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________________ कंस प्राचीन चरित्रकोश कंसा वसुदेव देवकी के पैरों में बेड़ियाँ डालकर बंदिवास में | गोकुल में थीं, अतएव गोकुल की ओर इसकी वक्रदृष्टि घूमी, डाला तथा प्रत्येक पुत्र का वध करने का क्रम प्रारंभ किया। तथा उन्हीं दिनों जन्मे पुत्रों पर उसने विशेष दृष्टि रखना • जरासंध के समान प्रलंब, बक आदि अनेक लोग सकी । प्रारंभ किया । पूतना के द्वारा गोकुल पर अरिष्ट आना सहायता करते थे । यादवों में से प्रमुख लोग इसके द्वारा प्रारंभ हो गया। परंतु इन सब संकटों से कृष्ण की रक्षा दिये जानेवाले कष्टों के कारण कुरू, पांचाल, केकय, | हो गई। अंत में कुश्तियों का मैदान बांध कर उसमें अपने शाल्व, विदर्भ, निषध, विदेह, कोसल आदि देशों में चले | मल्लों के द्वारा कृष्ण को मारने का षड्यंत्र इसने रचा। गये। कुछ कंस का प्रेम संपादित करके उसी के पास रहे कृष्ण तथा बलराम ख्यातनाम पहलवान थे। उसी के (भा..१०. २. ३-४)। चाणूरादिक जो लोग इसने | अनुसार धनुर्याग कर के मल्लयुद्धों का बडा मैदान अपनाये थे वे युद्ध के द्वारा ही अपनाये थे। इसने रखा । दिग्विजय के समय परशुराम का जो धनुष्य यह पूर्वजन्म में कालनेमि असुर था (म. आ. ६१. कंस ने प्राप्त किया था, वह भी रखा तथा जो कोई उसे ५५९५; भा. १०.१.६९)। विष्णु के साथ युद्ध करते करते | चदायेगा उसके लिये इनाम भी घोषित किया गया। उस यह मृत हुआ। परंतु शुक्र ने संजीवनी विद्या द्वारा इसे | धनुष्य को कृष्ण ने आसानी से चढा दिया (गर्गसंहिता जीवित किया। तब इसने विष्णु को जीतने के लिये मंदार | १.६ ) तथा अनेक बार घुमा कर तोड भी दिया (ह. वं. पर्वत पर तपस्या प्रारंभ. की। दूर्वांकुरों का रस पीकर | २.२७.५७)। सौ वर्षों तक दिव्य तप करने के बाद ब्रह्मदेव प्रसन्न | हुआ। तब इसने वरदान मांगा कि, मुझे देवों के हाथों मृत्यु--द्वार पर महावत को सूचना दे कर कंस ने एक मत्त हाथी कृष्ण को मारने के लिये रखा था। कृष्ण ने मृत्यु प्राप्त न हो। ब्रह्मदेव ने कहा कि, यह अगले जन्म | हाथी के दाँत पकड़ कर मार दिया तथा हाथी-महावत को में संभव होगा। तदनंतर इसने उग्रसेन की पत्नी के उदर भी मार दिया । तदनंतर कृष्ण ने चाणूर एवं तोसलक तथा में जन्म लिया। आगे चलकर जब जरासंध विजयप्राप्ति बलराम ने आंध्रमल मुष्टिक के साथ मल्लयुद्ध कर के उन्हें के हेतु बाहर निकला तब यमुना के किनारे उसका मृत प्राय किया। तदनंतर वेग से कंस पर हमला पड़ाव था। तब कुवलयापीड़ नामक हाथी संकल तोड़ कर करके उसके केश पकड़ कर सिंहासन से उसे नीचे छावनी में से भाग कर, जहाँ मल्लयुद्ध प्रारंभ था वहाँ आया। तब सब मल्ल भयभीत होकर भाग गये। घसीट कर उसका वध किया । कंस के शरीर पर कृष्ण के परंतु कंस ने इसकी सूंड पकड कर उसे जमीनपर पटक नखों के बहुत चिन्ह हुए थे। यह कार्य कृष्ण ने इतनी चपलता से किया कि कृष्ण के जयजयकार में क्या हुआ • दिया, पुनः उठाकर हवामें गोल घुमाया तथा सौ योजन दूर जरासंध की छावनी पर फेंक दिया। यह अद्भुत इसका भी पता किसी को न चला (ह. वं. २.२८-३०)। .. 'सामर्थ्य देखकर जरासंध ने इसे अपनी अस्ति तथा प्राप्ति उसी प्रकार कंस के कंक, न्यग्रोध आदि आठ बंधुओं का नामक दो कन्यायें दीं। माहिष्मती के राजा के चाणूर, भी बलराम ने तत्काल वध किया (भा. १०.४४.४०)। मुष्टिक, कूट, शल, तोशलक नामक पुत्र कंस, मल्लयुद्ध के | कंस वारकि--यह दक्ष कात्ययनि आत्रेय का शिष्य द्वारा अपने नियंत्रण में लाया (गर्ग संहिता १.६.७): है (जै. उ. ब्रा. ३.४१.१)। कृष्ण से वैर--यह राज्यक्रांति का इतिहास है। कंस वारक्य-यह प्रोष्ठपाद वारस्य का शिष्य है वसुदेव उग्रसेन का सुप्रसिद्ध मंत्री था । अपने को वह कुछ | (जै. उ. ब्रा. ३.४१.१)। अपाय करेगा एवं उग्रसेन को गद्दी पर बैठायेगा इस भय कंसवती-उग्रसेन की कन्या तथा कंस की भगिनी । से कंस ने उसे कारागृह में डाला, तथा उसके पुत्रों के वध यह वसुदेव का कनिष्ठ भ्राता देवश्रवा की पत्नी । इसे का क्रम प्रारंभ कर दिया (वायु. ९६.१७३;१७९; | उससे सुवीर तथा इषुमत् नामक दो पुत्र हुए (भा. ९. २२८)। आठवीं बार योगमाया से उसे मालूम हुआ कि उसका शत्रु सुरक्षा से बढ़ रहा है । तब पश्चात्ताप हो कर २४)। इसने वसुदेवदेवकी को बंधमुक्त किया। परंतु मंत्रियों से कंसा-उग्रसेन की कन्या तथा वासुदेवभ्राता देवभाग सलाह करके शत्रु को ढूंढकर उसका नाश करने का प्रयत्न की स्त्री। इसे उससे चित्र केतु, बृहद्बल तथा उद्धव नामक उसने जोर से चालू किया। वसुदेव की शेष स्त्रियाँ तीन पुत्र हुए. (भा. ९.२४)।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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