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एकलव्य
प्राचीन चरित्रकोश
एवावद
एकलव्य ने उसके मुख में सात बाण मारे । तब वह कुत्ता | एकानेका-अंगिरस की कन्या । इसे ही कुहू दूसरा उसी प्रकार अपने मालिक के पास आया । उस कुत्ते को नाम है (म. व. २०८.८)। एकानंशा ऐसा पाठ है। देखकर द्रोण को आश्चर्य लगा कि इतनी कुशलता एकायन-भृगुकुल का एक गोत्रकार । शाकायन पाठसे लक्ष्यवेध करनेवाला यह कौन हो सकता है। इधर | भेद है। उधर देखते समय द्रोण को एकलव्य दृष्टिगत हुआ। द्रोण एकावली-एक वीर राजा की पत्नी । रम्य राजा को को देख कर एकलव्य ने अभिवादन किया तथा कहा कि, रुक्मरेखा से उत्पन्न कन्या । मैं आपका शिष्य हूँ। द्रोण को उसकी कुशलता से बडा एकेपि--अंगिरा कुल का एक गोत्रकार । आनंद तथा कौतुक लगा। यह अर्जुन की अपेक्षा यह एक ऋषि का नाम है (सां. ब्रा. ३.८) धनुर्विद्या में श्रेष्ठ है जानकर अर्जुन को दिया गया अपना एतश--ऋग्वेद की एक ऋचा का सर्वानुक्रमणी के वचनभंग हो जाने का डर लगा । परंतु बडी युक्ति से गुरु- अनुसार यह द्रष्टा है (ऋ. १०.१३६.६)। वहाँ इसे दक्षिणा.के तौर पर इसने उसके दाहिने हाथ का अंगूठा वातरशन कहा गया है। एतश को अग्नि के आयुष्य नामक मांग लिया । एकवचनी एकलव्य ने वह दे दिया (म.आ. कुछ मंत्रों की रचना की स्फूर्ति हुई । तब इसने पुत्र से कहा १२३.३७)। परंतु इससे इसकी पहले की चपलता नष्ट कि मेरे मंत्रपठन में बाधा मत लाओ क्योंकि इन मंत्रों हो गई । एकलव्य भारतीय युद्ध में कौरवों के पक्षमें था। के पठनसे यज्ञ के व्यत्यय तथा व्यंग नष्ट हो जाते है। दाहिना हाथ पूर्ण रूपसे निहायोगी होते हुए भी इसने | परंतु ये मंत्र कह ही रहे थे तब उसके अभ्यग्नि नामक अत्यंत पराक्रम दर्शाया । यह श्रीकृष्ण के हाथों मारा पुत्र ने विघ्न उपस्थित किया। इन असंबद्ध मंत्रों के कारण गया (म. द्रो. १५५.२९)। इसे केतुमान नामक एक उसे लगा कि पिताजी पागल हो गये हैं तथा उसने पुत्र था । वह. भीम के द्वारा मारा गया (म. भी. ५०. उनके मुंह पर हाथ रखा । तब क्रोधित होकर इसने ७०)। .
उसे शाप दिया कि तुम्हे कुष्ठ हो जायेगा (ऐ. ब्रा. __एकलोचना--सीतासंरक्षण के लिये नियुक्त राक्षसियों ६.३३)। ऐ. ब्रा. में ऐतश शब्द है । इसलिये यह कथा में से एक (म. व. २६४.४४)।
संभवतः एतश की होगी। ऐतशायन औवों में अत्यंत • एकवीर--(सो. तुर्वसु.) हरिवर्मा राजा को विष्णु- बुरे मान कर वर्णित हैं । ऐतशप्रलाप आजकल अथर्ववेद 'प्रसाद से प्राप्त पुत्र । यह वाजीरूपधर विष्णु से वड़वारूप का भाग कह कर प्रसिद्ध है तथा अभी वह वैसा ही • धारण की हुई लक्ष्मी के उदरसे उत्पन्न हुआ था। इसलिये असंबद्ध है (अ.वे. २०.१२९-१३२; बृहहे. ८.१०१)। इसे हैहय नाम था। यह यदुकुलोत्पन्न हैहय राजा से स्वश्वपुत्र सूर्य से हुए युद्ध में इंद्र ने एतश को बचाया बिल्कुल भिन्न है। इसे एकावली तथा यशोवती नामक दो (ऋ. १. ५४.६, ६१.१५, ४.१७.१४)। इसे सूर्य ने • स्त्रियाँ थीं. तथा इसकी उपास्य देवता एकवीरा देवी थी घायल किया (ऋ. ८.१.१८)। (दे. भा. ७.१७.२३)।
एतश वातरशन--मंत्रद्रष्टा (ऋ. १०.१३६.६)। एकशय-तक्षक का पुत्र अश्वसेन (म. क.६६)।
एनक--ब्रह्मदेव के पुष्कर क्षेत्र में हुऐ यज्ञ का एक एकाक्ष-दनु तथा कश्यप का पुत्र (म. आ. ६६..
ऋषि (पद्म. सृ. २४)। २८)।
एरक-एक सर्प (म. आ. ५२.१२)। एकांगी-एक ग्वालन । इसे गोव्रत के कारण ऐश्वर्य प्राप्त हुआ (स्कन्द. २.४.९)।
एलपत्र-एक सर्प। एकादशरथ-(सो. यदु.) वायु के मतानुसार एलापुत्र--कद्रूपुत्र (नभ देखिये)। दशरथपुत्र।
एवयामरुत् आत्रेय-सूक्तद्रष्टा (ऋ. ५.८७ )। एकादशी--मुर देखिये।
एवावद--यह नाम क्षत्र, मनस तथा यजत के साथ एकानंगा-यशोदा की कन्या । कृष्ण की भगिनी। आया है (ऋ. ५.४४.१०)।
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