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प्रियव्रत वंश
पौराणिक राजवंश
भविष्य वंश
वंश की सविस्तृत जानकारी भागवत में दी गयी है द्वीप); ६. मेधातिथि ( शाकदीप); ७. वीतिहोत्र ( भा. ५.१; विष्णु. २.११)। प्रियवत राजा के कुल सात (पुष्करद्वीप)। पुत्र थे, जिनमें उसने अपने सप्तद्वीपात्मक पृथ्वी का प्रियवत राजा के ज्येष्ठ पुत्र आग्नीध्र का वंश भी भागवत राज्य विभाजित किया:- १. आनीध्र ( जंबुदीप ); में दिया गया है, जहाँ उसके पुत्रों के नाम निम्न प्रकार २. इध्मजिह्व (पक्षदीप); ३. यज्ञबाहु ( शाल्मलि- बताये गये है:--१. इलावृत; २. रम्यक; ३. हिरण्य; द्वीप ); हिरण्यरेतर (कुशद्वीप); ५. घृतपृष्ठ (कौंच- ४. कुरु, ५ भद्राश्वः ६. किंपुरुषः ७. नाभि ।
(४) भविष्य वंश (भविष्य.)
कलियुग का प्रारंभ-पौराणिक साहित्य के अनुसार, में तत्कालीन सूत एवं मगध लोगों में प्रचलित राजवंशों के भारतीय युद्ध के अंतिम दिन त्रेतायुग की समाप्ति सारे इतिहास की जानकारी ग्रथित की गयी थी। कालो हो कर कलियुग का प्रारंभ हुआ। डॉ. फीट के परांत भविष्य पुराण के इसी संस्करण में उत्तरकालीन अनुसार, इस युग का प्रारंभ भारतीय युद्ध के अंतिम राजवंशों की जानकारी प्रथित की जाने लगी. एवं इस दिन नहीं, बल्कि कृष्ण के निर्माण के दिन हुआ था, प्रकार इस एक ही ग्रंथ के अनेकानेक संस्करण उत्तरकाल जिसका काल भारतीय युद्ध के बीस साल बाद माना जाता में उपलब्ध हुए। है। इसी वर्ष में युधिष्ठिर ने राज्यत्याग कर हस्तिनापुर भविष्य पुराण के इन अनेकानेक संस्करणों को आधारका राज्य अपने पौत्र परिक्षित को दे दिया। इस प्रकार भूत मान कर विभिन्न पुराणों में प्राप्त भविष्यवंशों की परिक्षित के राज्यारोहण से ही कलियुग का प्रारंभ होता जानकारी ग्रथित की गयी है। इस प्रकार मस्य पुराण में है, ऐसा डॉ. फीट का अभिमत है। किन्तु पौराणिक ई. स. ३ री शताब्दी के मध्य में उपलब्ध भविष्यपुराण साहित्य में सर्वत्र भारतीय युद्ध का अंतिम दिन ही के संस्करण का आधार लिया गया है, एवं उसमें आंध्र कलियुग का प्रारंभ माना गया है।
राजवंशों के अधःपतन के समय तक के राजाओं की . पौराणिक साहित्य में प्राप्त प्राचीन भारतीय राजाओं जानकारी दी गयी है। . की वंशावलियाँ भारतीय युद्ध से ही समाप्त होती हैं। इसी प्रकार वायु एवं ब्रह्मांड में ३री शताब्दी के मध्य इस युद्ध के उत्तरकाल में भारतवर्ष में उत्पन्न हुए राजाओं में उपलब्ध भविष्य पुराण के संस्करण का आधारग्रंथ के की जानकारी केवल मत्स्य, वायु, ब्रह्मांड, विष्णु, भागवत नाते उपयोग किया हुआ प्रतीत होता है। इसी कारण इन एवं गरुड पुराणों में ही केवल दी गयी है।
दोनों ग्रंथों में चंद्रगुप्त (प्रथम) के अंत तक (इ. स. ३३०) यह जानकारी पौराणिक साहित्य में भूतकाल में उत्पन्न के राजवंशों का निर्देश पाया जाता है। इस प्रकार इन ग्रंथों हए राजाओं के नाते नहीं, बल्कि भविष्य में उत्पन्न होने में प्रयाग, साकेत, मगध इन देशों पर गुप्त राजाओं का वाले राजाओं के भविष्यवाणी के रूप में दी गयी है, आधिपत्य होने का निर्देश प्राप्त है, एवं इन देशों के जिसका प्रणयन श्री व्यास के द्वारा किया गया है । इसी परवर्ती प्रदेश पर नाग, मणिधान्य लोगों का राज्य होने कारण, पौराणिक साहित्य में प्राप्त कलियुग के राजाओं का निर्देश स्पष्ट रूप से प्राप्त है । समुद्रगुप्त के भारतव्यापी की जानकारी को 'भविष्य वंश' सामूहिक नाम दिया साम्राज्य का निर्देश वहाँ कहीं भी प्राप्त नहीं है, जिससे गया है।
इन पुराणों की रचना का काल निश्चित हो जाता है। " भविष्य राजवंशों का मूल स्रोत---पार्गिटर के अनुसार विष्णु एवं भागवत पुराण में चतुर्थ शताब्दी के अंत कलियुगीन राजाओं की पुराणों में प्राप्त बहुतसारी जानकारी में उपलब्ध भविष्य पुराण का उपयोग किया गया है, सर्वप्रथम 'भविष्य पुराण में ग्रथित की गयी थी, जिसकी एवं उसका रचनाकाल नौवीं शताब्दी माना जाता है। रचना दूसरी शताब्दी के पश्चात् मगध देश में पाली अथवा गरुडपुराण में भी इसी भविष्य पुराण का उपयोग किया अर्धमागधी भाषा में, एवं स्वरोष्ट्री लिपि में दी गयी थी। गया है। किन्तु इस पुराण का रचनाकाल अनिश्चित है। भविष्य पुराण के इस सर्वप्रथम संस्करण की रचना आंध्र महत्त्व-भविष्य वंश में निर्दिष्ट राजवंशों में से आंध्र, . राजा शातकणि के राज्यकाल में (द्वितीय शताब्दी का मगध, प्रद्योत, शिशुनाग आदि वंशो की ऐतिहानिकता अंत ) की गयी थी। भविष्यपुराण के इस आद्य संस्करण प्रमाणित हो चुकी है। इस कारण इन वंशों की पौराणिक
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