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कालगणनापद्धति
कालनिर्णयकोश
ग्रंथों का कालनिर्णय
एवं कल्हण जैसे इतिहासकार भारतीय युद्ध का काल कई प्रमुख शक--सप्तर्षि शक के अतिरिक्त पौराणिक कलियुग के पश्चात् ६५३ वर्ष, अर्थात् २४४९ ई. पू. साहित्य में कई अन्य शकों का निर्देश पाया जाता है, मानते हैं। भारतीय ज्योतिषशास्त्र की इन दो परस्पर जिनमें निम्नलिखित शक प्रमुख माने जाते हैं:-- विरोधी परंपराओं से ये दोनों कालनिर्णय अविश्वसनीय १. परशुराम शक--इस शक का प्रारंभ शालिवाहन प्रतीत होते हैं।
शक वर्ष ७४७ में हुआ। इसकी परिगणना, एक हज़ार पौराणिक साहित्य में प्राप्त राजवंश एवं पीढ़ीयों के साल का एक चक्र, इस हिसाब से होती है । इस प्रकार आधार से भारतीय युद्ध का कालनिर्णय करने का सफल इस शक का चतुर्थ चक्र सांप्रत चालू है । सौर पद्धति के . प्रयत्न पार्गिटर ने किया है । मगध देश के राजा महा- अनुसार इस शक का परिगणन किया जाता है । पद्यनंद से पीछे जाते हुए जनमेजयपौत्र अधिसीमकृष्ण दक्षिण भारत के केरल प्रांत में मंगलोर से लेकर कन्यातक छब्बीस पीढ़ीयों की गणना कर, पार्गिटर ने कुमारी तक एवं तिनीवेल्ली जिले में यह पाया जाता है। इस भारतीय युद्ध का काल ९५० ई. पू. सुनिश्चित किया है शक का प्रारंभ केरल प्रांत में कन्या माह से, एवं तिनीवेल्ली (पार्गि. १७९-१८३)।
जिले में सिंह माह से प्रारंभ होता है । ईसवी सन में से ८२५ किन्तु पौराणिक साहित्य एवं महाभारत में प्राप्त साल कम करने से परशुराम शक का हिसाब हो सकता है। निर्देशों के अनुसार परिक्षित् राजा का जन्म, एवं महा- २. विक्रम संवत्-इस संवत् का प्रारंभ ई. स. पू. ५७. पद्म नंद राजा के राज्यारोहण के बीच १०१५ वर्ष माना जाता है। इस संवत् का प्रचार, गुजरात एवं बंगाल बीत चुके थे। महापद्म नंद का राज्यारोहण का वर्ष ३८२ के अतिरिक्त बाकी सारे उत्तर भारत में पाया जाता है। ई. पू. माना जाता है । इसी हिसाब से भारतीय युद्ध नर्मदा नदी के उत्तर प्रदेश में इस संवत् का प्रारंभ चैत्र ।। का काल १०१५ + ३८२ = १३९७ इ. पू. सिद्ध होता माह में होता है, एवं माह का परिगणन पौर्णिमा तक रहता . है। इसी काल में पौराणिक राजवंशों के ९५ पीढ़ीयों के है। गुजरात प्रदेश में इस संवत् का वर्ष कार्तिक माह काल में १७१० वर्षों का काल मिलाये जाने पर वैवस्वत में शुरु होता है। मनु का काल निश्चित होता है। यह काल निश्चित करने से। ३. कलियुग संवत्--(भारतीय युद्ध संवत् अथवा ययाति, मांधातृ, कार्तवीर्य अर्जुन, सगर, राम दाशरथि युधिष्ठिर संवत् )-इस संवत् का प्रारंभ ई. पू. ३१०२ में आदि का काल सुनिश्चित किया जा सकता है। माना जाता है। स्कंद पुराण में यह प्रयुक्त है।
२. ग्रंथों का कालनिर्णय वेद, उपवेद, उपनिषद्, स्मृति, महाभारत, पुराण tive Catalogue of Sanskrit Manuscripts in आदि प्रमुख प्राचीन ग्रंथों का काल निर्णय नीचे अकारादि | the Collections. क्रम से दिया गया है । इस कालनिर्णय के लिए उपयोग ध. शा.-History of Dharmashastra ( डॉ. पां. किये गये आधार ग्रंथों की नामावलि, एवं उनके लिए | वा. काणे) . प्रयुक्त संक्षेप निम्नप्रकार हैं:
भारतीय विद्याभवन--History and Culture of गी. र.-गीतारहस्य (लो. बा. गं. टिळक) | Indian People (भारतीय विद्याभवन) धा. र.--धर्मरहस्य (के. ल. दप्तरी)
स्मिथ--The Early History of Indian People पु. नि.--पुराण निरीक्षण (व्यं. गु. काळे) । (व्हिन्सेन्ट स्मिथ)
भा.का.नि.-भारतीय युद्धकालानर्णय (के. ल. दप्तरी) रॅप्सन--Cambridge History of India, Vol.I - भा. ज्यो.--भारतीय ज्योतिःशास्त्र का इतिहास (शं. (ई.जी. रॅप्सन) बा. दिक्षित)
डॉ. बेलवलकर-Systems of Sanskrit Grammar भा. सा.--भारत सावित्री
(डॉ. वेलवलकर) म. उ.--महाभारत का उपसंहार (चिं. वि. वैद्य) ई. पू.--ईसा पूर्व रा. का. नि.-रामचंद्र जन्मकालनिर्णय (के. ल. दप्तरी) ____ शा. पू.-शालिवाहन शक के पूर्व ह.प्र.-हरप्रसादशास्त्री की प्रस्तावना (Descrip
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