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________________ राजाओं की तालिका प्राचीन चरित्रकोश - आंगिरस वंश आंध्र शक सत्रप.. अन्य व्यक्ति क्र. आंध्र शक सत्रप अन्य न्यक्ति १९८ शिवस्कंध *यज्ञश्री विजय जमदामन् रुद्रसिंह चष्टण ई. स. १८९ पुरींद्रसेन १९० सौम्य १९१ *सुंदरशांति कर्ण १९२. चकोर स्वातिकर्ण १९३ *शिवस्वाति १९४ *गौतमीपुत्र २०१ चंडश्री रुद्रसेन संघदामन् दामसेन (ई. स.२२३) २०३*पुलोमा इ.स. २११ १९५ *पुलोमत् १९६/ *शातकर्णि १९७ *शिवश्री जयदामन् रुद्रदामन दामजदश्री २० * चिन्हांकित राजाओं के प्रस्तरलेख अथवा सिक्के उपलब्ध हैं, जिनके कारण उनकी ऐतिहासिकता सुनिश्चित है। परिशिष्ट ६ पुराणों में निर्दिष्ट ऋषियों के वंश प्राचीन राजाओं की तरह, प्राचीन ऋषियों के वंश | हैं:-१. भृगुः २. अंगिरस् ; ३. मरीचिः ४. अत्रि, भी पौराणिक साहित्य में उपलब्ध हैं। किन्तु जहाँ राजवंश | ५. वसिष्ठ; ६. पुलस्त्य; ७. पुलह; ८. ऋतु। राजाओं के कुलों का अनुसरण कर तैयार किये गये हैं, ___ इन आठ ब्रह्ममानसपुत्रों में से पुलस्त्य, पुलह एवं वहाँ ऋषियों के वंश प्रायः सर्वत्र शिष्यपरंपरा के ऋतु की संतान मानवेतर जाति हुई, एवं उनसे कोई भी रूप में हैं, जो सही रूप में 'विद्यावंश' कहे जा ब्राह्मण वंश उत्पन्न नहीं हुआ । बाकी बचे हुए सकते हैं। | पाँच ब्रह्ममानस पुत्रों में से अंगिरस्, वसिष्ठ एवं भृगु पौराणिक साहित्य में प्राप्त ऋषियों के वंश राजाओं के | इन तीन ऋषियों के द्वारा ही प्राचीन ऋषिवंशों (मूलगोत्र) वंशों जैसे परिपूर्ण नहीं हैं, एवं उनमें काफ़ी त्रुटियाँ भी हैं। | का निर्माण हुआ । पुराणों में प्राप्त चार मूल गोत्रकार इसी कारण ऐतिहासिक दृष्टि से ऋषियों के वंश इतने | ऋषियों में अत्रि एवं कश्यप ऋषियों का नाम अप्राप्य है, महत्त्वपूर्ण प्रतीत नहीं होते हैं, जितने राजाओं के जिससे प्रतीत होता है कि, अत्रि एवं कश्यप कुलोत्पन्न वंश माने जाते हैं। ब्राह्मण अन्य मूलगोत्रकार ऋषियों से काफी उत्तरकालीन थे। .. ऋषिवंश की कल्पना का विकास--जिस प्रकार उपर्युक्त पाँच प्रमुख ब्राह्मण वंशों की जानकारी नीचे प्राचीन सभी राजवंश वैवस्वत मनु से उत्पन्न माने जाते | दी गयी है:हैं, उसी प्रकार सभी प्राचीन ऋषि वंश आठ ब्रह्ममानस- आंगिरस वंश--अंगिरस ऋषि के द्वारा स्थापित पुत्र ऋषियों से उत्पन्न माने जाते हैं । इन ब्रह्ममानस- किये गये इस वंश की जानकारी ब्रह्मांड, वायु एवं मत्स्य पत्रों के नाम पौराणिक साहित्य में निम्नप्रकार दिये गये | में प्राप्त है (ब्रह्मांड. ३.१.१०१-११३; वायु, ६५. ११६५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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