन हैं। देवयानी को वश करने का | पिता को बता कर देवयानी ने इसे पूर्ववत् सजीव कारण यही है कि, यदि वह प्रसन्न हो गयी तो विद्या- | कराया।