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________________ ऋषभ प्राचीन चरित्रकोश हरि, अंतरिक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविर्होत्र द्रुमिल, चमस तथा करभाजन नामक नौ पुत्र ब्रह्मनिष्ठ थे । ऋषभ देव ने भरत, कुशावर्त इलावर्त, ब्रह्मावर्त, मलय, केतु, मद्रसेन, इंद्र, विदर्भ तथा कीट नाम से अपने अनाम के नौ खंड परके उन्हें अधिपति बनाया तथा अवशेष भाग का सार्वभौमस्य भरत को दिया। इसने प्रजा को धर्मानुकूल बनाकर पुत्रों को ब्रहाविद्या का उपदेश दियां' (भा. '५. ३-६ ) । बाल्यावस्था से ही ऋषभदेव के हस्तपादादि अब यवों पर वज्र, अंकुश, ध्वज इ. चिह्न दीखने लगे थे। इसको ऐश्वयं देखकर इंद्र के मन में अस्या उत्पन्न होने लगी तथा उसने उसके खंड में वर्षा करना बंद कर दिया। तब उसका कपट ऋषभ देव ने पहचाना तथा अपनी माया के प्रभाव से अपने खंड में वर्षा कर दी। तदनंतर यह कर्मभूमि है ऐसा ख्याल कर भदेव ने प्रथम गुरुगृह में वास्तव्य किया । तदनंतर गृहस्थाश्रम का स्वीकार किया तथा शास्त्रोक्त विधि से यथासांग आचरण किया । यह आत्मविवेक से बर्ताव करता था । यह ब्राह्मणों की अनुज्ञा से राज्य करता था। कालांतर से ब्रह्मावर्त में अपने पुत्रों को उद्देशित करके संसार को इसने शानोपदेश दिया। उस समय यह पर में ही विक्षिप्त के समान दिगंबर तथा अस्ताव्यस्त रहता था । वदनंतर इसने संन्यास लिया तथा ब्रह्मावर्त से बाहर .निकला। लोग उसे कैसा भी उपसर्ग देते थे तब वह उनकी ओर ध्यान न देकर वह स्वस्वरूप में स्थिर रहता था । ऐसी आनन्दमय स्थिति में यह पृथ्वी पर घूमता था । देहत्याग की इच्छा से इसने मुँह में पत्थर पकड़ा तथा दक्षिण में कटक पर्वत के अरण्य में घूमते समय दानावल से ऋषभ देव का शरीर दग्ध हो गया ( भा. ५. ३ - ६ ) । स्वयं विरक्त हो कर वन में गया (मार्के ५०.४०) तथा अपना श्वासोच्छ्वास मिट्टी की ईंट से बंद कर देहत्याग किया ( विष्णु. २.१.३२ ) । यह भगवंत का आठवाँ अवतार था इसने परमहंस दीक्षा ली थी ( भा. २.७.१०. अर्हत् देखिये) । " ऋषभ वैराज शाकर दो ( म. व. १०९) । आशा कितनी सूक्ष्म तथा विशाल रहती है इसे कृश तनुवीरद्युम्नसंवादरूपी दृष्टांत देकर इसने सुमित्र राजा को समझाया है । इस ऋषि के इस संवाद को ऋषभगीता नाम है ( म. शां. १२५-१२८ ) । | ३. वाराहकल्प के वैवस्वत मन्वन्तर के नवम चौखाने में व्यास के निवृत्ति मार्ग का प्रसार करने के लिये म नामक शिव का अवतार होनेवाला है। उसके अनुक्रम से १. पराशर, २. गर्ग, ३. भार्गव, ४ गिरीश शिष्य होंगे। यह योगमार्ग का उद्धार करनेवाला है ( शिव. शत५. ३६-४८; भद्रायु देखिये ) । भद्रायु के कथनानुसार यह प्रवृत्तिमार्गीय होगा । इसका अनुयायी तथा नाती सुमति इसका अनुयायी होने के कारण लोग सुमति को देव मानने लगे । २. ऋपटांग पर रहनेवाला एक क्रोधी ऋषि । इसके पास अनेक लोग आने लगे तथा उसे कष्ट होने लगे। तत्र इसने पर्वत तथा वायु को आज्ञा दी कि, इधर अगर कोई आने लगे तो उनपर पाषाणवृष्टि कर के वापस कर ९९ ४. स्वारोचिप मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । ५. इन्द्र आदित्य का पुत्र ( भा. ६.१८.७ ) । ६. एक असुर । इसका वध करने के बाद उसके चमड़े की दुंदुभि बृहद्रथ राजा ने बनाई थी ( म. स. १९१५) | ७. अंगिरावंश के धृष्ण का पुत्र । इसका पुत्र सुधन्वा ( ब्रह्मांड. ३.१.१०७ ) | यह मंत्रकार था ( वायु. ५९. ९८ - १०२ ) । ८. (सो. अज.) भागवत के मतानुसार कुशाग्र राजाका पुत्र । इसका सत्यहित नामक पुत्र था। ९. एक वानर । राम के राज्याभिषेक के समय वह समुद्र का उदक लाया था तथा मत्त राक्षस का वध किया था (वा. रा. यु. ७०.५८.६३. ) । १०. (सू. इ. ) राम तथा अयोध्यापुर निवासी सच जनों की मृत्यु के बाद पुनरपि शून्य हुये प्रदेश में निवास करनेवाला राजा ( वा. रा. उ. १११ ) । ११. (सो. वृष्णि. ) वृष्णि का पुत्र ( पद्म. सृ. १३ ) । १२. कृष्ण के पुत्रों में से एक ( भा. १.१४.३१ ) । १३. एक गोप का नाम । यह रामकृष्ण का मित्र था ( भा. १०.२२ ) । १४. एक ऋषि । यह युधिष्ठिर की सभा में था (म. स. ११.१२५० पंक्ति ६ ) । १५. आयुष्मान् तथा अंबुधारा का पुत्र । दक्षसावर्णि मन्वन्तर में होनेवाला विष्णु का अवतार (मनु देखिये) । १६. विश्वामित्र का पुत्र ( ऐ. ब्रा. ७.१७.) । ऋषभ याज्ञतुर यह चिक्न का राजा तथा अश्वमेध करनेवालों में एक था (श. बा. १२.८.३.७९१३.५.४. १५; सां. श्रौ. १६.९.८.१०; गौरवीति शाक्त्य देखिये ) । ऋषभ वैराज शाकरसूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. १६६) ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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